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सरकार ने SC में कहा- कोविड 19 क्लिनिकल ट्रायल का रॉ डेटा सार्वजनिक नहीं किया जा सकता - raw data of covid 19 trial

केंद्र सरकार ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि कोविड 19 क्लिनिकल ट्रायल के रॉ डेटा का सार्वजनिक रूप से खुलासा नहीं किया जा सकता. इससे जनता के बीच गलत धारणा बनेगी. सरकार ने तर्क दिया कि विशेषज्ञों की समिति ने आंकड़ों की जांच की है.

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सुप्रीम कोर्ट

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Published : Mar 15, 2022, 6:18 PM IST

Updated : Mar 15, 2022, 7:58 PM IST

नई दिल्ली :केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि कोविड 19 क्लिनिकल ट्रायल का सार्वजनिक रूप से खुलासा नहीं किया जा सकता, इससे गैर-जिम्मेदार मूल्यांकन, गलत सूचना और गलत व्याख्या होगी. इसके साथ ही सरकार ने तर्क दिया कि विशेषज्ञों की समिति ने आंकड़ों की जांच की है. सरकार ने कहा कि डब्ल्यूएचओ के दिशानिर्देशों के अनुसार, परीक्षण डेटा के प्रमुख परिणामों को सार्वजनिक डोमेन में होना चाहिए न कि रॉ टेस्ट डेटा.

न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति बीआर गवई की पीठ, जैकब पुलियेल की एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें कोविड 19 परीक्षण डेटा का खुलासा करने की मांग की गई थी. सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट में कहा कि टीके के परीक्षण के संबंध में कई चरण हैं. रासायनिक परीक्षण, पशुओं पर परीक्षण, ह्यूमन क्लिनिकल ट्रायल, प्रति व्यक्ति टीके की गुणवत्ता का परीक्षण, इम्यूनोजेनेसिटी चरण (क्या टीका मनुष्यों के लिए सुरक्षित है) आदि.

ये परीक्षण उस साइट पर होते हैं जहां एक तटस्थ जांचकर्ता नियुक्त किया जाता है. नैतिकता समिति का गठन किया जाता है. अच्छे क्लिनिकल ट्रायल अभ्यास में दिशानिर्देशों का पालन किया जाता है. वैधानिक प्राधिकरण औचक निरीक्षण करते हैं और विभिन्न वैधानिक प्रावधान हैं जिनका परीक्षण में पालन किया जाता है. इस सब के बारे में डेटा परिवार और स्वास्थ्य कल्याण वेबसाइट पर प्रकाशित किया जाता है. याचिकाकर्ता ने जो आरोप लगाया है उसके बारे में कहना है कि कुछ भी अपारदर्शी तरीके से नहीं होता है.

कोविड 19 वैक्सीन के प्रतिकूल प्रभाव के बारे में बात करते हुए सॉलिसिटर जनरल ने तर्क दिया कि कुल टीकों में से 77,000 मामलों में प्रतिकूल प्रभाव होने की सूचना है जो 0.04% है. इनमें से 1046 मामलों में मौत की सूचना है, लेकिन उसके क्या कारण हैं, इसका आकलन किया जाना बाकी है. अभी यह पुष्टि नहीं की जाती है कि मौतें टीके के कारण हुई हैं. टीके के बाद भी किसी की मौत होती है तो यह पता लगाने के लिए एक प्रणाली है कि इसकी वजह टीकाकरण है.
सॉलिसिटर जनरल ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता ने दुनिया का कोई ऐसा सबूत नहीं पेश किया है जिसमें कानूनी तौर पर रॉ डेटा दिखाना जरूरी है. रॉ डेटा की जांच की जाती है लेकिन अगर कोई ये कहता है कि वह अपनी जिज्ञासा को संतुष्ट करने या वैक्सीन के बारे में झिझक के कारण ऐसे आंकड़े मांगता है तो ये संभव नहीं है. एसजी ने तर्क दिया कि अगर ऐसे डेटा का खुलासा किया जाता है तो टेस्ट में शामिल होने वाले स्वयंसेवक झिझकेंगे.

टीकाकरण अनिवार्य करने के मामले पर सॉलिसिटर जनरल ने ये कहा
याचिका में कुछ राज्यों द्वारा टीकाकरण अनिवार्य किए जाने का भी मुद्दा उठाया गया है. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट में कहा कि यह अभी अनिवार्य नहीं है लेकिन भविष्य में ऐसी स्थिति आने पर इसे अनिवार्य किया जा सकता है. जनहित याचिका की निंदा करते हुए सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि इस तरह की जनहित याचिकाएं सिर्फ आपराधिक रूप से अदालत का समय बर्बाद करती हैं. इससे अन्य मामलों की सुनवाई प्रभावित होती है और लोगों के मन में निराशा पैदा करती हैं. एसजी ने तर्क दिया कि 'यहां लोग टीकाकरण के लिए कतार में हैं और वहां एक सज्जन चाहते हैं कि उनकी जिज्ञासा संतुष्ट हो.'

'ऐसी याचिकाओं को सुनने से इनकार कर देना चाहिए'
न्यायालयों को जहां आवश्यक हो वहां हस्तक्षेप करके सामाजिक संतुलन बनाए रखते हुए न्याय करना चाहिए और जहां आवश्यक नहीं है वहां मना कर देना चाहिए. जनहित याचिका की आलोचना करते हुए, एसजी ने तर्क दिया कि इसे शरारत के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है. निहित स्वार्थ वाले कुछ लोग टाइम पास करते हैं और ऐसी जनहित याचिकाओं को बाहर कर दिया जाना चाहिए. एसजी ने कहा, 'मरने का अधिकार एक मौलिक अधिकार हो सकता है लेकिन मुझे संक्रमित करने का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है. दूसरों के मौलिक अधिकारों को संतुलित करें.' मामले की सुनवाई 21 और 22 मार्च को फिर से जारी रहेगी.

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Last Updated : Mar 15, 2022, 7:58 PM IST

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