नई दिल्ली :उच्चतम न्यायालय ने बर्खास्त आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट की 1990 के हिरासत में मौत के एक मामले में अपनी दोषसिद्धि के खिलाफ गुजरात उच्च न्यायालय में अपनी अपील के समर्थन में अतिरिक्त सबूत पेश करने की याचिका बुधवार को खारिज कर दी. इससे पहले मंगलवार को शीर्ष अदालत ने मामले की सुनवाई से न्यायमूर्ति एम आर शाह को अलग करने की भट्ट की याचिका भी खारिज कर दी थी. उच्चतम न्यायालय ने भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के बर्खास्त अधिकारी संजीव भट्ट की उस याचिका पर मंगलवार को फैसला सुरक्षित रख लिया था. जिसमें उन्होंने 1990 के हिरासत में मौत मामले में दोषसिद्धि के खिलाफ गुजरात उच्च न्यायालय में अपनी अपील के समर्थन में अतिरिक्त साक्ष्य प्रस्तुत करने से संबंधित मामले की सुनवाई से न्यायमूर्ति एमआर शाह को हटाने की गुहार लगायी थी.
भट्ट के वकील ने दलील दी कि पूर्वाग्रह की एक उचित आशंका है, क्योंकि गुजरात उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में न्यायमूर्ति शाह ने उसी प्राथमिकी से जुड़ी उनकी याचिका पर सुनवाई करते हुए उनके मुवक्किल को फटकार लगाई थी. हालांकि इसका गुजरात सरकार और शिकायतकर्ता के वकील ने पुरजोर विरोध किया तथा कहा कि आखिरकार पहले यह मामला क्यों नहीं उठाया गया था. न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार की एक पीठ ने भट्ट की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत, गुजरात सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले मनिंदर सिंह और शिकायतकर्ता की ओर से पेश आत्माराम नाडकर्णी की दलीलें सुनने के बाद बुधवार को आदेश पारित किया.
भट्ट ने प्रभुदास वैष्णानी की हिरासत में मौत के मामले में अपनी सजा को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय में अपील दायर की थी. वैष्णानी को एक सांप्रदायिक दंगे के बाद जामनगर पुलिस ने पकड़ा था. शुरुआत में, कामत ने दलील दी कि न्यायमूर्ति शाह ने उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में इसी प्राथमिकी से उत्पन्न भट्ट की याचिका पर सुनवाई करते हुए याचिकाकर्ता की निंदा की थी और फटकार लगाई थी. कामत ने कहा कि इस अदालत के लिए मेरे मन में सर्वोच्च सम्मान है, लेकिन न्याय न केवल किया जाना चाहिए, बल्कि होता हुआ दिखना भी चाहिए. न्यायिक औचित्य की मांग है कि आप इस मामले की सुनवाई से अलग हो जाएं.