नई दिल्ली:कोविड -19 वैश्विक महामारी के दो साल से अधिक लंबे प्रकोप ने देश व कई राज्यों के वित्तीय स्वास्थ्य को गंभीर रूप से हिला दिया है. क्योंकि 18 राज्यों ने उच्च राजकोषीय घाटा दर्ज किया है जो उनके सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) का 4% है, जबकि उनमें से छह ने वित्त वर्ष 2021-22 में 4% से अधिक घाटे की सूचना दी. भारतीय स्टेट बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री सौम्य कांति घोष द्वारा किए गए विश्लेषण से पता चला है कि 18 राज्यों के औसत राजकोषीय घाटे (जीएसडीपी के% के रूप में) को पिछले वित्तीय वर्ष के लिए 50 बीपीएस से 4.0% तक संशोधित किया गया है, जो मार्च में समाप्त हुआ था, जबकि छह राज्यों में अपने जीएसडीपी के 4% से अधिक राजकोषीय घाटे की रिपोर्ट करके लाल निशान अर्थात लाल रेखा की ओर खिसक गया है. आधिकारिक आंकड़ो के विश्लेषण से पता चला है कि सात राज्यों का राजकोषीय घाटा उनके बजटीय लक्ष्य से अधिक था, हालांकि 11 राज्य अपने वित्तीय घाटे को पिछले वित्तीय वर्ष के दौरान अपने बजट लक्ष्य के बराबर या उससे कम रखने में सफल रहे हैं.
उदाहरण के तौर पर बिहार का राजकोषीय घाटा जीएसडीपी का 8.3% या इसके बजट अनुमान से 54,327 करोड़ रुपये अधिक होने का अनुमान है. असम का राजकोषीय घाटा जीएसडीपी का 4.5% या इसके बजट अनुमान से 21,935 करोड़ रुपये अधिक होने का अनुमान है. इन दोनों राज्यों का पिछले वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटा उनके राजकोषीय घाटे के लक्ष्य से काफी अधिक था. अरुणाचल प्रदेश, झारखंड, केरल, महाराष्ट्र और राजस्थान ने भी पिछले वित्त वर्ष के अपने बजट लक्ष्य से अधिक राजकोषीय घाटा दर्ज किया. अप्रैल 2022 से शुरू होने वाले चालू वित्त वर्ष के लिए, राज्यों ने इन 18 राज्यों के लिए 7.2 लाख करोड़ रुपये के संयुक्त राजकोषीय घाटे के साथ 3.4% के कम राजकोषीय घाटे का बजट रखा है. हालांकि इस साल उनके राजस्व संग्रह पर अनिश्चितता के कारण लक्ष्य हासिल करना मुश्किल लग रहा है क्योंकि कुछ राज्यों के लिए राजकोषीय अनुशासन का पालन करना मुश्किल दिख रहा है.
राष्ट्रीय जीडीपी बनाम राज्य जीडीपी घोष के अनुसार: भारत में एक दिलचस्प किस्सा यह है कि अगर राज्यों में जीएसडीपी को मिलाकर भारत के सकल घरेलू उत्पाद का अनुमान लगाने के लिए एक बॉटम अप दृष्टिकोण लागू किया जाए तो आंकड़े वित्त वर्ष 2020-21 में जीडीपी के कम से कम 5.7% की सीमा तक छू गया है. केंद्र और राज्यों द्वारा विकास संख्या का द्वैतवाद भौगोलिक आकांक्षाओं में दिलचस्प भिन्नताएं दिखलाता है और भविष्य में असंतुलन को आगे बढ़ाता है क्योंकि आंध्र प्रदेश, असम, गुजरात, हरियाणा, महाराष्ट्र, राजस्थान, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य अपनी वास्तविक जीएसडीपी वृद्धि को बहुत अधिक दिखाते हैं. जबकि 17 राज्यों के लिए समग्र विकास (उनके बजट में राज्यों द्वारा अनुमानित) भारत के वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि से थोड़ा कम है. राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा दिए गए भारत के सकल घरेलू उत्पाद और जीएसडीपी के बीच हमेशा एक अंतर रहा है.
राज्यों के पूंजीगत व्यय में भारी वृद्धि: राज्य सरकारों के राजकोषीय स्वास्थ्य और पूंजीगत व्यय पर बारीकी से नज़र रखने वाले नीति निर्माताओं और अर्थशास्त्रियों के अनुसार राज्यों के कैपेक्स (कैपिटल एक्पेंडिचर) में पिछले वित्तीय वर्ष में 36.2% की वृद्धि हुई. विशेष कर महामारी के कारण राज्यों के सामने अपने हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर को अपग्रेड करना की जरूरी था. आंकड़ों से पता चलता है कि शहरी विकास, जल आपूर्ति और स्वच्छता, सिंचाई और परिवहन के लिए पूंजीगत व्यय परिव्यय में भी वृद्धि हुई है. चालू वित्त वर्ष में राज्यों के कुल व्यय में मामूली वृद्धि होने का आसार है जो कि पूंजीगत व्यय में महत्वपूर्ण मंदी से प्रेरित रहने की संभावना है. 21 राज्यों की औसत वृद्धि 13.8% है, जबकि राजस्व व्यय संकुचित रहना चाहिए (औसत: 8.5%). सौम्य कांति घोष ने कहा, "एक राज्य का नॉन प्लान बजट जिसमें वेतन, पेंशन और ब्याज के भुगतान पर खर्च शामिल होता है, पिछले तीन वर्षों में लगातार बढ़ा है राजस्व प्राप्तियों में इसका हिस्सा अब वित्त वर्ष 23 के बजट आंकड़ों में 56% है. अर्थशास्त्री का कहना है कि प्रतिबद्ध व्यय मदों के लिए आवंटित बजट का एक बड़ा हिस्सा अन्य व्यय प्राथमिकताओं जैसे कि विकासात्मक योजनाओं और पूंजीगत परिव्यय पर निर्णय लेने के लिए राज्य के लचीलेपन को सीमित करता है. FY23 के बजटीय आंकड़ों में इसमें 6% की वृद्धि हुई है; वेतन घटक में 6.8%, ब्याज भुगतान में 8.7% और पेंशन भुगतान में 12.2% की वृद्धि हुई.
राज्यों ने जीएसटी मुआवजे के विस्तार की मांग की: जीएसटी की शुरूआत के समय, जीएसटी के तहत सम्मिलित राज्यों के राजस्व को जुलाई 2017 से जून 2022 तक 14% प्रति वर्ष की निरंतर वृद्धि की धारणा के साथ पांच वर्षों की संक्रमण अवधि के लिए विधायी रूप से संरक्षित किया गया था. किसी भी कमी को केंद्र द्वारा विलासिता के सामानों पर जीएसटी मुआवजा उपकर लगाकर पूरा किया जाना था. हालांकि आर्थिक गतिविधियों में मंदी के कारण वित्त वर्ष 2019-20 में उपकर संग्रह में कमी आई जो वित्त वर्ष 2020-21 में और बढ़ी. अक्टूबर 2020 में केंद्र ने घोषणा की कि वह वित्त वर्ष 2020-21 में उपकर संग्रह में कमी की भरपाई के लिए बाजार से 1.10 लाख करोड़ रुपये उधार लेगा. एक लाख दस हजार करोड़ रुपये के मुआवजे के अलावा केंद्र ने वित्त वर्ष 2020-21 में राज्यों को जीएसटी मुआवजा कोष से 91,000 करोड़ रुपये का भुगतान किए. हालांकि कई राज्यों ने जीएसटी मुआवजे को और पांच साल के लिए बढ़ाने की मांग की है. कुछ राज्यों के लिए राज्य के कर राजस्व के प्रतिशत के रूप में जीएसटी मुआवजा 20% से अधिक है.
राज्य इस साल 9 लाख करोड़ रुपये उधार लेंगे: चालू वित्त वर्ष (अप्रैल-मार्च 2023) में राज्यों की शुद्ध उधारी 6.6 लाख करोड़ रुपये आंकी गई है, जबकि लगभग 2.4 लाख करोड़ रुपये का पुनर्भुगतान लेने के बाद सकल उधारी लगभग 9 लाख करोड़ रुपये आने की उम्मीद है. वित्त वर्ष 2022-23 के लिए केंद्र और राज्यों की कुल सकल उधारी लगभग 24 लाख करोड़ रुपये अनुमानित है, जबकि शुद्ध उधारी 18.4 लाख करोड़ रुपये है.
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