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पंजाब : दलितों के दर्द पर राजनीति का 'मरहम' क्या इससे बदलेंगे जमीनी हालात? जानें सच्चाई

पंजाब की राजनीति में अचानक 'दलित' शब्द काफी प्रासंगिक हो गया है. हालांकि यह दलितों के वास्तविक उत्थान के लिए कम, उनके वोट पाने की लालसा में ज्यादा प्रचारित किया जा रहा है. बुनियादी शिक्षा, जरूरी रोजगार और आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं से महरूम दलित अब भी राजनैतिक दलों के लिए सिर्फ 'वोटबैंक' ही हैं. उन्हें अपने हक और हुकूक के लिए सड़कों पर आवाज बुलंद करनी ही पड़ती है. यह दलितों सहित हर उस गरीब तबके का दुर्भाग्य है कि चुनावी मौसम में उनके हाथ राजनीति का 'झुनझुना' पकड़ाकर पार्टियां अपना पॉलिटिकल हित साधती हैं. फिलहाल पंजाब के 32 फीसदी दलित वोटरों का भी यही दर्द है. समस्याएं जस की तस हैं लेकिन उनके हित की बात करने वालों की तादाद थोक के भाव बढ़ रही है. चुनावी आहट के बीच पंजाब में दलितों की जमीनी हकीकत तलाशती एक रिपोर्ट.

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Published : Sep 26, 2021, 7:47 PM IST

Updated : Sep 26, 2021, 8:36 PM IST

Dalit
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चंडीगढ़ : पंजाब में इस बार 2022 विधानसभा मतदान में हर पार्टी दलित कार्ड खेलने की तैयारी कर रही है. एक तरफ जहां शिरोमणी अकाली दल, बहुजन समाज पार्टी गठबंधन की तरफ से दलित डिप्टी सीएम बनाने की बात की जा रही है. तो वही दूसरी तरफ भाजपा दलित सीएम बनाने की बात कर रही है.

इसके उलट पिछले दिनों पंजाब कांग्रेस में हुए फेरबदल के बाद कांग्रेस हाईकमान की तरफ से दलित मुख्यमंत्री बनाकर सभी की जुबान बंद कर दी है. कांग्रेस की तरफ से दलित मुख्यमंत्री बनाने के बाद पंजाब में दलित भाईयों में खुशी भी नजर आ रही है. बावजूद इसके एक सवाल भी खड़ा होता है कि बेशक दलित मुख्यमंत्री बना दिया गया परन्तु क्या मुख्यमंत्री दलितों की आवाज को सचमुच सुनेगा? और क्या पंजाब में दलितों की समस्याएं को हल हो जाएंगी.

दलितों के दर्द पर राजनीति का 'मरहम' क्या इससे बदलेंगे जमीनी हालात?

इसमें सबसे मुख्य यह है कि आखिर दलित समाज को कौन सी मुश्किलें या समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. इस बारे में दलित महासभा पंजाब के संयोजक प्रेम कुमार डुमेली ने बताया कि पंजाब में दलितों की संख्या करीब बत्तीस प्रतिशत है. इसी के चलते पार्टियां दलित कार्ड तो खेलतीं हैं परन्तु वह समस्याओं का हल नहीं करतीं.

बच्चों की पढ़ाई पर प्रेम कुमार डुमेली ने बताया कि दलितों की सबसे बड़ी समस्या उनके बच्चों की शिक्षा से जुड़ी है. उन्होंने बताया कि केंद्र और सूबे की सरकार की ओर से पोस्ट मैट्रिक स्कालरशिप स्कीम तो चलाई गई है, परन्तु सरकारों की ओर से कालेज और यूनिवर्सिटी के विद्यार्थियों के लिए वजीफे का पैसा नहीं मिलता.

इसके चलते दलित विद्यार्थियों की डिग्रियां रोकी जा रही हैं या उनको कालेजों में दाखिला नहीं मिलता. कई स्थानों पर उनको परीक्षा देने से भी रोका जाता है. जिस वजह से दलित विद्यार्थी को पढ़ाई छोड़कर सड़क पर अपने हक के लिए लड़ना पड़ता है. कहा कि देखना होगा कि मुख्यमंत्री की तरफ से शिक्षा को लेकर क्या कदम उठाए जाते हैं.

नौकरी की समस्या पर प्रेम कुमार डुमेली ने बताया कि पंजाब में दूसरी सबसे बड़ी समस्या दलित वर्ग को नौकरियों की आती है. उन्होंने बताया कि यदि दलित वर्ग के बच्चे यदि पढ़ लिख जाते हैं तो उनको नौकरी आसानी के साथ नहीं मिलती. उन्होंने कहा कि यदि नौकरी मिलती है तो उसे तरक्की के लिए कई तरह के पापड़ बेलने पड़ते हैं.

मकान बनाने की समस्या से जुड़ी बातचीत करते हुए डुमेली ने बताया कि दलित वर्ग गरीब होने के कारण मकान नहीं बना पाते हैं. आर्थिक हालत ठीक न होने के कारण पक्का मकान बनाना उसके लिए बहुत मुश्किल होता है. उन्होंने कहा कि जब राजनैतिक नेताओं को वोट लेना हो तो उनकी तरफ से दलित कार्ड तो खेला जाता है लेकिन जीत के बाद सब भूल जाते हैं.

ठेकेदारी व्यवस्था के कारण नुकसान पर डुमेली ने कहा कि पंजाब में सरकार की तरफ से अब नौकरियों के लिए ठेकेदारी व्यवस्था का प्रयोग किया जा रहा है. यही कारण है कि बेरोजगारी, गरीबी जैसी समस्याएं जस की तस हैं. उन्होंने कहा कि सरकारों को दलित वर्ग की याद वोटों के समय ही आती है.

दलित विद्यार्थियों के संगठन पंजाब प्रधान नवदीप का कहना कि आजादी से लेकर अब तक सिर्फ तीन मांग ही दलित वर्ग मांगता आया है. जिसमें शिक्षा, सेहत और रोजगार शामिल है. उन्होंने कहा कि मौजूदा समय भी दलित इन तीनों समस्याओं से जूझ रहा है. पंजाब में कई राजनैतिक पार्टियां आईं परन्तु इन मसलों को हल नहीं कर सकीं.

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उन्होंने कहा कि पंजाब के नए मुख्यमंत्री उनके समुदाय से हैं तो आशा रखते हैं कि वह जरूर समस्याओं का हल निकालेंगे. अब देखना यह होगा कि पंजाब की अलग-अलग राजनैतिक पार्टियां दलित वोट बैंक को लेकर दलित कार्ड तो चल रही हैं परन्तु उन की समस्याएं कितनी दूर होती हैं.

Last Updated : Sep 26, 2021, 8:36 PM IST

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