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सीपीआई(एम) बनाम सीपीआई(एमएल) : बिहार में 'दोस्ती', बंगाल में 'दुश्मनी' - बिहार विधानसभा चुनाव

बिहार विधानसभा चुनाव में वाम दलों ने महागठबंधन में भूमिका निभाई. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या वाम दल पश्चिम बंगाल में बिहार चुनाव को दोहरा सकते हैं. इसे लेकर वाम दलों के बीच मतभेद सामने आ रहे हैं. आइए जानते हैं इस संबध में वाम दलों के नेताओं का क्या कहना है....

सीपीआई(एम) बनाम सीपीआई(एमएल)
सीपीआई(एम) बनाम सीपीआई(एमएल)

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Published : Nov 18, 2020, 9:13 PM IST

कोलकाता: बिहार में वाम दलों ने जिस तरह से महागठबंधन में भूमिका निभाई और जैसी सफलता उन्हें मिली, क्या प. बंगाल में भी इसे दोहराया जा सकता है, इस सवाल को लेकर वाम दलों के बीच मतभेद सामने आए हैं. उनके सामने सबसे बड़ा सवाल यह है कि वे किसे प्रतिद्वंद्वी मानें, तृणमूल या भाजपा को.

शुरू में तो ऐसा लगा कि सीपीआई (एम) और सीपीआई (एमएल) के बीच सिर्फ सैद्धान्तिक मतभेद हैं, लेकिन अब यह गहराता जा रहा है. सीपीआई (एम) के महासचिव सीताराम येचुरी मानते हैं कि भाजपा का मुकाबला करना है, तो सबसे पहले तृणमूल को हराना जरूरी है.

दूसरी ओर सीपीआई (एमएल) के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य का तर्क है कि हमारी सबसे बड़ी दुश्मन भाजपा है. इसे पूरे देश में रोका जाना चाहिए.

माले पोलिटब्यूरो की सदस्य कविता कृष्णन ने इस मुद्दे पर सीपीआई (एम) की खुले तौर पर विरोध किया है. उन्होंने कहा कि मोदी और ममता की तुलना एक साथ नहीं की जा सकती है. उनके मुताबिक सीपीआई (एम) जानबूझकर 'दीदीभाई' और 'मोदीभाई' का मुद्दा उठा रही है. हकीकत ये है कि आज की तारीख में भाजपा का मुकाबला सिर्फ तृणमूल ही कर सकती है.

कविता ने कहा कि सीपीआईएम ममता और मोदी को लेकर जिस तरीके से समानता के साथ तुलना कर रही है, वह हकीकत से बिल्कुल दूर है.

कृष्णन ने कहा कि जिस तरह से भाजपा और जेडीयू बिहार में हैं, क्या भाजपा और तृणमूल बंगाल में उसी तरह से एक हो सकते हैं क्या. ऐसा नहीं है, लेकिन सीपीआईएम ऐसा ही दिखाने की कोशिश कर रही है. सीपीआईएम का एक छोटा सा धड़ा ही मानता है कि तृणमूल का विरोध करने का मतलब है कि भाजपा का विरोध करना.

माले नेता कविता ने कहा कि 'प्रतिस्पर्धी सांप्रदायिकता' के मुद्दे पर भाजपा और तृणमूल पर आरोप लगाने का सीपीआई (एम) का सिद्धांत भी गलत है. क्योंकि सीपीआई (एम) कभी भी प्रतिस्पर्धी हिंदूवाद की बात नहीं करता है. उनकी दलील है कि तृणमूल मुस्लिम तुष्टिकरण को बढ़ावा दे रही है, वहीं भाजपा हिंदू कट्टरवाद का प्रचार कर रही है, लेकिन बीजेपी वास्तव में सीपीआई (एम) के इस सिद्धांत से लाभ उठा रही है.

सीपीआईएम पोलिटब्यूरो के सदस्य और लेफ्ट फ्रंट के अध्यक्ष बिमान बोस ने कविता कृष्णन के इस बयान की निंदा की. उन्होंने कहा कि हमारा गठबंधन प. बंगाल में भाजपा और तृणमूल दोनों को बराबर का दुश्मन समझती है. दोनों ही जनता के लिए घातक हैं.

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बोस ने कहा कि हर व्यक्ति को बोलने की आजादी है, लेकिन कोई भी लेफ्ट फ्रंट के लिए यदि इस तरह की बातें करता है, तो उसको ज्यादा महत्व देने की जरूरत नहीं है.

वाम दलों के बीच इस तू-तू, मैं-मैं को लेकर तृणमूल कांग्रेस बहुत ही सावधान है. वैसे तो टीएमसी को खुश होना चाहिए था, लेकिन पार्टी खुलकर कुछ भी कहने से बच रही है. टीएमसी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि कुछ दिन पहले तक ये लोग (बिहार में) आपस में दोस्त थे. सीपीआईमाले निश्चित तौर पर तृणमूल के प्रति सॉफ्ट अप्रोच रखती है. लेकिन ऐसी सोच रखने के पीछे उनकी कुछ मंशा है. वह चाहती है कि सॉफ्ट अप्रोच अपनाकर कुछ सीटें जीत जाएं. मुझे इस पर विचार करना होगा और देखना होगा कि गठबंधन से फायदा होता है या नहीं.

वरिष्ठ तृणमूल नेता सौगाता रॉय से जब इस मुद्दे पर बात की गई, तो उन्होंने कहा कि गठबंधन को लेकर अंतिम फैसला ममता बनर्जी ही कर सकती हैं. वहीं इस मुद्दे पर बयान देने के लिए अधिकृत हैं. मैं सीपीआईएम और सीपीआईएमएल के बीच चल रहे आंतरिक विवाद पर कुछ नहीं बोलूंगा. मेरे लिए सही नहीं होगा कि इस पर कुछ कहा जाए.

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