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गरीबी से 'मुक्ति' नहीं, अंतिम संस्कार को तरसा आदिवासी परिवार, दफन करना पड़ी बेटे की लाश

कुम्हारी के पास आदिवासी बहुल टपरिया टोला में दिव्यांग रूप सिंह आदिवासी युवक की मौत के बाद पीड़ित परिवार की मदद करने के लिए कई सामाजिक संगठन पहुंचे, लेकिन सब वादे कर अपने घर चले गए. पीड़ित मां ने बताया कि प्रशासनिक अधिकारी देर रात घर आए थे, और 1 लाख देने की बात कह कर गए हैं. लेकिन उनके खाते में 1 रुपया भी नहीं आया है.

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दमोह आदिवासी परिवार नहीं किया बेटे अंतिम संस्कार

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Published : Oct 14, 2022, 8:40 PM IST

दमोह।दमोह से एक ऐसी घटना सामने आई है, जिसने प्रशासनिक व्यवस्थाओं और सरकार के दावे और वादों की पोल खोल कर रख दी है. कुम्हारी क्षेत्र में एक दिव्यांग आदिवासी युवक की बीमारी से मौत हो गई. परिवार इतना गरीब है कि न तो उसे अस्पताल में भर्ती कराया जा सका और न ही इलाज मिल पाया. इससे पहले इलाज न मिलने से बच्चे के पिता की भी मौत हो गई थी. गरीबी की वजह से ना तो ये परिवार अपने बच्चे का इलाज कराया पाया और ना ही उसका अंतिम संस्कार कर पाया. हिंदू रीति-रिवाजों को मानने वाले इस परिवार को पैसों के अभाव में बेटे की लाश को दफन करना पड़ा. इस दौरान उन्हें प्रशासन या सरकार से भी कोई मदद नहीं मिली.

दमोह आदिवासी परिवार नहीं किया बेटे अंतिम संस्कार

बीमारी का भी नहीं मिला इलाज: घटना दमोह से 43 किमी दूर आदिवासी बहुल टपरिया टोला गांव की है. यहां प्यारी बाई आदिवासी का दिव्यांग बेटा रूप सिंह 17 साल की मौत हो गई. वह तीन माह से बीमार था. मां ने बताया कि इलाज के लिए पैसा नहीं था. अंतिम संस्कार के लिए भी उनके पास पैसा नहीं था, जिसके बाद जब कहीं से कोई मदद नहीं मिली तो गड्‌ढा खोदकर उसे दफन कर दिया गया. दिव्यांग आदिवासी की मौत के बाद प्रशासन को होश आया है. अब प्रशासनिक अधिकारी मदद देने के लिए मृतक के घर पहुंचे, वादे तो बहुत किए, लेकिन मृतक के परिजनों को अब तक कोई आर्थिक सहायता नहीं मिली है.

अंतिम संस्कार के लिए नहीं थे परिवार के पास पैसे:मृतक की मां ने बताया कि उनके तीन बेटों में से एक रूप सिंह था. वह बीमार था और उसकी मौत हो गई. दो अन्य बेटे भी कुपोषित और बीमार हैं. पीड़िता ने कहा कि अगर वह किसी तरह से अंतिम संस्कार कर भी देते तो उन्हें समाज के लोगों को भोजन कराना पड़ता. यहां तो खुद को खाने के लाले पड़े हैं समाज को भोजन कैसे कराते? पीड़ित मां ने बताया कि प्रशासनिक अधिकारी देर रात घर आए थे, और 1 लाख देने की बात कह कर गए हैं. लेकिन रुपया अभी तक खाते में नहीं आया है.

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सरकार और प्रशासन से नहीं मिली कोई मदद: रेड क्रॉस सोसायटी ने भी 10 हजार देने की पेशकश की लेकिन रुपया मृतक की मां के खाते में नहीं पहुंचा. कुछ अन्य सामाजिक संस्थाओं ने भी इस मामले में पहल की है, लेकिन अभी तक मृतका की मां के हाथ खाली है. फिलहाल सरकार की तमाम योजना और घोषणाओं पर प्रश्न चिन्ह लग गया है. मृतक की मां का कहना है कि उनके तीनों बेटों में से किसी की भी सामाजिक सुरक्षा या दिव्यांग पेंशन नहीं आती है. स्वयं उसका नाम भी इस सामाजिक सुरक्षा पेंशन में जुड़ा है, लेकिन बैंक वालों का कहना है कि तुम्हारा आधार लिंक नहीं है और खाते में पैसे भी नहीं आए तो हम तुम्हें कैसे देंगे.

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