यरूशलेम : COVID-19 के ओमिक्रॉन वेरिएंट की सक्रियता अगले कुछ महीनों कम हो सकती है लेकिन डेल्टा वेरिएंट फिर से उभर सकता है. बेर्शेबा के बेन-गुरियन यूनिवर्सिटी ऑफ नेगेव (बीजीयू) के शोधकर्ताओं ने एक नए शोध में ऐसी आशंका जताई है. उनके निष्कर्ष पीयर-रिव्यू जर्नल साइंस ऑफ द टोटल एनवायरनमेंट में प्रकाशित हुए है. जिसका शीर्षक था 'मैनेजिंग ए इवॉलविंग पैंडमिक : क्रिप्टिक सर्कुलेशन ऑफ डेल्टा वैरिएंट ड्यूर द ओमिक्रॉन राइज'.
2019 के अंत में दिखाई देने वाला पहला नया कोरोनावायरस अल्फा था. उसके बाद बीटा जो पहली बार दक्षिण अफ्रीका में पाया गया. गामा, पहली बार ब्राजील में पाया गया. डेल्टा पहली बार भारत में पाया गया था. इसके बाद हमें पता चला अधिक संक्रामक लेकिन कम घातक ओमिक्रोन के बारे में. जिसके कई प्रकार उप-प्रकार विकसित हो चुके हैं और पूरी दुनिया में फैल गए हैं. प्रो. एरियल कुश्मारो और डॉ. करिन यानिव के अनुसार, जबकि डेल्टा संस्करण ने इसके पहले के वेरिएंट को मिटा दिया था लेकिन ओमिक्रॉन ने डेल्टा को समाप्त नहीं किया है. उनके मुताबिक उनकी लैब टीम ने संवेदनशील सरणियां विकसित की हैं जो अपशिष्ट जल में एक-दूसरे से भिन्न रूपों को अलग कर सकती हैं. जो यह संकेत देती रहती हैं कि कोरोनवायरस कहां सक्रिय है.
तेल अवीव विश्वविद्यालय में आणविक सूक्ष्म जीव विज्ञान और जैव प्रौद्योगिकी में अपनी अग्रिम डिग्री अर्जित करने वाले कुष्मारो ने हिब्रू विश्वविद्यालय और हार्वर्ड में पोस्ट डॉक्टरल फेलो के रूप में प्रशिक्षण लिया है. वह 21 साल पहले बीजीयू पहुंचे और स्कूल ऑफ सस्टेनेबिलिटी एंड क्लाइमेट चेंज और गोल्डस्टीन-गोरेन डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी इंजीनियरिंग में एक लैब की स्थापना की. प्रयोगशाला अपशिष्ट जल सूक्ष्म जीव विज्ञान, समुद्री माइक्रोबियल पारिस्थितिकी और विभिन्न सूक्ष्मजीवों की रोगाणुरोधी गतिविधि के साथ-साथ औद्योगिक अपशिष्ट जल के जैविक उपचार में माहिर है.