नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि देश की दूषित हो रही राजनीति को स्वच्छ करना सरकार की विधायी शाखा की तत्काल चिंता नहीं है, जबकि राष्ट्र इस बारे में लगातार इंतजार कर रहा है और उसका अब धैर्य जवाब दे रहा है.
शीर्ष अदालत ने कहा कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों को विधि निर्माता बनने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए, लेकिन न्यायालय द्वारा राजनीति में ऐसे व्यक्तियों की संलिप्तता निषेध करने के लिए आवश्यक संशोधन पेश करने के बारे में की गई तमाम अपीलों पर किसी के कान पर जूं नहीं रेंग रही और राजनीतिक दलों ने इस मामले में गहरी नींद से जागने से इनकार कर दिया है.
न्यायालय ने कहा कि भारत की राजनीतिक प्रणाली का दिन-प्रतिदिन अपराधीकरण बढ़ रहा है. न्यायालय ने लोकतंत्र के विभिन्न अंगों के अधिकारों को अलग करने की संवैधानिक योजना का जिक्र किया और कहा कि इस मामले में तत्काल कुछ न कुछ करने की आवश्यकता है.
न्यायालय ने कहा कि उसके हाथ बंधे हुए है और वह विधायी कार्यों के लिए निर्धारित क्षेत्र का अतिक्रमण नहीं कर सकता है. न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने कहा, 'देश इंतजार करना जारी रखे है, और धैर्य जवाब दे रहा है. राजनीति को स्वच्छ करना सरकार की विधायी शाखा की तत्काल चिंता नहीं है.'
पीठ ने कहा कि वह कानून निर्माताओं की अंतरात्मा को जगाने के लिए केवल अपील कर सकती है और उम्मीद करती है कि वे जल्द ही जागेंगे और राजनीति में अपराधीकरण की कुप्रथा को खत्म करने के लिए एक बड़ी सर्जरी करेंगे.
शीर्ष अदालत ने पिछले साल बिहार विधानसभा चुनावों के दौरान अपने 13 फरवरी, 2020 के निर्देशों का पालन न करने के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस सहित कई राजनीतिक दलों के खिलाफ अवमानना कार्रवाई के अनुरोध संबंधी याचिका पर अपने फैसले में ये टिप्पणियां कीं.