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हिरासत में पूछताछ का आधार नहीं, इसलिए अग्रिम जमानत दे देना गलत परंपरा : सुप्रीम कोर्ट - anticipatory bail custodial interrogation

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा है कि अभियोजन द्वारा हिरासत के दौरान पूछताछ का कोई मामला नहीं बनता है, केवल इस आधार पर अग्रिम जमानत दिए जाने की गलत गंभीर अवधारणा दिखायी देती है. उक्त बातें जस्टिस सूर्यकांत (Justice Surya Kant) और जस्टिस जेबी पारदीवाला (Justice J B Pardiwala) की पीठ ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहीं.

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Published : Oct 27, 2022, 3:37 PM IST

Updated : Oct 27, 2022, 4:20 PM IST

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने उच्च न्यायालयों (High Courts) द्वारा इस आधार पर आपराधिक मामलों में आरोपियों को अग्रिम जमानत देने की आलोचना की है कि उनसे हिरासत में पूछताछ की आवश्यकता नहीं है. न्यायमूर्ति सूर्यकांत (Justice Surya Kant) और न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला (Justice J B Pardiwala) की पीठ ने कहा कि एक गंभीर गलत अवधारणा है कि अगर अभियोजन द्वारा हिरासत में पूछताछ का कोई मामला नहीं बनता है तो केवल इस आधार पर अग्रिम जमानत दे दी जाएगी.

पीठ ने कहा, 'अग्रिम जमानत के कई मामलों में हमने एक समान दलील देखी है कि अगर हिरासत में पूछताछ की कोई आवश्यकता नहीं है तो अग्रिम जमानत दी जा सकती है. इसमें कानून की गंभीर गलत अवधारणा दिखायी देती है कि अगर अभियोजन द्वारा हिरासत में पूछताछ का कोई मामला नहीं बनता है तो केवल इस आधार पर अग्रिम जमानत दे दी जाएगी.'

न्यायालय ने कहा, 'हिरासत में पूछताछ अग्रिम जमानत याचिका पर फैसला करते हुए अन्य आधारों के साथ ही संबंधित पहलुओं में से एक हो सकती है.' उसने कहा कि ऐसे कई मामले हो सकते हैं जिनमें आरोपी से हिरासत में पूछताछ की आवश्यकता नहीं होती लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि आरोपी के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामले को नजरअंदाज किया जाए या उस पर ध्यान न दिया जाए और उसे अग्रिम जमानत दे दी जाए.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही अदालत को सबसे पहले इस बात पर गौर करना चाहिए कि क्या आरोपी के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला बनता है. उसने कहा, 'इसके बाद दंड की गंभीरता के साथ ही अपराध की प्रकृति पर गौर करना चाहिए. अग्रिम जमानत देने से इनकार करने का एक आधार हिरासत में पूछताछ हो सकता है. हालांकि, अगर हिरासत में पूछताछ की आवश्यकता नहीं होती तो यह अग्रिम जमानत देने का इकलौता आधार नहीं हो सकता.'

उच्चतम न्यायालय ने केरल के वायनाड जिले में बाल यौन अपराध संरक्षण कानून, 2012 के विभिन्न प्रावधानों के तहत एक आरोपी को दी गयी अग्रिम जमानत रद्द करते हुए यह टिप्पणी की. न्यायालय ने कहा कि उच्च न्यायालय की टिप्पणियां पूरी तरह अवांछित हैं और यह प्राथमिकी में कुछ आरोपों पर गौर न करते हुए की गईं. उच्चतम न्यायालय की पीठ ने कहा, 'ऐसे गंभीर आरोपों वाले मामले में उच्च न्यायालय को गिरफ्तारी के खिलाफ सुरक्षा देने में अपने न्यायाधिकार का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए और जांच अधिकारी को जांच को तार्किक निष्कर्ष तक पहुंचाने की पूरी छूट मिलनी चाहिए.'

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(पीटीआई-भाषा)

Last Updated : Oct 27, 2022, 4:20 PM IST

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