बच्चे के समग्र विकास यानी उसके संपूर्ण शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक विकास के लिए बहुत जरूरी है कि उसके आसपास इस तरह का सुरक्षित वातावरण तैयार किया जाए, जिसमें वह निडर होकर सहजता के साथ विकास के हर चरण को सही तरीके से पार कर पाए। बहुत जरूरी है कि बच्चे का भावनात्मक स्वास्थ्य मजबूत हो क्योंकि इसी आधार पर वह एक व्यस्क के रूप में बेहतर, परिपक्व और व्यवस्थित व्यक्तित्व प्राप्त कर सकता है।
स्क्रैम किड्सवेयर के डायरेक्टर मनोज जैन बताते हैं कि कुछ तरीके होते हैं जिनका पालन कर माता-पिता अपने बच्चे के सही तरह से भावनात्मक विकास के लिए उनके आसपास उपयुक्त वातावरण का निर्माण कर सकते हैं। जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं।
खुला यानी दोस्ताना हो रिश्ता
विकास के पहले चरण यानी बच्चे की बहुत छोटी आयु से ही माता पिता और उसके बीच का रिश्ता ऐसा होना चाहिए कि वह खुल के उनसे अपने मन की बात कर सके। ऐसा तभी संभव होता है जब माता-पिता अपने बच्चे को एक सुरक्षित और सहज वातावरण दें, उसकी बात सुनें और उसे क्वालिटी टाइम दें। इस तरह का वातावरण बच्चों को रिश्तों में ईमानदारी, असहजता को समझना व उसे दूर करने के लिए प्रयास करना तथा रिश्तों में पारदर्शी होना सिखाता है। सबसे बड़ी बात, इस तरह का वातावरण बच्चों को अपने रिश्तों पर विश्वास रखना सिखाता है।
माता-पिता को चाहिए कि वह बच्चों को सिर्फ कहकर ही नहीं बल्कि अपने व्यवहार से भी यह विश्वास दिलाएं कि वह हमेशा उनके साथ हैं। प्रसिद्ध हैरी पॉटर फिल्म में जिस तरह हैरी पॉटर की माता का उसके लिए किया गया बलिदान उसके लिए सुरक्षा कवच बन गया था उसी तरह सामान्य जीवन में भी माता-पिता का बिना शर्त प्यार, बच्चे के आस पास एक ऐसा सुरक्षात्मक घेरा तैयार कर देता है जिनसे वह तमाम नकारात्मक और दर्द भरी परिस्थितियों में भी सुरक्षित महसूस कर पाता है।
भावनाओं को खारिज करना
यदि आप बच्चों को उनकी सारी समस्याओं का खुद सामना करने और खुद सभी परेशानियों को झेलने की बात कहते हैं तो यह बच्चे के व्यक्तित्व पर काफी गहरा असर छोड़ देता है। जिसके चलते कई बार बच्चा भावनात्मक रूप से टूटा हुआ या कमजोर महसूस करने लगता है और दूसरों से बात छुपाने लगता है। इस तरह का व्यवहार तथा परिस्थितियां बच्चों में ट्रस्ट इश्यूज यानी दूसरों पर अविश्वास करने की प्रवृत्ति उत्पन्न करने लगता है, जिससे बच्चे डर व परेशानी सहित कई मानसिक समस्याओं का सामना करने लगते हैं।
यदि बच्चा किसी परेशानी से गुजर रहा हो तो बहुत जरूरी है कि माता-पिता आगे बढ़कर उससे बात करें, उसे चीजें समझाएं तथा उन परिस्थितियों से निपटने में उसकी मदद करें। कभी भी परिस्थितियां गंभीर या नकारात्मक होने पर समस्याओं से भागने की बात बच्चे के समक्ष ना करें। भले ही यह कदम उस समय सरल लगता हो लेकिन यह बच्चे के व्यापार पर काफी नकारात्मक असर डाल सकता है क्योंकि इस तरह का व्यवहार बच्चे में व्यस्क होने पर भी बातों या समस्याओं को सुलझाने की बजाय उनसे भाग जाने की प्रव्रत्ती विकसित करता है।
जजमेंटल होने या ओवर रिएक्ट करने से बचें