रायपुर :छत्तीसगढ़ में कोरोना का कहर जारी है. इस बार शहरी क्षेत्रों के अलावा ग्रामीण इलाकों में भी कोरोना वायरस ने अपने पैर पसार लिए हैं. वनांचल में भी कोरोना मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. इस महामारी को रोकने के लिए शासन-प्रशासन दिन-रात काम कर रहा है. नारायणपुर जिले में 19 अप्रैल से लेकर 11 मई तक लॉकडाउन लगाया गया है. इसी बीच जिले के अबूझमाड़ क्षेत्र में भी कोविड-19 को लेकर स्वास्थ्य अमला पूरी तरह चौकन्ना है.
बीहड़ में जान जोखिम में डालकर दे रहे सेवाएं
स्वास्थ्य विभाग की टीम के साथ मितानिन और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता अबूझमाड़ के गांवों में जाकर लोगों को कोरोना संक्रमण से बचाव और टीकाकरण के बारे में जागरूक कर रही है. ग्रामीणों को स्थानीय बोली में कोरोना वायरस से बचाव की जानकारी दी जा रही है.अबूझमाड़ के 400- 500 लोगों को कोरोना का टीका लग चुका है. अबूझमाड़ के बीहड़ में जान जोखिम में डालकर डॉक्टर्स, नर्स और मेडिकल टीम सेवाएं दे रही है.
अबूझमाड़ भी जीतेगा कोरोना से जंग
अबूझमाड़ के जंगल में ऐसे कई गांव है जो पहुंच विहीन है. इन जंगलों में किसी भी प्रकार के वाहन से आवागमन नहीं हो पाता है. ऐसे में कोहकामेटा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र प्रभारी डॉक्टर कमलेश इजारदार और उनकी वैक्सीनेशन टीम अबूझमाड़ के अंदरूनी गांवों में जाकर लोगों को वैक्सीन लगा रही है. 12 से ज्यादा गांव में लोगों को वैक्सीन का पहला डोज लगाया जा रहा है. मेडिकल टीम को इन गांवों का रास्ता पैदल ही नापना पड़ता है. मुश्किल हालात में भी ये फ्रंटलाइन वॉरियर्स पूरी लगन से लोगों की सेवा में लगे हुए हैं.
नक्सली दहशत के साए में लोगों का टीकाकरण
डॉक्टर कमलेश इजारदार ने बताया कि कोहकामेटा सेंटर के तहत आने वाले अबूझमाड़ के गांवों में पगडंडी के माध्यम से पहुंचा जा सकता है. कई किलोमीटर पैदल चलकर मेडिकल टीम गांव पहुंचती है. अभी वैक्सीनेशन का काम चल रहा है. अबूझमाड़ क्षेत्र विस्तृत और पहाड़ों से घिरा हुआ क्षेत्र है. यहां पहुंचना कठिनाइयों से भरा होता है. यहां के लोग शांत स्वभाव के हैं और गोंडी-माड़िया बोली बोलते हैं. कई बार नक्सली दहशत ही लोगों की स्वास्थ्य सुविधाएं से दूरी का कारण बन जाता है. लेकिन यहां डॉक्टर नक्सली दहशत और महामारी के खतरे के बीच विषम परिस्थितियों में सेवाएं दे रहे हैं.
स्थानीय बोली में लोगों को समझाया जा रहा