हैदराबाद : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुशासन के लिए जिन 10 सिद्धान्तों का खुद निर्धारण किया है, उनमें से एक कहता है कि सरकार की सभी नीतियों के केंद्र में जनहित होना चाहिए. लेकिन जिस तरीके से वह कोविड समस्या का मुकाबला कर रहे हैं, उनमें इस सिद्धान्त की भावना गायब है. एक विचित्र तर्क देते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने यह भी कह दिया कि कोविड के इलाज में उपयोग होने वाली दवाओं पर से टैक्स हटा दिया जाएगा, तो यह लोगों के हित में नहीं होगा.
हाल ही में प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री से कोविड वैक्सीन, जीवन रक्षक दवा और ऑक्सीजन कॉन्संट्रेटर पर लगने वाले जीएसटी से राहत देने की अपील की थी. वित्त मंत्री ने अपने त्वरित जवाब में कहा कि टैक्स हटाने से उनकी कीमतें बढ़ जाएंगी. उन्होंने कहा कि अगर जीएसटी से पूरी छूट दे दी जाए, तो इनका उत्पादन करने वाली घरेलू कंपनियां इनपुट और इनपुट सेवाओं पर प्राप्त होने वाले टैक्स (इनपुट क्रेडिट) का लाभ नहीं उठा सकेंगी. उनके अनुसार अंत में इसका असर जनता पर पड़ेगा, क्योंकि कीमतें बढ़ जाएंगी.
पंजाब, छत्तीसगढ़ और दिल्ली ने उनका प्रतिवाद करते हुए कहा कि कोविड वैक्सीन और अन्य जीवन रक्षक दवाओं से फायदा उठाने का यह उचित समय नहीं है. उन्होंने कहा कि कोविड की वजह से होने वाली मौतें न जाने कितने परिवार को उजाड़ दिया है. ऐसे में वित्त मंत्री की दलील गले नहीं उतर रही है. इन सरकारों ने इस पर निर्णय लेने के लिए जीएसटी काउंसल की बैठक बुलाए जाने की मांग की है.
जीएसटी एक्ट की धारा 11(1) में स्पष्ट तौर पर लिखा गया है कि जनता के हित में किसी भी वस्तु पर टैक्स से राहत दी जा सकती है. ऐसे में जबकि पूरा देश महामारी की चपेट में है, केंद्र अपनी जवाबदेही से बच नहीं सकता है. बहुत सारे ऐसे विकल्प मौजूद हैं, जिसके जरिए दवा निर्माताओं को बिना नुकसान पहुंचाए ही जनता को फायदा दिया जा सकता है. घोर आश्चर्च की बात है कि केंद्र ऐसे प्रावधानों की अवधारणा को ही स्वीकार करने से मना कर रहा है.