दरभंगा: मिथिला की पहचान मछली, पान, मखाना और मधुबनी पेंटिग भले ही रहे हो लेकिन अब इसकी एक नई पहचान दरभंगा का झाजी अचार (Darbhanga Jhaji Pickle) भी बन गया है. दरभंगा शहर की ननद-भाभी की जोड़ी ने बेहद कम समय में अपने अचार के ब्रांड को दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरू जैसे महानगरों और कई बड़े शहरों तक पहुंचा दिया है. इनके कारखाने में आम, नींबू, इमली, आंवला, मिर्ची और लहसुन जैसे कुल 24 किस्म के अचार बनते हैं. जिनकी पैकिंग 250 ग्राम में होती है और कीमत अधिकतम 299 रुपये तक होती है.
झाजी अचार के ब्रांड बनने की कहानी: आज 'झाजी अचार' एक मशहूर ब्रांड बन चुका है. कल्पना और उमा झा (Kalpana Jha and Uma Jha) की जोड़ी ने पीएम नरेंद्र मोदी के 'वोकल फॉर लोकल' (Narendra Modi Vocal For Local) और आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार कर दिखाया है. ननद कल्पना झा बताती हैं कि वे शुरू से ही अचार बनाने की शौकीन रही हैं. उनके बनाए अचार रिश्तेदार और मेहमान बहुत पसंद करते हैं. पर्व-त्योहार में उनसे मिठाइयों के बदले अचार की डिमांड की जाती थी. उन्होंने बताया कि उनके पति एक आइएएस अधिकारी रहे हैं. इस माध्यम से देश के कई इलाकों में उन्हें घूमने का अवसर मिला है. हर जगह उनके बनाए अचार की तारीफ होती थी. उन्होंने बताया कि पिछले साल पति जब सेवानिवृत्त हुए तो वे बिल्कुल फ्री हो गईं. ऐसे में उन्होंने अपने खाली समय को उपयोगी बनाने की सोची और कोई बिजनेस करने का फैसला किया.
जब शौक को बनाया व्यवसाय: ननद-भाभी ने बताया कि बहुत सोच-समझ कर उन्होंने अपने अचार बनाने के शौक को व्यवसाय बनाने का फैसला किया. उन्होंने बताया कि उनकी अपनी भाभी उमा झा की उनसे बहुत पटती है और दोनों वर्षों से सहेलियां हैं. ऐसे में उन्होंने अचार के व्यवसाय का आइडिया भाभी को बताया. दोनों ने इस पर सहमति बना कर काम को शुरू किया. उन्होंने कहा कि जून 2021 में इसकी शुरूआत की थी. आज कुछ महीने के भीतर ही उनका 'झाजी ब्रांड अचार' भारत के कई इलाकों में पहुंच चुका है. उन्होंने कहा कि उनका अब इसे पूरी दुनिया में भेजने का इरादा है.
24 लोगों को दिया रोजगार: वहीं, भाभी उमा झा ने बताया कि वे पेशे से एक प्राइवेट स्कूल में शिक्षिका हैं. उनकी ननद कल्पना झा ने जब अचार का व्यवसाय शुरू करने का निर्णय लिया तो उन्हें बेहद पसंद आया. उन्होंने कहा कि करीब 20 लाख रुपये की लागत से उन दोनों ने झाजी अचार ब्रांड की शुरूआत की थी. उन्होंने बताया कि कोरोना काल में जब लोगों के रोजी-रोजगार छूट गए थे तो उन्होंने ये व्यवसाय शुरू किया. उन्होंने बताया कि इसमें कुल 24 लोगों को रोजगार दिया गया है, जिनमें 12 वो मजदूर महिलाएं हैं जो लोगों के घरों में चौका-बर्तन और झाड़ू-पोंछा का काम करती थीं.
यही नहीं उन महिलाओं के पति भी बेरोजगार हो गए थे. ऐसे में उन लोगों ने इन सभी को अपने कारखाने से जोड़ा. इन्हें 10-12 हजार रुपये हर महीने सैलेरी दी जाती है जिससे इनकी आर्थिक स्थिति सुधरी है. उन्होंने कहा कि वे लोग ऑनलाइन ऑर्डर लेकर पूरे भारत में कुरियर के माध्यम से अचार पहुंचाती हैं. अब उनका सपना 'झाजी अचार' को विदेशों तक पहुंचाने का है.
गांव पर ही मिला रोजगार: 'झाजी अचार' कारखाने में काम करनेवाली थलवारा गांव की एक महिला कामगार चुकिया देवी ने बताया कि वह पहले लोगों के घरों में झाड़ू-पोछा लगाने का काम करती थीं. हजार-पांच सौ रुपये कमाती थीं जिससे मुश्किल से काम चलता था. कोरोना के समय वह काम भी छूट गया तो घर की हालत बेहद खराब हो गई. उसके पति और बेटे का रोजगार भी छूट गया. ऐसे में कल्पना और उमा जी के कारखाने में उन्हें रोजगार मिला. यहां से वह 10 हजार रुपये हर महीने कमाती हैं. पति और बेटे को भी इसमें रोजगार मिल गया है. उसने बताया कि अब घर की हालत सुधर गई है. वह अपने साथ 10 अन्य महिलाओं को भी यहां लाकर रोजगार दिलवा चुकी हैं.