हैदराबाद: शनिवार को कांग्रेस कार्यसमिति (Congress Working Committee) की बैठक होगी. कांग्रेस का कुनबा जब एक टेबल पर बैठेगा तो कई चुनौतियां मेज पर पहले से इंतजार कर रही होंगी. वैसे कांग्रेस इस वक्त अपने सबसे मुश्किल दौर से गुजर रही है. उसके कई अपने पराये हो चले हैं और कुछ परायों जैसा सलूक कर रहे हैं. लेकिन अपने इस हाल के लिए खुद कांग्रेस और सबसे ज्यादा वो गांधी परिवार जिम्मेदार है जिसकी छत्रछाया से पार्टी कभी बाहर निकल ही नहीं पाई. बीते 7 सालों से मुश्किलों का दौर झेल रही कांग्रेस के सामने एक बार फिर मौका है लेकिन ये मौका उसे अपनी पैदा की हुई मुश्किलों का हल ढूंढने के बाद ही मिलेगा.
कांग्रेस की कलह गाथा
ये कांग्रेस की बहुत पुरानी बीमारी है जो केंद्रीय नेतृत्व से लेकर राज्यों तक जैसे नस-नस में समा चुकी है. देश में ऐसा एक भी सूबा ढूंढे नहीं मिलेगा जहां कांग्रेस में दो या उससे ज्यादा धड़े ना हों. इस अंदरूनी कलह का कांग्रेस कई बार खामियाजा भी भुगत चुकी है लेकिन ठोस हल कभी नहीं निकल पाता और नुकसान पार्टी को ही होता है. फिलहाल देश के जिन तीन राज्यों में कांग्रेस की सरकार है, उन्हीं राज्यों में सबसे ज्यादा सिर फुटव्वल का दौर चल रहा है.
1) पंजाब-कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द इन दिनों पंजाब ही बना हुआ है. बीते एक महीने में पंजाब की सियासत में क्या कुछ नहीं हुआ. सिद्धू बनाम अमरिंदर की जंग में पहले कैप्टन अमरिंदर सिंह का इस्तीफा हुआ और फिर पार्टी ने पंजाब में पहला दलित मुख्यमंत्री बना दिया. इस कदम को एक तिहाई दलित आबादी वाले पंजाब में पार्टी का मास्टरस्ट्रोक माना जा रहा था लेकिन दो दिन बाद ही नवजोत सिंह सिद्धू ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया. ये वही नवजोत सिंह सिद्धू है जिनके चलते कांग्रेस ने अमरिंदर सिंह तक को दांव पर लगा दिया.
सिद्धू और अमरिंदर सिंह का रिश्ता किसी से छिपा नहीं है. इस पूरे प्रकरण में अमरिंदर सिंह सिद्धू से लेकर कांग्रेस नेताओं और आलाकमान के खिलाफ मुखर दिखे, सिद्धू के प्रदेश अध्यक्ष बने रहने पर मुहर लग चुकी है. लेकिन अमरिंदर सिंह ने अगर कांग्रेस के खिलाफ झंडा उठा लिया तो कांग्रेस पंजाब में 'हाथ' मलती भी रह सकती है. पंजाब में अगले साल की शुरूआत में चुनाव होने हैं.
2) राजस्थान- राजस्थान में भी कांग्रेस गहलोत और पायलट खेमों में बंटी हुई है. बीते साल पायलट की बगावत के बाद उनके पद छीन लिए गए, पायलट समर्थकों का कद घटा दिया गया. इसके बाद फिर से मान मनौव्वल का दौर चला, कमेटी बनीं, बैठकें हुए, शर्तें तय हुई लेकिन एक साल से ज्यादा का वक्त होने के बाद भी रास्ता नहीं निकला. पायलट अपने समर्थकों के लिए सरकार और संगठन में हिस्सेदारी चाहते हैं. वो कभी सूबे के डिप्टी सीएम और प्रदेश अध्यक्ष थे लेकिन आज वो और उनका कुनबा ठन-ठन गोपाल है. राजस्थान भले चुनावी राज्य ना हो लेकिन वक्त रहते फैसला नहीं हुआ तो पार्टी को अंजाम थोड़ी देर बाद ही सही लेकिन भुगतने पड़ सकते हैं.
3) छत्तीसगढ़- 15 साल बाद कांग्रेस इस राज्य में सत्ता में लौटी लेकिन सरकार बनने के ढाई साल बाद ही उठापटक का दौर शुरु हो गया. नेतृत्व का फार्मूला काम नहीं आया. भूपेश बघेल बनाम टी एस सिंह देव की जंग कई बार दिल्ली दरबार में भी दस्तक दे चुकी है. सिंहदेव को अभी भी बदलाव का इंतजार, वो मन ही मन कह रहे हैं कि 'अपना टाइम आएगा'. दूसरी तरफ बघेल विधायकों की ताकत और अपने काम के आधार पर बदलाव की हर कोशिश को दरकिनार करने पर तुले हैं और आलाकमान एक बार फिर से वेट एंड वॉच के मोड में है. जो कब तक चलेगा खुद आलाकमान भी नहीं जानता.
4) G-23- कांग्रेसियों के इस ग्रुप से कुछ चेहरे 'हाथ' छोड़ चुके हैं तो कुछ नए चेहरे जुड़े हैं लेकिन कांग्रेसियों का ये जमावड़ा एक तरह के कांग्रेस के खिलाफ ही बना है. इस गुट में पार्टी के बड़े-बड़े चेहरे शुमार हैं लेकिन अलग धारा में बहने का खामियाजा इन्हें भी भुगतना पड़ा है. कांग्रेस के ये अपने पार्टी के लिए किसी विरोधी से कम नहीं है ऐसे में जी-23 के बगावती तेवरों का नुकसान पार्टी को ना हो इसका हल भी खोजना होगा. बीते दिनों इस गुट के कपिल सिब्बल, गुलाम नबी आजाद जैसे नेताओं ने ही बैठक बुलाने की बात कही थी साथ ही अध्यक्ष को लेकर भी सवाल उठाए थे.
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5) अपने हो रहे पराये- कांग्रेस की कलह गाथा का ही नतीजा है कि उसके कई चेहरे पराए हो गए हैं. साल 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले शुरू हुआ ये सिलसिला बदस्तूर जारी है. चौधरी बीरेंद्र सिंह, राव इंद्रजीत सिंह, रीता बहुगुणा जोशी, विजय बहुगुणा, ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद जैसे चेहरे हाथ छोड़कर कमल थाम चुके हैं. ये फेहरिस्त बहुत लंबी है और यही चेहरे फिर कांग्रेस की हार की वजह भी बने हैं. ऐसा ज्यादातर चुनाव से पहले हो रहा है और इसकी वजह आलाकमान की फैसले लेने या फिर स्टैंड लेने की नाकामी भी है. ऐसे में अपनों को पराये होने से रोकने के लिए भी पार्टी को कोई रास्ता निकालना होगा.
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