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महाराष्ट्र: पुणे में बनाया गया देश का सबसे बड़ा प्राकृतिक घास का कालीन

जहां एक ओर इन दिनों पूरा उत्तर भारत प्रदूषण ने साए में जी रहा है और सरकारें इसे लेकर कोई काम नहीं कर रही है, वहीं कुछ लोग अपने स्तर पर पर्यावरण को सुरक्षित रखना चाहते हैं. इसी के चलते महाराष्ट्र के पुणे में प्राकृतिक घास का कालीन बनाया गया है.

देश का सबसे बड़ा प्राकृतिक घास का कालीन
देश का सबसे बड़ा प्राकृतिक घास का कालीन

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Published : Nov 7, 2022, 6:39 PM IST

Updated : Nov 7, 2022, 8:55 PM IST

पुणे (महाराष्ट्र): महाराष्ट्र के पुणे में देश का सबसे बड़ा प्राकृतिक घास का कालीन बनाया गया है, जिसका आकार 1000 वर्ग फुट बताया जा रहा है. पसपालम ग्रास कारपेट वैश्विक रिकॉर्ड लेता है. पर्यावरण क्षरण और बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए, पुणे में पर्यावरणविदों ने आम लोगों के बीच जागरूकता फैलाने के लिए देश का सबसे बड़ा प्राकृतिक घास कालीन बनाया है.

देश का सबसे बड़ा प्राकृतिक घास का कालीन

क्रत्रिम रूप से उत्पादित 1000 वर्ग फुट के कालीन को विश्व स्तर पर नोट किया जा रहा है. इन पर्यावरणविदों ने पुणे-सोलापुर रोड पर कुंजिरवाड़ी के पास पेठ नायगांव में एक गलीचा उत्पादन परियोजना स्थापित की है और कई पर्यावरणविद इस परियोजना का दौरा कर रहे हैं.

प्लांटर्स इंडिया लैंडस्केपिंग कंपनी के जिबॉय तांबी ने पुणे सोलापुर रोड के साथ कुंजिरवाड़ी में इस परियोजना की स्थापना की है. इसमें प्राकृतिक रूप से पर्यावरण के अनुकूल घास से गलीचा बनाया जाता है. इस कालीन का उपयोग न केवल घर के अंदर बल्कि खेल के मैदानों, पार्कों, गोल्फ कोर्सों, बैकयार्ड में भी बड़े पैमाने पर किया जा सकता है.

देश का सबसे बड़ा प्राकृतिक घास का कालीन

इस कालीन का उपयोग करना बहुत आसान है और रखरखाव की लागत बहुत कम है. अगर इस कालीन को दो-तीन दिन में एक बार पानी दिया जाए तो भी यह कालीन बहुत हरा-भरा और ताजा रहता है. यह कालीन न सिर्फ पर्यावरण की दृष्टि से फायदेमंद है बल्कि इसके कई भौतिक लाभ भी हैं.

अगर आप बिना चप्पल पहने इस कालीन पर चलते हैं तो यह आपकी सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होता है. यह परियोजना किसानों के साथ-साथ युवाओं को उद्योग और व्यवसाय बनाने में मदद करेगी, जिससे स्थानीय युवाओं के लिए बड़े पैमाने पर रोजगार पैदा होगा.

देश का सबसे बड़ा प्राकृतिक घास का कालीन

यह कालीन काली मिट्टी के साथ-साथ समुद्र के पास खारे पानी और कोंकण में लाल मिट्टी में बहुत अच्छी तरह से विकसित हो सकती है. कम वर्षा के साथ-साथ उच्च वर्षा वाले क्षेत्रों में अच्छी तरह से बढ़ता है. बारिश की मात्रा ज्यादा होने पर भी इस कालीन से बदबू नहीं आती है. चूंकि ये कालीन प्राकृतिक रूप से बनाए गए हैं, इसलिए इनमें कोई जहरीला सरीसृप नहीं रह सकता है.

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तो इसे घर और बगीचे में बहुत सुरक्षित तरीके से इस्तेमाल किया जा सकता है. पुणे, केरल, कोचीन, आंध्र प्रदेश, हैदराबाद के साथ-साथ कई अन्य राज्यों में भी इस कालीन का बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जा रहा है. इसलिए जिबॉय तांबी ने बताया कि न केवल, महाराष्ट्र में बल्कि सभी देशों में इस कालीन को पर्यावरण प्रेमियों तक पहुंचाया गया है.

Last Updated : Nov 7, 2022, 8:55 PM IST

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