नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ग्रीस से सीधे बेंगलुरु जाने और इसरो के वैज्ञानिकों से व्यक्तिगत तौर पर मिल कर बधाई देने की खबरों के बाद कयास लगाया जा रहा है कि बीजेपी ने चंद्रयान की सफलता को आने वाले चुनावों के लिए एक बड़ा मुद्दा बना लिया है. लेकिन क्या ये सब आने वाले चुनावों को लेकर केवल एक पॉलिटिकल गिमिक है या फिर वोट डालने से पहले सचमुच लोगों पर इसका असर पड़ेगा, ये जानने के लिए हमारे नेशनल ब्यूरो चीफ राकेश त्रिपाठी ने सीएसडीएस यानी सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवेलपिंग सोसाइटीज़ के डायरेक्टर संजय कुमार से बातचीत की. संजय कुमार देश के मशहूर चुनाव विश्लेषकों में से एक हैं और उनके कई चुनावी आकलन वास्तविक परिणाम के काफी करीब साबित हुए हैं. आप भी पढ़िए.
सवाल- प्रधानमंत्री मोदी ग्रीस से सीधे दिल्ली न आकर बेंगलुरु पहुंच रहे हैं. माना जा रहा है कि विदेश यात्रा से सीधे वैज्ञानिकों को बधाई देने के लिए जाकर वे दरअसल आने वाले चुनावों में इस सफलता को भुनाना चाहते हैं. क्या वाकई में ऐसी कोशिशों से वोट मिलते हैं ?
जवाब- देखिए, आज की राजनीति में नैरेटिव का बहुत बड़ा रोल है. ग्रीस से सीधे प्रधानमंत्री का बेंगलुरु उतरना और वैज्ञानिकों को बधाई देने जाना एक तरह से जनता को संदेश देने की कोशिश की जा रही है कि चाहे छोटा मुद्दा हो, बड़ा मुद्दा हो...संपर्क रखना, हर चीज़ पर नज़र रखना, उस पर ध्यान देना, हर चीज को महत्व देना और प्रोत्साहित करना, इससे एक पॉजिटिव नैरेटिव बनता हुआ दिखाई देता है. ये कनेक्टिविटी है, कनेक्ट टू द पीपुल, कनेक्ट टू द सिचुएशन है, तो इस तरह से एक नैरेटिव बनाने में मदद मिलती है. अब सीधे-सीधे नहीं कहा जा सकता है कि इससे एक या दो पर्सेंट वोट बढ़ जाएगा. लेकिन ये सब करना पॉज़िटिव नैरेटिव ही बना रहा है, इससे कोई निगेटिविटी नहीं दिखाई पड़ रही है.
सवाल- राजनीति को पास से देखने और समझने वाले अक्सर कहते हैं कि वे ऐसे मौकों को हाथ से जाने नहीं देते, उनका इस्तेमाल करते हैं. क्या ये ठीक है ?
जवाब- अगर आप लीडरशिप के रोल में हैं तो किसी को भी ऐसे मौक छोड़ने नहीं चाहिए. इससे पहले दूसरे नेता ऐसे मौकों का फायदा नहीं उठा सके, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ऐसे मौकों का खूब फायदा उठाते हैं और वो प्रधानमंत्री हैं तो उनसे अपेक्षा भी की जाती है कि वो लीडरशिप के रोल में हैं, उन्हें देश के लिए किसी भी पॉज़िटिव मौके को नहीं छोड़ना चाहिए.