लंदन: महामारी के इस काल में टेस्टिंग या जांच की एक अहम भूमिका है और जांच का परिणाम निगेटिव आने पर लोगों को काम पर या फिर कहीं भी आने जाने की आजादी मिल जाती है, जबकि पॉजिटिव परिणाम वाले लोगों को अलग थलग करके अन्य को संक्रमण से बचाने की कोशिश की जाती है.
लेकिन यहां यह जान लेना जरूरी है कि परीक्षण के लिए आम तौर पर इस्तेमाल होने वाला लैब आधारित तरीका, जिसे पीसीआर परीक्षण कहा जाता है, पूरी तरह सटीक नहीं होता. कई बार किसी को गलत तरीके से कोविड संक्रमित बता दिया जाता है, जबकि वह संक्रमित नहीं होता और 0.8 से 4 प्रतिशत मामलों में ऐसा गलत परिणाम देखा जा रहा है.
दूसरे पहलू की बात करें तो गलत तरीके से निगेटिव बताने वाला अनुमान बहुत व्यापक है, जो इसे अनिश्चित बना देता है. एक व्यापक समीक्षा के अनुसार तकरीबन 1.8 से 58 प्रतिशत मामलों में कोविड के संक्रमित लोगों को गलत टेस्ट रिपोर्ट देकर निगेटिव या गैर संक्रमित बता दिया जाता है.
हालांकि जब आप पीसीआर टेस्ट कराते हैं तो आपको इस आशय की जानकारी दी जाती है या नहीं यह आपके स्वास्थ्य प्रदाता या सरकार की नीति पर निर्भर करता है. यह मायने रखता है, क्योंकि, जैसा शोधकर्ताओं ने पाया कि परीक्षणों के बारे में यह अनिश्चितता लोगों की अपने टेस्ट परिणाम को समझने और उसके अनुरूप अगला कदम उठाने के निर्णय को प्रभावित करती है और एक महामारी में, इसके गंभीर स्वास्थ्य परिणाम हो सकते हैं.
ब्रिटेन के 1,744 लोगों पर किए गए एक अध्ययन, जिसमें आयु एवं लिंग के संदर्भ में राष्ट्रीय जनसंख्या के अनुपात में नमूने एकत्र किए गए, एक काल्पनिक परिदृश्य का निर्माण करते हुए अध्ययन में शामिल लोगों को बताया गया कि जॉन नाम के एक व्यक्ति की तबीयत ठीक नहीं है और उसके लक्षणों को देखते हुए एक जानकार डॉक्टर का मानना है कि उसे कोरोना होने की आशंका 50-50 प्रतिशत है. ऐसे में जॉन पीसीआर टेस्ट कराता है.
अध्ययन में शामिल लोगों में से आधे लोगों को बताया गया कि जॉन कोरोना पॉजिटिव है और आधे लोगों को बताया गया कि जॉन कोरोना निगेटिव हैं उसके बाद अध्ययन में भाग लेने वाले प्रत्येक व्यक्ति को न्यूजीलैंड के स्वास्थ्य मंत्रालय, अमेरिका के रोग नियंत्रण केन्द्र (सीडीसी) अथवा ब्रिटेन की राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा (एनएचएस) द्वारा इस स्थिति के लिए जारी जानकारी से अवगत कराया गया. कुछ लोगों को इस तरह की किसी सूचना से अलग रखा गया.