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छत्तीसगढ़ : जान हथेली पर लेकर ग्रामीणों का इलाज और वैक्सीनेशन कर रहे कोरोना वॉरियर्स

अबूझमाड़ के गांवों में पगडंडी के माध्यम से पहुंचा जा सकता है. कई किलोमीटर पैदल चलकर मेडिकल टीम गांव पहुंचती है. अभी वैक्सीनेशन का काम चल रहा है. अबूझमाड़ में लोगों को कोरोना से बचाने मेडिकल टीम तमाम कठिनाइयों का सामना करते हुए काम में जुटी हुई है.

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Published : May 8, 2021, 10:54 PM IST

रायपुर :छत्तीसगढ़ में कोरोना का कहर जारी है. इस बार शहरी क्षेत्रों के अलावा ग्रामीण इलाकों में भी कोरोना वायरस ने अपने पैर पसार लिए हैं. वनांचल में भी कोरोना मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. इस महामारी को रोकने के लिए शासन-प्रशासन दिन-रात काम कर रहा है. नारायणपुर जिले में 19 अप्रैल से लेकर 11 मई तक लॉकडाउन लगाया गया है. इसी बीच जिले के अबूझमाड़ क्षेत्र में भी कोविड-19 को लेकर स्वास्थ्य अमला पूरी तरह चौकन्ना है.

जान हथेली पर लेकर ग्रामीणों का इलाज

बीहड़ में जान जोखिम में डालकर दे रहे सेवाएं

स्वास्थ्य विभाग की टीम के साथ मितानिन और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता अबूझमाड़ के गांवों में जाकर लोगों को कोरोना संक्रमण से बचाव और टीकाकरण के बारे में जागरूक कर रही है. ग्रामीणों को स्थानीय बोली में कोरोना वायरस से बचाव की जानकारी दी जा रही है.अबूझमाड़ के 400- 500 लोगों को कोरोना का टीका लग चुका है. अबूझमाड़ के बीहड़ में जान जोखिम में डालकर डॉक्टर्स, नर्स और मेडिकल टीम सेवाएं दे रही है.

अबूझमाड़ भी जीतेगा कोरोना से जंग

अबूझमाड़ के जंगल में ऐसे कई गांव है जो पहुंच विहीन है. इन जंगलों में किसी भी प्रकार के वाहन से आवागमन नहीं हो पाता है. ऐसे में कोहकामेटा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र प्रभारी डॉक्टर कमलेश इजारदार और उनकी वैक्सीनेशन टीम अबूझमाड़ के अंदरूनी गांवों में जाकर लोगों को वैक्सीन लगा रही है. 12 से ज्यादा गांव में लोगों को वैक्सीन का पहला डोज लगाया जा रहा है. मेडिकल टीम को इन गांवों का रास्ता पैदल ही नापना पड़ता है. मुश्किल हालात में भी ये फ्रंटलाइन वॉरियर्स पूरी लगन से लोगों की सेवा में लगे हुए हैं.

नक्सली दहशत के साए में लोगों का टीकाकरण

डॉक्टर कमलेश इजारदार ने बताया कि कोहकामेटा सेंटर के तहत आने वाले अबूझमाड़ के गांवों में पगडंडी के माध्यम से पहुंचा जा सकता है. कई किलोमीटर पैदल चलकर मेडिकल टीम गांव पहुंचती है. अभी वैक्सीनेशन का काम चल रहा है. अबूझमाड़ क्षेत्र विस्तृत और पहाड़ों से घिरा हुआ क्षेत्र है. यहां पहुंचना कठिनाइयों से भरा होता है. यहां के लोग शांत स्वभाव के हैं और गोंडी-माड़िया बोली बोलते हैं. कई बार नक्सली दहशत ही लोगों की स्वास्थ्य सुविधाएं से दूरी का कारण बन जाता है. लेकिन यहां डॉक्टर नक्सली दहशत और महामारी के खतरे के बीच विषम परिस्थितियों में सेवाएं दे रहे हैं.

स्थानीय बोली में लोगों को समझाया जा रहा

अबूझमाड़ के रहवासी गोंडी और माड़िया भाषा का प्रयोग करते हैं. वहीं यहां पहुंचने वाले अधिकतर डॉक्टर्स क्षेत्रीय भाषा से अनभिज्ञ रहते हैं. जिसकी वजह से उन्हे कई बार दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. डॉक्टर्स की टीम में स्थानीय नर्स और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता भी है. ताकि समस्याओं को क्षेत्रीय बोली में समझ कर उनका निराकरण किया जा सके.

अबूझमाड़ में वैक्सीन को लेकर कई तरह की अफवाह

अबूझमाड़ क्षेत्र में कोविड-19 टीकाकरण को लेकर कई तरह की अफवाह फैली हुई है. लोगों का कहना है कि वैक्सीन लगाने से लोग मर जाते हैं. जिसके समाधान के लिए डॉक्टर और उनकी टीम ग्रामीणों की काउंसलिंग भी कर रही है. तब जाकर ग्रामीण वैक्सीनेशन के लिए तैयार होते हैं.

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मेडिकल टीम को करना पड़ रहा कई परेशानियों का सामना

वैक्सीनेशन के लिए जब मेडिकल टीम अबूझमाड़ के गांवों में पहुंचती है, तो ग्रामीण उन्हे गांव में आने से मना कर देते हैं. ग्रामीणों का कहना है कि वे गांव में ठीक है, स्वस्थ हैं, उन्हें किसी भी प्रकार की कोई बीमारी नहीं है. शहर से बीमारी गांव की ओर आती है. इसलिए शहरी क्षेत्र से कोई भी गांव में प्रवेश नहीं करेगा.

करीब 500 लोगों का हुआ वैक्सीनेशन

इन तमाम मुश्किलों का सामना करते हुए मेडिकल टीम पहुंच विहीन गांवों में टीकाकरण अभियान चला रही है. स्थानीय नर्सेस, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और मितानिनों की मदद से ग्रामीणों को समझाया जा रहा है. टीका लगवाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है, यही वजह है कि अबूझमाड़ क्षेत्र में 400 से 500 लोगों का टीकाकरण किया जा चुका है.

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