इंदौर। मध्य प्रदेश के इंदौर की सबसे हॉट सीट एक नंबर विधानसभा से चुनाव लड़ रहे भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय आखिरकार अपने नामांकन में गंभीर अपराधिक केसों की जानकारी नहीं दे पाने के कारण परेशानी में पड़ सकते हैं. दरअसल विजयवर्गीय के खिलाफ पश्चिम बंगाल में दर्ज बलात्कार और धमकाने के मामले के अलावा 1999 में छत्तीसगढ़ में दर्ज एक आपराधिक मामले की जानकारी का उल्लेख विजयवर्गीय की ओर से दाखिल किए गए नामांकन में नहीं किया गया. हालांकि इस मामले से जुड़े दस्तावेज सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद कांग्रेस ने इस मामले में मंगलवार को आपत्ति दर्ज करने के साथ हाईकोर्ट जाने का फैसला किया है.
विजयवर्गीय ने दर्ज प्रकरणों की नहीं दी जानकारी: दरअसल, कैलाश विजयवर्गीय ने नामांकन के आखिरी दिन अपना जो नामांकन पत्र दाखिल किया, उसमें शपथ पत्र के माध्यम से बताया कि भाजपा का राष्ट्रीय महासचिव होने के कारण मेरे खिलाफ कई शिकायत या जांच हो सकती है. जिसकी जानकारी मुझे नहीं है, हालांकि इस दौरान उन्होंने 2018 से लेकर 2020 के बीच उन पर दर्ज पांच प्रकरणों की जानकारी नामांकन में दर्शाई है. जिसमें से तीन प्रकरण धार्मिक भावनाएं भड़काने के थे. इस बीच सोशल मीडिया पर रायपुर के प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट डीपी सिंह दांगी का न्यायिक आदेश वायरल हुआ.
साल 2020 में स्थाई वारंट जारी करने के हुए थे आदेश: जिसमें परिवादी राम श्रीवास्तव अधिवक्ता की ओर से कोर्ट को प्रस्तुत अपनी दलील में कहा गया है कि 4 जनवरी 1999 से कैलाश विजयवर्गीय के खिलाफ धारा ₹299 के तहत आपराधिक प्रकरण दर्ज है, लेकिन अनेकों बार गिरफ्तारी वारंट जारी करने के बाद विजयवर्गीय की गिरफ्तारी नहीं हो सकी. लिहाजा इस प्रकरण में कैलाश विजयवर्गीय के लगातार फरार रहने के कारण कोई कार्रवाई नहीं हो सकती, लिहाजा कोर्ट ने इस मामले में विजयवर्गीय के खिलाफ 6 फरवरी 2020 को ही स्थाई वारंट जारी करने के आदेश दिए थे.