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बच्चे के भावनात्मक विकास के लिए जरूरी है सुरक्षित वातावरण - भावनात्मक विकास

माता-पिता बनना भगवान की नेमत कहा जाता हैं, लेकिन यह सफर उतार और चढ़ाव से भरा होता  है। अभिभावक होने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी होती है कि बच्चे के विकास के हर चरण में तथा एक बेहतर इंसान बनने में मदद करना। लेकिन कई बार ऐसा होता है कि माता-पिता के अपने खुद के मुद्दों के चलते बच्चा “ट्रायल एंड एरर” यानी नासमझ पेरेंटिंग के फेर में फंस जाता है और अलग-अलग प्रकार की भावनात्मक समस्याओं का सामना करने लगता है।

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Published : Sep 1, 2021, 4:39 PM IST

बच्चे के समग्र विकास यानी उसके संपूर्ण शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक विकास के लिए बहुत जरूरी है कि उसके आसपास इस तरह का सुरक्षित वातावरण तैयार किया जाए, जिसमें वह निडर होकर सहजता के साथ विकास के हर चरण को सही तरीके से पार कर पाए। बहुत जरूरी है कि बच्चे का भावनात्मक स्वास्थ्य मजबूत हो क्योंकि इसी आधार पर वह एक व्यस्क के रूप में बेहतर, परिपक्व और व्यवस्थित व्यक्तित्व प्राप्त कर सकता है।

स्क्रैम किड्सवेयर के डायरेक्टर मनोज जैन बताते हैं कि कुछ तरीके होते हैं जिनका पालन कर माता-पिता अपने बच्चे के सही तरह से भावनात्मक विकास के लिए उनके आसपास उपयुक्त वातावरण का निर्माण कर सकते हैं। जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं।

खुला यानी दोस्ताना हो रिश्ता

विकास के पहले चरण यानी बच्चे की बहुत छोटी आयु से ही माता पिता और उसके बीच का रिश्ता ऐसा होना चाहिए कि वह खुल के उनसे अपने मन की बात कर सके। ऐसा तभी संभव होता है जब माता-पिता अपने बच्चे को एक सुरक्षित और सहज वातावरण दें, उसकी बात सुनें और उसे क्वालिटी टाइम दें। इस तरह का वातावरण बच्चों को रिश्तों में ईमानदारी, असहजता को समझना व उसे दूर करने के लिए प्रयास करना तथा रिश्तों में पारदर्शी होना सिखाता है। सबसे बड़ी बात, इस तरह का वातावरण बच्चों को अपने रिश्तों पर विश्वास रखना सिखाता है।

माता-पिता को चाहिए कि वह बच्चों को सिर्फ कहकर ही नहीं बल्कि अपने व्यवहार से भी यह विश्वास दिलाएं कि वह हमेशा उनके साथ हैं। प्रसिद्ध हैरी पॉटर फिल्म में जिस तरह हैरी पॉटर की माता का उसके लिए किया गया बलिदान उसके लिए सुरक्षा कवच बन गया था उसी तरह सामान्य जीवन में भी माता-पिता का बिना शर्त प्यार, बच्चे के आस पास एक ऐसा सुरक्षात्मक घेरा तैयार कर देता है जिनसे वह तमाम नकारात्मक और दर्द भरी परिस्थितियों में भी सुरक्षित महसूस कर पाता है।

भावनाओं को खारिज करना

यदि आप बच्चों को उनकी सारी समस्याओं का खुद सामना करने और खुद सभी परेशानियों को झेलने की बात कहते हैं तो यह बच्चे के व्यक्तित्व पर काफी गहरा असर छोड़ देता है। जिसके चलते कई बार बच्चा भावनात्मक रूप से टूटा हुआ या कमजोर महसूस करने लगता है और दूसरों से बात छुपाने लगता है। इस तरह का व्यवहार तथा परिस्थितियां बच्चों में ट्रस्ट इश्यूज यानी दूसरों पर अविश्वास करने की प्रवृत्ति उत्पन्न करने लगता है, जिससे बच्चे डर व परेशानी सहित कई मानसिक समस्याओं का सामना करने लगते हैं।

यदि बच्चा किसी परेशानी से गुजर रहा हो तो बहुत जरूरी है कि माता-पिता आगे बढ़कर उससे बात करें, उसे चीजें समझाएं तथा उन परिस्थितियों से निपटने में उसकी मदद करें। कभी भी परिस्थितियां गंभीर या नकारात्मक होने पर समस्याओं से भागने की बात बच्चे के समक्ष ना करें। भले ही यह कदम उस समय सरल लगता हो लेकिन यह बच्चे के व्यापार पर काफी नकारात्मक असर डाल सकता है क्योंकि इस तरह का व्यवहार बच्चे में व्यस्क होने पर भी बातों या समस्याओं को सुलझाने की बजाय उनसे भाग जाने की प्रव्रत्ती विकसित करता है।

जजमेंटल होने या ओवर रिएक्ट करने से बचें

माता पिता को कभी भी किसी भी परिस्थिति में बच्चे की प्रतिक्रिया के आधार पर उसे अच्छे या बुरे वर्ग में नहीं बांटना चाहिए। बच्चे कभी-कभी परिस्थितियों की गंभीरता को समझने में असमर्थ होते हैं और चीजों से डरकर व्यवहार प्रकट करते हैं। ऐसे में बहुत जरूरी है कि माता-पिता एक सरल व्याख्या के साथ उन्हे समस्या के बारे में समझाएं तथा उसे हल करने में उनकी मदद करें। ऐसा करने से बच्चा सुरक्षित महसूस करता है तथा भविष्य में भी समस्याओं को बेहतर तरीके से सुलझा सकता है।

समस्याओं को समझें और उनका साथ दें

जब बच्चा अपने माता-पिता से अपनी सभी बातें साझा करता है, तो माता-पिता का समर्थन और उनका सकारात्मक व्यवहार बच्चे को एहसास दिलाता है कि वह सुरक्षित है तथा अपने माता-पिता के साथ बिना किसी डर के कोई भी बात या परेशानी साझा कर सकता है। हालांकि इसका मतलब यह नहीं है कि माता-पिता अपने बच्चे की हर बात पर सहमत हो, जरूरत बस इतनी है कि माता-पिता परिस्थिति को समझें और बच्चे की बात सुनें और उसे राय देने का मौका दें। ऐसी परिस्थितियों में बच्चा अपने माता-पिता द्वारा बताए गए सही और गलत के भेद को समझता है और उनके द्वारा दी गई सीख को अपने व्यवहार में भी शामिल करता है। ऐसा करने से बच्चे में स्वयं सही और गलत की जानकारी लेकर निर्णय लेने की क्षमता का विकास होता है।

असफलता के बारे में सिखाना भी है जरूरी

अधिकांश माता-पिता अपने बच्चे को हर परीक्षा और प्रतियोगिता में प्रथम आने या जीतने की बात सिखाते हैं, और यदि बच्चा किसी कारणवश परीक्षा या प्रतियोगिता में सफल नहीं हो पाता है तो उनका व्यवहार बच्चे को यह समझा देता है कि उसके माता पिता खुश नहीं हैं| यह सही नहीं है। बच्चे को जीत के लिए प्रेरित करना अच्छी बात है लेकिन इसके साथ ही बच्चों को यह दिखाना भी जरूरी है कि असफलता अंत नहीं है, बल्कि वह आपको आपकी कमियों को दूर करने का एक मौका देती है ताकि आप दोबारा ज्यादा बेहतर तरीके से प्रयास कर सकें। साथ ही माता-पिता को अपने बच्चों को यह भी समझाना चाहिए कि वह कभी भी असफलता को अपने दिमाग पर हावी ना होने दें। यदि वह स्वस्थ रुप में प्रयास करेंगे तो न सिर्फ नई चीजें सीखेंगे बल्कि जिंदगी में आगे जाकर सफल भी होंगे।

नियंत्रण और विकल्पों को समझने में सहायता करें

भावनाओं, परिस्थितियों तथा चीजों पर नियंत्रण रखने और किसी भी परिस्थिति में उपलब्ध विकल्पों में से सही विकल्प का चयन करने के तरीकों का ज्ञान यदि बच्चे को हो जाता है तो यह है उसे परिपक्व इंसान बनने में मदद करता है। यकीनन उम्र के अधिकांश पड़ाव में मदद करने के लिए माता-पिता बच्चे के साथ होते हैं, लेकिन एक उम्र के पश्चात उनकी भूमिका सिर्फ सलाहकार की हो जाती है और युवाओं और व्यस्कों को अपने निर्णय स्वयं लेने पड़ते हैं। इसलिए बहुत जरूरी है कि माता-पिता हमेशा हर मुद्दे को लेकर अपनी ईमानदार सलाह ही दें। यानी जो गलत है उसे गलत कहें और जो सही है उसका हमेशा समर्थन करें।

(आईएएनएस)

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