हैदराबाद : भारत में सबसे अधिक संख्या में जनप्रतिनिधि चुने जाते हैं, जो कानून बनाने की प्रक्रिया में भाग लेते हैं. जब देश आजाद हुआ था, तब देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने कहा था कि इन जन प्रतनिधियों के प्रयास की बदौलत लोगों को सबसे अधिक लाभ पहुंचेगा और मुझे उम्मीद है कि इस मामले में यह संसद बेहतरीन मिसाल पेश करेगा.
पं. जवाहर लाल नेहरू ने संसद को महान संस्थान बताते हुए कहा था कि यह दुनिया की सातवीं सबसे बड़ी आबादी का इतिहास लिख रहा है. लोकसभा के पहले अध्यक्ष जीवी मावलंकर ने संसद की उत्कृष्ट परंपरा और मूल्यों को स्थापित करने में कोई कसर बाकी नहीं रहने दी. 1954 में 'द गार्डियन' ने भारतीय संसद के काम करने के तरीके की प्रशंसा करते हुए लिखा था कि यह पूरे एशिया के लिए एक स्कूल साबित हो सकता है. आप कह सकते हैं कि उन दिनों सांसद जनसेवा के प्रति पूरी तरह से जिम्मेवार होते थे.
उस समय के सांसदों ने दूरदर्शिता दिखाई, उन्हें पता था कि विधानमंडल की प्रतिष्ठा धूमिल हुई तो प्रजातंत्र खतरे में पड़ जाएगा. अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धता को अलग रखते हुए उन दिनों सभी सांसद मिलकर गलत करने वालों को हटा दिया करते थे. कांग्रेस सासंद फिरोज गांधी ने मुदगल नाम के एक सांसद के मामले को उजागर किया था. उनके अनुसार मुदगल ने सवाल उठाने के लिए दो हजार रुपये लिए थे. मुदगल कांग्रेस पार्टी के सांसद थे. नेहरू ने सितंबर 1951 में उन्हें पार्टी से निकाल दिया था. नेहरू ने दिखाया कि संसद की पवित्रता कायम रखने के लिए प्रतिबद्धता जरूरी है.
लेकिन आज का परिदृश्य कुछ और है. उन महान नेताओं के संकल्प और उन्होंने जो सपने देखे थे, वह कहीं नजर नहीं आ रहा है. विधानमंडल के इस नैतिक पतन की क्या वजहें हैं. आज संसद से लेकर विधानसभा में आपराधिक छवि वालों की भरमार है.