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Published : May 12, 2023, 2:17 PM IST

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कान्हा के भजनों की दीवानी है इस गौशाला की गायें, पशुपालक ने बताई पूरी कहानी

भीलवाड़ा के पशुपालक सूरतराम जाट ने देसी नस्ल की गाय पालन कर लाखों रुपए महीना कमा रहे हैं. उन्होंने पशु घर में गायों के भजन सुनने की शानदार व्यवस्था कर रखी है.

cow gives milk after listening krishna bhajan
cow gives milk after listening krishna bhajan

कान्हा के भजनों की दीवानी है इस गौशाला की गायें

भीलवाड़ा. कहते हैं कि द्वापर युग में जब भगवान श्रीकृष्ण बांसुरी बजाते थे तो गायें उनके आसपास आकर खड़ी हो जाया करती थीं. ठीक वैसा ही अब कलियुग में भी देखने को मिल रहा है. राजस्थान के भीलवाड़ा में पशुपालक सूरतराम जाट गायों को दिनभर भगवान श्रीकृष्ण की बांसुरी की धुन और उनके भजन सुनाते हैं. सूरतराम जाट ने बताया कि गाय ध्यान लगाकर भगवान श्रीकृष्ण के भजन सुनती है. ईटीवी भारत की टीम शाहपुरा पंचायत समिति के कनेछन खुर्द के सूरज राम जाट के पशुपालक घर पहुंची और इसे देखा. साथ ही गायों के पालन के बारे में जानने की कोशिश की. इस दौरान पशुपालक सूरतराम जाट से हमने खास बातचीत की. चलिए जानते हैं उन्होंने गाय पालने से लेकर, भजन तक क्या कुछ कहा.

पशुपालक सूरतराम जाट ने कॉरपोरेट जगत में काम करने के साथ देसी गिर नस्ल की गाय पालने का काम शुरू किया. उन्होंने गाय का दूध बेचने के बजाय दूध से घी बनाकर ऑनलाइन 4500 रुपए प्रति लीटर घी बेचकर लाखों रुपए महीना कमा रहे हैं. वह देसी गिर नस्ल की गाय को भगवान श्रीकृष्ण की बांसुरी की धुन के साथ भजन सुनाते हैं. यहां पर गायों को रहने की व्यवस्था जिस तरह परिवार में लोगों को रहने की जाती है उसी प्रकार उनके (गायों) लिए की गई है. गाय पालन स्थल पर भगवत गीता, भगवान श्रीकृष्ण और रामायण से जुड़े उपदेश हर दीवार पर लिखे हुए है. वहीं, गायों को आधुनिक सुविधा युक्त खाने-पीने की व्यवस्था करते हुए हवा के लिए पंखे लगाए गए है. प्रत्येक 10 फीट पर स्पीकर लगाए हुए हैं जिस पर दिन-रात भगवान श्रीकृष्ण के भजन चलते रहते हैं. सबसे अहम बात ये है कि छोटे-बड़े पशु के लिए अलग-अलग ठहरने की व्यवस्था की गई है.

पशुओं को खिलाया जाता है बिना खाद का चारा : सूरतराम जाट ने पशुपालन में काफी नवाचार किए हैं. यहां तक की अपने खलियान में जब खरीफ की फसल के समय पशुओं को खिलाने की ज्वार की बुआई करते हैं तो उसमें किसी प्रकार का अंग्रेजी खाद (डीएपी और यूरीया) नहीं डालते. पशुपालक सिर्फ देसी गाय के खाद का ही उपयोग कर फसल की बुवाई करते हैं. यहां तक की पशुओं को खिलाने वाला अनाज (बांटा) घर पर ही मक्की, बाजरा, ज्वार , जौ और गुड का मिश्रण कर बनाता है. पशुपालक ने बताया कि हमारे यहा ब्रिड संवर्धन भी है जिसके पीछे मेरा मुख्य उद्देश्य देसी गायों को बचाना. इसके लिए मैं ब्रिड संवर्धन का काम भी करता हूं, मैं दावा करता हूं कि आने वाले समय में गायों का केंद्रीकरण हो जाएगा. आम आदमी वर्तमान में देसी नस्ल की गाय नहीं पालते हैं उनको आवारा छोड़ देते हैं.

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सूरतराम जाट ने कहा कि लोगों ने गाय पालने के बारे में कैलकुलेशन नहीं किया है. केवल पशुपालक सोचता रहता है कि देसी गाय पालना अच्छा नहीं है उसमें कम फायदा मिलता है, जबकि अच्छी तरह से कैलकुलेशन करेंगे तो उनको पता चलेगा. उन्होंने कहा कि दूसरी नस्ल की गाय के बजाय देसी नस्ल की गाय पालना अच्छा है. देसी नस्ल की गायों में रखरखाव और खाने मे बहुत कम खर्च आता है. अंग्रेजी नस्ल की एक गाय पालने के बजाय गिर नस्ल की तीन गायों की सेवा कर सकते है. मेरे पास गिर गोवंश की 70 तरह की गायें हैं. मैंने पिछले वर्ष 2 लाख से 3 लाख रुपए मे एक गाय बेची थी. एक गाय 6 से 10 लीटर प्रति टाइम दूध देती है. मेरे यहां एक टाइम 80 लीटर दूध का उत्पादन होता है, लेकिन मैंने आज तक कभी दूध नहीं बेचा है मैं सिर्फ घी बेचता हूं. पहले मैं 2000 रूपये प्रति लीटर के भाव से घी बेचता था. वर्तमान में हमारी एक नई कंपनी से एग्रीमेंट हुआ है जिसे 4500 रूपये प्रति लीटर के भाव से घी बेचता हूं. इंटरनेशनल मार्केट की टीम भी हमारे यहां आई और यहां की गुणवत्ता देखकर उन्होंने भी संतुष्टि जाहिर की. साथ ही हमारे से टाइप किया.

उन्होंने बताया कि भारत में वर्तमान समय में 30 प्रतिशत दूध का उत्पादन होता है. यह इस वर्ष का आंकड़ा है यानी यहां दूध बेचने के लिए मार्केट बहुत बड़ा है. साथ ही जो लोग मार्केट से 500 से 600 रुपए लीटर घी खरीद रहे हैं उनसे मेरा कहना हैं कि वह शुद्ध घी नहीं खा रहे हैं, क्योंकि 1 लीटर शुद्ध घी बनाने में 30 लीटर दूध लगता है जब 30 लीटर दूध को उबालना पड़ता हैं तब 1 लीटर घी का उत्पादन होता है.

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