हैदराबाद : जिन देशों ने डिजिटल करेंसी या सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (सीबीडीसी) को लागू करने की इच्छा जताई है, उनमें भारत भी शामिल हो गया है. भारतीय रिजर्व बैंक उसमें अपनी भूमिका निभाएगा. क्रिप्टोकरेंसी के विपरीत सीबीडीसी एक कानूनी निविदा है, जिसकी गारंटी उस देश की केंद्रीय बैंक प्रदान करती है. इसका अर्थ है कि उस देश से कागज या धातु की मुद्रा खत्म हो जाएगी. वहां पर डिजिटल करेंसी ही चलेगी. आप फोन, डिजिटल वॉलेट या कंप्यूटर के माध्यम से ही पैसों का लेन-देन कर सकेंगे. कुछ लोगों के लिए यह चिंताजनक हो सकता है, क्योंकि कागज की मुद्रा का चलन पिछले 200 सालों से भी अधिक समय से हो रहा है.
स्वीडन और चीन सबसे आगे
डिजिटल मुद्रा लागू करने की दौड़ में स्वीडन और चीन सबसे आगे हैं. स्वीडन को दुनिया का 'कैशलेस सोसाइटी' कहा जाता है. इस बात में कोई संदेह नहीं है कि डिजिटल मुद्रा की दिशा में तेजी से बढ़ने की वजह से बिटकॉइन को बढ़ावा मिला है. भ्रम की वजह से इसे 'सट्टा संपत्ति' के बजाए मुद्रा मान लिया गया है.
भारत बिटकॉइन की जगह पर डिजिटल मुद्राओं को बढ़ावा देने के पक्ष में है. हालांकि, भारत क्रिप्टोकरेंसी पर प्रतिबंध लगाने के बजाए उसे नियमित करना चाहता है.
क्या है क्रिप्टोकरेंसी
परिसंपत्तियों का डिजिटल रूप है क्रिप्टोकरेंसी. इसे अक्सर 'प्राइवेट करेंसी' भी कहा जाता है. ब्लॉकचेन की तरह यह 'डिस्ट्रीब्यूटेड लेजर टेक्नोलॉजी' पर आधारित है. इसका मतलब है कि इसकी प्रामाणिकता साबित करना आसान है, जालसाजी मुश्किल. सीमित मात्रा में चलन होने की वजह से जब भी इसकी मांग में वृद्धि होती है, कीमत बढ़ जाती है. क्रिप्टोकरेंसी में सबसे प्रमुख है बिटकॉइन. 95 प्रतिशत कारोबार टॉप 10 क्रिप्टोकरेंसी में ही होता है. बिटकॉइन के अलावा अन्य क्रिप्टोकरेंसी हैं- एथिरियम, एक्सआरपी, टिथर, बिटकॉइन कैश, बिटकॉइन एसवी और लिटकॉइन.
कब से बिटकॉइन की हुई शुरुआत
बिटकॉइन की शुरुआत कब से हुई, इसके बारे में ठीक-ठीक पता नहीं है. 2009 के आसपास इसका प्रचलन देखने को मिला. सतोशी नाकामोटो नाम के व्यक्ति ने इसका प्रयोग किया था, लेकिन आजतक इनके बारे में किसी को जानकारी नहीं है. आज की तारीख में एक बिटकॉइन की कीमत 42 लाख रुपये हैं. एक अनुमान के मुताबिक 6223 क्रिप्टोकरेंसी बाजार में हैं. इसकी कुल कीमत 1.80 ट्रिलियन डॉलर होगी. पिछले 12 सालों में इसकी कीमत तेजी से बढ़ी है. इसका मतलब है कि केंद्रीय बैंकों को डिजिटल परिसंपत्तियों को नए नजरिए से देखने की जरूरत है. यह देश की सीमाओं में बंधने वाला नहीं है. परिसंपत्तियों या धन के ऐसे डिजिटल रूपों का राष्ट्रीय और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर व्यापक प्रभाव पड़ता है.
महत्व
हाल ही में डिजिटल भुगतान में काफी वृद्धि देखने को मिली है. तकनीक के बढ़ते प्रयोग की वजह से इसमें आसानी हुई है. इसके फायदे भी हैं और जोखिम भी हैं. इलेक्ट्रॉनिक मुद्रा में नकली लेन-देन की गुंजाइश बहुत कम होती है. नगदी की तरह लागत नहीं लगती है. हार्ड करेंसी में प्रिटिंग करवानी पड़ती है. ट्रांसफर में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. रिजर्व बैंक को मुद्रा की छपाई और सुरक्षा के लिए 2019-20 में लगभग 4400 करोड़ खर्च करने पड़े थे. एक मुद्रा नोट का औसत जीवन काल दो साल या उससे कम होता है. डिजिटल मुद्रा डिस्ट्रीब्यूटेड लेजर टेक्नोलॉजी पर आधारित है. इसकी नकल मुश्किल है. प्रौद्योगिकी सक्षम सुविधाओं की तरह आर्थिक चक्र को गति देने की क्षमता रखती है. हो सकता है आरबीआई के पास अभी इस तरह का कोई आंकड़ा न हो, इसलिए उसका विश्लेषण नहीं हो सका है.
सुरक्षित है सीबीडीसी
भविष्य में कागजी मुद्रा की जगह अगर सीबीडीसी लेता है, तो इस पर चिंता करने की कोई बात नहीं है. नौ अक्टूबर 2020 को बैंक ऑफ इंटरनेशनल सेटलमेंट्स (बीआईएस) या सेंट्रल बैंकर्स ऑफ सेंट्रल बैंक ने एक दिशानिर्देश जारी किया था. इसके अनुसार सीबीडीसी के साथ-साथ अन्य प्रकार के मुद्राओं को जारी रखा जा सकता है. ये एक दूसरे के पूरक होने चाहिए. ऐसा भी नहीं है कि भारत सीबीडीसी के साथ प्रयोग करने वाला एकमात्र देश है. चीन भारत से बहुत आगे है. केंद्रीय बैंकों का ध्यान आम लोगों को क्रिप्टोकरेंसी से दूर करने और सीबीडीसी का अधिक से अधिक उपयोग करने को लेकर बढ़ावा देने का होना चाहिए. कोविड के दौरान लॉकडाउन हुआ और तब डिजिटल भुगतान को लेकर लोगों को इसके महत्व के बारे में पता चला. चीन ने स्पष्ट रूप से कहा है कि 2025 तक नौ फीसदी लेनदेन मोबाइल के जरिए सुनिश्चित किया जाएगा.
प्रमुख चिंताएं
सीबीडीसी का ये मतलब नहीं है कि क्रिप्टोकरेंसी खत्म हो जाएंगे. या फिर धन के दूसरे रूपों का पूरी तरह से सफाया हो जाएगा. बल्कि उन क्षेत्रों में जहां इंटरनेट की पहुंच नहीं है और पहुंच है तो स्पीड को लेकर समस्या है, वहां पर डिजिटल करेंसी के उपयोग करने को लेकर महत्वपूर्ण सवाल हैं. इन समस्याओं का निदान मिलते-मिलते सालों लग जाएंगे. साइबर सुरक्षा और निजता के उल्लंघन जैसे सवाल तो पहले से मौजूद हैं.
दूसरी सबसे बड़ी समस्या है राष्ट्रीय सीमा का. क्योंकि इंटरनेट के जरिए लेन-देन को लेकर देश की सीमा के कोई मायने नहीं होते हैं. मनी लॉन्ड्रिंग, कनवर्टिबलिटी और नियमन को लेकर एक देश के कानून दूसरे देशों के कानून से मिलने में दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा. जाहिर है, इससे व्यवसाय की गति धीमी जरूर होगी.
तीसरी समस्या है निजता के उल्लंघन का. हमारे यहां लोग पैसों के लेन-देन को सार्वजनिक नहीं करना चाहते हैं. लेकिन सीबीडीसी के जरिए आपके पैसों की हर गतिविधि पर नजर बरकरार रहेगी. सरकार के अधिकारियों की नजर में आप रहेंगे. इलेक्ट्रॉनिक फुटप्रिंट को छिपाया नहीं जा सकता है. ऐसे में सरकार की क्या नीति होगी, इस पर सबकी नजर बनी रहेगी. इन कमियों के बावजूद आने वाले समय में सीबीडीसी किस तरीके से काम करेगा, सबको इसकी प्रतीक्षा है.
(लेखक- एस अनंत, वित्तीय मामलों के जानकार)