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कोरोना की दूसरी लहर में आम लोगों का जीना मुहाल, जानिए अपने राज्य का हाल

कोरोना की पहली लहर से देश अभी उबरा भी नहीं था कि दूसरी लहर ने लोगों की जिंदगी को फिर से बेपटरी कर दिया. तिनका-तिनका समेट कर गांव लौटे कामगारों ने चंद हफ्ते पहले एक बार फिर शहरों की ओर कूच किया लेकिन इस बार वे बैरंग लौटने को मजबूर हो गए. संक्रमण की तेज रफ्तार से विकास के पहिए थमने लगे हैं और इसी के साथ आम लोगों की जिंदगी भी ठहर सी गई है.

रोजगार पर कोरोना की मार
रोजगार पर कोरोना की मार

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Published : May 15, 2021, 7:25 PM IST

हैदराबादः कोरोना सिर्फ लोगों को बीमार नहीं कर रहा बल्कि इसकी चपेट में अर्थव्यवस्था भी आ गई है. संक्रमण की चेन तोड़ने के लिए लगभग सभी राज्यों में फिर से लॉकडाउन या आंशिक तालाबंदी कर दी गई है. काम-धंधे बंद होने लगे तो कामगार फिर से गांव लौटने लगे हैं. बड़े उद्योगों में कामगारों की कमी हो गई है तो दैनिक मजदूरी करके कमाने-खाने वाले लोगों को काम ही नहीं मिल रहा है. आपके राज्य में रोजगार की स्थिति कैसी है, ये जानने के लिए आगे पढ़ें.

ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) मौजूदा दौर में नाकाफी साबित हो रही है. असंगठित क्षेत्रों और पर्यटन से जुड़े लोगों की आजीविका पर सबसे ज्यादा असर पड़ा है. शिक्षा जगत से जुड़े निजी शिक्षकों की स्थिति भी अच्छी नहीं कही जा सकती. ज्यादातर ट्रेनों के रद्द होने के कारण इस पर आश्रित कुलियों, ऑटो चालकों, होटल संचालकों और दुकानदारों की रोजी-रोटी पर भी आफत आ गई है.

महाराष्ट्र

महाराष्ट्र में मई 2021 तक 102.3 लाख जॉब कार्ड जारी किए गए हैं. यहां श्रमिकों की कुल संख्या 236.94 लाख है. 29.5 लाख सक्रिय जॉब कार्ड हैं और सक्रिय कामगारों की कुल संख्या 55.9 लाख है. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के अनुसार महाराष्ट्र की बेरोजगारी दर अप्रैल 2020 में 20.9 फीसदी तक बढ़ गई हालांकि अप्रैल 2021 में यह घटकर 5.5 फीसदी पर पहुंच गई है. राज्य सरकार ने औद्योगिक क्षेत्रों, उत्पादन इकाइयों और कृषि को लॉकडाउन से दूर रखा है. मैनपावर की कमी पर कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है लेकिन प्रवासी मजदूरों के बड़े पैमाने पर पलायन के कारण श्रमिकों और कर्मचारियों की कमी का सामना करना पड़ रहा है. राज्य में कोरोना की दूसरी लहर में सभी पर्यटन स्थल बंद हैं. पर्यटन से जुड़े निजी कर्मचारी बेरोजगार हो गए हैं. बात शिक्षा जगत की करें तो राज्य में स्कूल और कॉलेज पूरी तरह से बंद हैं. सरकारी शिक्षकों को वेतन पाने में कोई कठिनाई नहीं है लेकिन निजी संस्थानों में 50 फीसदी तक वेतन कटौती की जा रही है. कोरोना की दूसरी लहर में ट्रेनों की घटती संख्या और प्रतिबंध के कारण, मुंबई सहित राज्य के विभिन्न रेलवे स्टेशनों पर काम करने वाले लोग भी प्रभावित हुए हैं. कुली, छोटे दुकानदार, ऑटो और टैक्सी चालकों की हालत खराब है. सरकार के पास इससे जुड़े लोगों का डेटा भी उपलब्ध नहीं है.

महाराष्ट्र

गुजरात

गुजरात में मनरेगा के तहत कुल 44.62 श्रमिकों ने पंजीकरण कराया है. फिलहाल 27.12 लाख श्रमिकों को जॉब कार्ड जारी किया गया है. असंगठित क्षेत्र से जुड़े करीब एक करोड़ लोगों की स्थिति खराब है. आंशिक लॉकडाउन की स्थिति के कारण लोग प्रभावित हो रहे हैं. बाजार, शॉपिंग मॉल, मूवी हॉल और भोजन आउटलेट सभी बंद पड़े हैं. औद्योगिक क्षेत्र में भी स्थिति अच्छी नहीं कही जा सकती. सभी उद्योग सिर्फ 50 फीसदी क्षमता के साथ काम कर रहे हैं. पर्यटन के लिहाज से भी ये समय संकट का है. राज्य के सभी पर्यटन स्थल बंद हैं. सिर्फ एक महीने के अंदर ही 2-3 करोड़ रुपए का नुकसान हो चुका है. टूर ऑपरेटर्स और इससे जुड़े लोगों अत्यधिक प्रभावित हुए हैं. राज्य में सभी शैक्षणिक संस्थान पूरी तरह से बंद हैं. हालांकि गर्मियों की छुट्टी से पहले ऑनलाइन कक्षाएं आयोजित की जा रही थीं. अब तक स्कूल के शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों को कोविड ड्यूटी दी जाती रही है. पश्चिम रेलवे में अधिकांश ट्रेनें रद्द हैं लिहाजा कुली, वेंडर, ऑटो, कैब और फूड स्टॉल से जुड़े हजारों लोगों की आजीविका पर असर हुआ है.

गुजरात

पश्चिम बंगाल

पश्चिम बंगाल में वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान मनरेगा के तहत 118 लाख लोगों को काम दिया गया. इस आंकड़े के साथ पश्चिम बंगाल पूरे देश में पहले पायदान पर रहा. आवंटित धनराशि खर्च करने के मामले में उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश के बाद पश्चिम बंगाल तीसरे स्थान पर रहा. यहां मनरेगा के तहत कुल 10,403.13 करोड़ रुपए उपयोग किए गए. राज्य में असंगठित क्षेत्र में रोजगार की स्थिति पर राज्य के श्रम विभाग के पास कोई ठोस डेटा उपलब्ध नहीं है. हाल ही में केंद्र द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, कोरोना महामारी और अंफान चक्रवात का सामना करने के बावजूद, राज्य के एमएसएमई क्षेत्र ने पिछले वित्त वर्ष 2019-20 में 88.67 लाख इकाइयों में 135.52 लाख लोगों को रोजगार दिया. औद्योगिक क्षेत्रों की स्थिति से जुड़े आंकड़े फिलहाल उपलब्ध नहीं हैं. वहीं इस साल मार्च के मध्य से राज्य के विभिन्न पर्यटन संघों के रिकॉर्ड के अनुसार करीब 90 फीसदी बुकिंग रद्द कर दी गई. महामारी के कारण नौकरी छूटने का कोई ठोस आंकड़ा उपलब्ध नहीं है, लेकिन इस क्षेत्र से जुड़े लोगों का ऐसा कहना है कि यदि महामारी को जल्द नियंत्रण में नहीं लाया गया, तो इस क्षेत्र में नए सिरे से छंटनी होगी. बंगाल के सरकारी और राज्य-सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थानों के शिक्षकों और कर्मचारियों की स्थिति सामान्य है. निजी शिक्षण संस्थानों में भी छंटनी की कोई जानकारी नहीं मिली है. रेलवे से जुड़े लोगों की बात करें तो श्रम विभाग या ट्रेड यूनियन के पास आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं.

पश्चिम बंगाल

असम

असम में साल 2021-22 के दौरान मनरेगा के तहत 91.09 लाख कार्य दिवस सृजित किए गए. वित्तीय वर्ष के दौरान 7,111 काम पूरे किए गए और इस पर कुल 21681.59 लाख रुपए खर्च हुए. इसमें मजदूरी के रूप में कुल 21402.13 लाख रुपए श्रमिकों को दिए गए. असम सरकार ने 'असंगठित श्रमिक की सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, 2008' के तहत 'असंगठित श्रमिक' को परिभाषित किया है. ऐसे श्रमिकों के लिए पंजीकरण का एक प्रचलन है. यहां 25000 निर्माण श्रमिक पंजीकृत हैं. ऑल असम कंस्ट्रक्शन लेबर यूनियन के अध्यक्ष रंजीत दास के मुताबिक असम में करीब तीन लाख कंस्ट्रक्शन लेबर हैं. असम में कोई बड़ा औद्योगिक क्षेत्र नहीं है. हालांकि कामरूप और तिनसुकिया जिले में कुछ औद्योगिक समूह हैं, जो पिछले साल से बंद हैं. असम में पर्यटन का मौसम अक्टूबर से शुरू होता है और मई तक जारी रहता है. असम में पर्यटन उद्योग कोरोना काल के पहले से ही पूरी तरह से प्रभावित था. दिसंबर 2019 में नागरिकता संशोधन अधिनियम से संबंधित हिंसा के कारण पर्यटन को भारी नुकसान हुआ. एक अनुमान के अनुसार असम में पर्यटन क्षेत्र में पिछले साल 300 करोड़ का घाटा हुआ और इससे जुड़े करीब पांच लाख लोगों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा. हालांकि अक्टूबर 2020 से पर्यटकों ने राज्य में पहुंचना शुरू कर दिया, लेकिन महामारी के कारण आमद कम रही. अब दूसरी लहर के साथ असम सरकार ने काजीरंगा सहित सभी राष्ट्रीय उद्यानों को पहले ही बंद कर दिया है. पिछले साल से असम में ज्यादातर स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय बंद हैं और अपनी आजीविका बचाए रखने के लिए अधिकांश ने ऑनलाइन क्लास का सहारा लिया. रेलवे से जुड़े लोगों की बात करें तो रेलवे के पास कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है. अकेले गुवाहाटी रेलवे स्टेशन में लगभग 12 हजार पंजीकृत कुली और विक्रेता हैं, जिनमें से 90 फीसदी बेरोजगार हो चुके हैं. पिछले साल कोरोना ने ट्रेन के पहियों पर पूरी तरह से ब्रेक लगा दिया था. इस साल सीमित ट्रेनों की आवाजाही शुरू है लेकिन यात्रियों की संख्या में भारी कमी आई है, जिससे इन कुलियों और विक्रेताओं का जीवन प्रभावित हुआ है.

असम

बिहार

बिहार के ग्रामीण विकास विभाग के अनुसार वर्तमान में लगभग 11 लाख लोग रोजगार गारंटी योजनाओं से जुड़े हुए हैं. यहां लॉकडाउन के बाद भी निर्माण से संबंधित काम नहीं रोके गए हैं. हालांकि लॉकडाउन के कारण असंगठित क्षेत्रों से जुड़े लोग बुरी तरह प्रभावित हैं. असंगठित क्षेत्र में 16 लाख पंजीकृत लोग हैं, जिनके बेरोजगार होने की आशंका है. राज्य के लगभग एक लाख सूक्ष्म, लघु और बड़े उद्योगों में 20 लाख से ज्यादा लोग जुड़े हैं. उद्योगों में उत्पादन 50 फीसदी तक कम हो गया है. राज्य में पर्यटन बंद है, जिससे पर्यटन क्षेत्र से जुड़े लोग बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. एक अनुमान के मुताबिक तकरीबन 10 लाख लोग पर्यटन से जुड़े हैं और इनकी स्थिति सही नहीं है. राज्य में सभी स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय भी बंद हैं. इससे जुड़े कर्मचारी गैर-शैक्षणिक कार्यों में लगे हुए हैं. राज्य में पूर्व मध्य रेलवे के तहत लगभग 1700 पंजीकृत कर्मचारी हैं और रेलवे स्टेशनों पर लगभग 5000 गैर पंजीकृत लोग और उनके परिवार के सदस्य प्रभावित हैं.

बिहार

मध्य प्रदेश

मध्य प्रदेश में इन दिनों भी ग्रामीण इलाकों में मनरेगा का काम चल रहा है. हालांकि जिन गांवों में संक्रमण ज्यादा है, वहां पर मनरेगा के तहत काम नहीं हो रहा है. राज्य के 51 जिलों में 87.25 लाख जॉब कार्ड हैं. एक्टिव जॉब कार्ड की संख्या 62.81 लाख है. पिछले 15 दिनों में 433.27 लाख रुपए मजदूरी का भुगतान किया जा चुका है. लोगों को 21.65 दिन औसत रोजगार उपलब्ध कराया गया है. मध्य प्रदेश में मनरेगा के तहत 186.18 रुपए दिए जाते हैं. लॉकडाउन के कारण 90 फीसदी लोगों के पास काम धंधा नहीं है और मजदूरी मुश्किल से मिल रही है. प्रदेश की कुल कार्यशील जनसंख्या 4.15 करोड़ है, जिसमें से 90 फीसदी से ज्यादा लोग असंगठित क्षेत्र में हैं. इसमें खेतिहर मजदूरों की संख्या 2.21 करोड़, पारिवारिक उद्योग कर्मी 20.59 लाख और अन्य कर्मी 1.78 लाख हैं. इसके अलावा प्रदेश में काश्तकारों की संख्या 98.44 लाख है. राज्य में बड़े औद्योगिक सेक्टर भी संकट में हैं. गांव वापस लौटने के कारण आधे से ज्यादा कामगारों की कमी हो गई है. लॉकडाउन में कच्चे माल की आपूर्ति नहीं होने से भी औद्योगिक सेक्टर बुरी तरह से प्रभावित हुआ है. अप्रैल में आपदा के बीच सीएम शिवराज सिंह ने 1891 एमएसएमई उद्योगों का शुभारंभ किया है. इसके जरिए 50 हजार से अधिक लोगों को रोजगार उपलब्ध कराए जाएंगे. इसमें 572 इकाइयां मार्च 2021 तक स्थापित हो चुकी है और अगले तीन महीने में 296 और छह महीने में 1023 इकाइयां लगेंगी. साल 2019 में राज्य में 8 करोड़ 60 लाख से अधिक पर्यटक आए थे. लेकिन बीते दो सालों में पर्यटन बुरी तरह से पिट गया और इससे जुड़े 5 लाख से ज्यादा लोगों का रोजगार छिन गया. दूसरे राज्यों की तरह यहां सभी स्कूल और कॉलेज बंद है. स्कूलों की छुट्टियों के चलते प्राइवेट शिक्षकों को वेतन नहीं मिल रहा है. मध्य प्रदेश रेलवे के छह जोन में बंटा है. रेलवे से जुड़े लोगों को फिलहाल रोजगार मिल रहा है लेकिन यात्रियों की कमी के चलते आमदनी और रोजगार दोनों पर असर पड़ा है.

मध्य प्रदेश

छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ में कुल 68,68,588 सक्रिय मनरेगा मजदूर हैं. इस बार ग्रामीण इलाकों में फैलने के चलते कई जिलों में मनरेगा के काम पर असर पड़ा है. राज्य में 14,33,687 मजदूर असंगठित क्षेत्र में पंजीकृत हैं. कोरोना महामारी के चलते इन मजदूरों पर काफी बुरा असर पड़ा है. औद्योगिक क्षेत्रों के संबंध में फिलहाल कोई ठोस डाटा उपलब्ध नहीं है. इस बार मध्यम और बड़े उद्योगों को कोरोना गाइडलाइन का पालन करते हुए काम करने की छूट दी गई है. इसलिए माना जा रहा है कि इस सेक्टर के मजदूरों पर ज्यादा असर नहीं पड़ा है. हालांकि लॉकडाउन के चलते पर्यटन व्यवसाय बुरी तरह चरमरा गया है. इससे जुड़े लोगों को भारी बड़ा आर्थिक नुकसान झेलना पड़ रहा है. राज्य में स्कूल-कॉलेज बंद है. इस साल ज्यादातर स्कूलों में दाखिले की प्रक्रिया भी पूरी नहीं हो पाई है. कॉलेजों की परीक्षाएं ऑनलाइन होंगी. वहीं रेलवे के सीमित संचालन से वेंडर्स और कुलियों पर तो सीधा असर पड़ा ही है. साथ ही बड़े स्टेशन के बाहर होने वाले कारोबार पर भी इसका बड़ा असर देखा जा रहा है. इसके अलावा रिक्शा-ऑटो चालकों की आजीविका पर भी असर पड़ा है.

छत्तीसगढ़

झारखंड

झारखंड में मनरेगा के तहत रोजगार सृजन जारी है. राज्य में अब तक 65.28 लाख लोगों को जॉब कार्ड दिया गया है और फिलहाल 40.9 लाख सक्रिय कामगार हैं. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनामी यानी सीएमआईई के अनुसार इस साल जनवरी महीने में बेरोजगारी दर 11.35 % थी जो मई में 16.5 % पर पहुंच गया है. राज्य सरकार ने औद्योगिक क्षेत्रों, माइनिंग और एग्रीकल्चर जैसे क्षेत्रों को पाबंदी से दूर रखा है. इन क्षेत्रों में गतिविधियां बनी हुई है हालांकि कोरोना के भय से श्रमिकों की थोड़ी कमी हो गई है. कोरोना के कारण सबसे ज्यादा प्रभाव राज्य के पर्यटन उद्योग पर पड़ा है. राज्य में छोटे-बड़े करीब 250 सौ पर्यटन स्थल हैं, जो फिलहाल बंद हैं. इससे जुड़े हजारों लोग बेरोजगार हो चुके हैं. पर्यटन के अलावा राज्य में स्कूल-कॉलेज भी पूरी तरह बंद है. सरकारी स्कूल- कॉलेज के कर्मियों को तो वेतन मिलने से कोई कठिनाई नहीं है लेकिन निजी शिक्षकों के वेतन में 30 फीसदी तक कटौती कर दी गई है और वह भी समय पर नहीं मिल पा रहा है. कोरोना की दूसरी लहर में ट्रेनों की घटती संख्या और पाबंदी के कारण रांची सहित राज्य के विभिन्न रेलवे स्टेशन पर काम करने वाले लोगों पर खासा असर पड़ा है. रांची और हटिया स्टेशन पर काम करने वाले तकरीबन 1500 कुली बेरोजगार हैं. इसी तरह स्टेशन के अंदर और बाहर दुकान लगाने वाले और ऑटो चलाने वालों की स्थिति भी खस्ताहाल है. इससे जुड़े लोगों का आंकड़ा सरकार के पास नहीं है.

झारखंड

पंजाब

पंजाब में कुल 3 लाख मनरेगा वर्कर काम करते हैं और लॉकडाउन में भी लगातार काम चल रहा है. इसके साथ ही 2.86 लाख कंस्ट्रक्शन वर्कर पंजाब में रजिस्टर हैं, जिनमें से 50 फीसदी काम कर रहे हैं. राहत के लिए सरकार की तरफ से 6000 रुपए हर वर्कर को देने का ऐलान किया गया था, जिसके लिए सरकार ने 171.60 करोड़ रुपए का बजट रखा है. औद्योगिक क्षेत्र की बात करें तो पंजाब में कुल 2.59 लाख इकाइयां रजिस्टर्ड हैं, जिसमें 87 फीसदी यूनिट में काम जारी है. राज्य में 10 लाख प्रवासी मजदूर हैं जिनमें से करीब 5 लाख लोगों की आजीविका प्रभावित हुई है. राज्य में संचालित करीब 17 हजार रेस्टोरेंट, बार और होटलों के 70 फीसदी लोग बेरोजगार हो चुके हैं. यहां बेरोजगारी का आंकड़ा अप्रैल तक 5.3% फीसदी था. महामारी की दूसरी लहर के चलते बेरोजगारी बढ़ने के आसार हैं. देशभर की तरह राज्य के स्कूलों में भी ऑनलाइन क्लासेस जारी हैं. डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट यूनियन के अनुसार जिन स्कूलों में 10 से ज्यादा कर्मचारी हैं, वहां 50 फीसदी रोटेशन के आधार पर काम किया जा रहा है. करीब 80 फीसदी प्राइमरी और मिडिल स्कूलों में पूरा स्टाफ आ रहा है और 20 फीसदी में रोटेशन के आधार पर काम हो रहा है. इसमें में ज्यादातर शिक्षक वर्क फ्रॉम होम कर रहे हैं और नॉन टीचिंग स्टाफ जरूरत के मुताबिक बुलाए जाते हैं. पंजाब में 285 रेलवे स्टेशन हैं, जहां करीब 19,000 वेंडर काम करते हैं. कुछ वेंडर्स को 6 महीने के लिये कॉन्ट्रैक्ट पर भी लिया जाता है.

पंजाब

राजस्थान

राजस्थान में कोरोना संक्रमण के चलते मनरेगा के तहत काम फिलहाल बंद है. बीते दिनों मंत्रिमंडल की बैठक में मनरेगा के कार्यों को स्थगित करने का फैसला लिया था. असंगठित क्षेत्रों के कामगारों की स्थिति दयनीय है. लॉकडाउन के कारण 1 करोड़ से ज्यादा लोगों की कमाई का जरिया बंद हो चुका है. हालांकि औद्योगिक क्षेत्रों में काम जारी है. कामगारों का पलायन रोकने के लिए राज्य सरकार ने उत्पादन जारी रखा है. राजस्थान की अर्थव्यवस्था में पर्यटन का बड़ा योगदान है और ज्यादातर व्यवसाय प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पर्यटन से जुड़े हुए हैं. पर्यटन बंद होने से एक बड़ा तबका बेरोजगारी की चपेट में आ गया है. राजस्थान सरकार के आदेश के अनुसार 30 जून तक सभी स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय बंद हैं. रेलवे पर आश्रित लोगों के आंकड़े सरकार के पास उपलब्ध नहीं है. जयपुर के कर्मचारी यूनियन के अनुसार होटल, स्ट्रीट वेंडर, कुली और स्थानीय परिवहन सेवाओं से जुड़े तकरीबन 1,50,000 लोग सीधे तौर पर प्रभावित हुए हैं.

राजस्थान

ओडिशा

ओडिशा में मनरेगा ने रोजगार के अवसर पैदा करके टिकाऊ संपत्ति और कमजोर परिवारों की आय में वृद्धि के माध्यम से आजीविका सुरक्षा पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला है. वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान 37.01 लाख परिवारों को रोजगार मिला और 20 करोड़ कार्य दिवस सृजित किए गए. हालांकि महामारी के प्रकोप के कारण श्रमिकों को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है और इसमें 30-40 फीसदी की कमी आई है. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडिया इकॉनोमी का अनुमान है कि मई में असंगठित क्षेत्र में बेरोजगारी दर राष्ट्रीय औसत 8.2 फीसदी की तुलना में लगभग 1.9 फीसदी होगी. यह भी अनुमान है कि लगभग 8 लाख लोग आने वाले दिनों में अपनी नौकरी खो देंगे. शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अधिक है. ओडिशा के औद्योगिक संवर्धन और निवेश निगम से मिली जानकारी के अनुसार बड़े उद्योग अब तक सुचारू रूप से चल रहे हैं. लेकिन उद्योग के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार कोविड के दिशानिर्देशों के कारण लगभग 50 फीसदी लोगों को शिफ्टों में तैनात करना पड़ा है, जिससे उत्पादन में 40 प्रतिशत की गिरावट आई है. ओडिशा में 213 बड़े उद्योग चल रहे हैं, इन उद्योगों में 1,09,891 लोग काम करते हैं. सूत्रों के अनुसार पिछले दो वर्षों से कोई वेतन वृद्धि नहीं हुई. राज्य में पर्यटन पर कोरोना के असर को लेकर कोई आधिकारिक जानकारी उपलब्ध नहीं है. ओडिशा के 43 हजार स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में 2 लाख 80 हजार शिक्षक, लेक्चरर और प्रोफेसर लगे हुए हैं. वर्तमान में सरकारी कॉलेज और स्कूल गर्मी की छुट्टी के कारण 50 फीसदी शिक्षण स्टाफ की क्षमता के साथ चल रहे हैं. निजी स्कूलों और कॉलेजों के शिक्षकों के वेतन भुगतान में देरी के साथ 30 फीसदी तक की कटौती की जा रही है. महामारी से भारतीय रेलवे को भारी नुकसान हुआ है. रेलवे ओडिशा के प्रमुख हिस्से को कवर करता है. इसके तहत 300 रेलवे स्टेशन हैं, जिन पर 35 हजार से ज्यादा लोग निर्भर हैं. 10 हजार से अधिक लोग कुली, विक्रेता और 25 हजार से अधिक लोग रेलवे निर्माण से संबंधित दूसरे कार्यों में लगे थे, वे भी महामारी की स्थिति के कारण अपनी आजीविका खो चुके हैं.

ओडिशा

कर्नाटक

कर्नाटक के ग्रामीण क्षेत्रों में मनरेगा का काम चल रहा है. सड़क निर्माण की कई गतिविधियों और खेती से संबंधित गतिविधियों को छूट दी गई है. हर दिन 6 लाख लोग काम कर रहे हैं. बेरोजगारी के कारण शिक्षित भी मनरेगा में काम कर रहे हैं. कर्नाटक में लॉकडाउन के कारण टैक्सी, स्ट्रीट हॉकर और अन्य दुकानों और प्रतिष्ठानों के लोग प्रभावित हो रहे हैं. राज्य में 2 फीसदी बेरोजगारी बढ़ी है और आशंका है कि लॉकडाउन के कारण बेरोजगारी की दर 20 फीसदी को पार कर सकती है. पहले लॉकडाउन के दौरान सीएमआईई ने 29.8 फीसदी बेरोजगारी के आंकड़े दिए थे. अब करीब 8 लाख लोग फिर से अपने घर लौट चुके हैं. राज्य में आवश्यक उद्योगों के अलावा सभी उद्योग बंद हैं. ऑक्सीजन की आपूर्ति के लिए कुछ उद्योग काम कर रहे हैं. उद्योगों के बंद होने से वेतन भी विचाराधीन है. कोरोना ने पर्यटन उद्योग को बहुत प्रभावित किया है. विशेषज्ञों का कहना है कि यात्रा और पर्यटन क्षेत्र में 50 फीसदी से अधिक की गिरावट हुई है और 20 लाख लोग प्रभावित हुए हैं. करीब 10 लाख से 15 लाख लोग बेरोजगार हो चुके हैं. राज्य में 4,75,000 कुल शिक्षण और गैर-शिक्षण कर्मचारी सरकारी और निजी संस्थानों दोनों में काम कर रहे हैं. इसमें 2,75,000 सरकारी कर्मचारी हैं, और शिक्षा संबंधी सभी गतिविधियां इंटरनेट के माध्यम से की जा रही हैं. दक्षिण-पश्चिम रेलवे में लगभग 10,000 कर्मचारी काम कर रहे हैं. दिशानिर्देशों के अनुसार हर शिफ्ट में केवल 50 फीसदी कर्मचारी ही काम कर रहे हैं. राज्य में रेलवे को रोका नहीं गया है लेकिन यात्री कम होने से कुली और अन्य कामगार प्रभावित हुए हैं.

कर्नाटक

केरल

केरल में मनरेगा के तहत पंजीकृत श्रमिकों की संख्या 60,67,965 है. इसमें केवल 2,87,263 श्रमिक सक्रिय हैं. साल 2020-21 के दौरान 1,79,432 लोगों को रोजगार मिला है और कुल 11,71,084 कार्य दिवस सृजित किए गए. राज्य सरकार ने मनरेगा श्रमिकों को लॉकडाउन की पाबंदियों से मुक्त रखा है लेकिन लॉकडाउन के कारण काम की कोई मांग नहीं है. राज्य के असंगठित क्षेत्र के विभिन्न कल्याण बोर्डों में पंजीकृत व्यक्तियों की कुल संख्या 79,03,233 है. इसके अलावा करीब एक करोड़ लोग पंजीकृत नहीं है. इसमें से 90 फीसदी ने अपनी नौकरी खो दी है. राज्य में सिर्फ वही औद्योगिक इकाइयां चल रही हैं, जो कोरोना से जंग के खिलाफ सामाग्री उत्पादित कर रही हैं. पर्यटन की बात करें तो केरल में 45000 लोग प्रत्यक्ष और 1 लाख लोग अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं. ये सभी अब लॉकडाउन के कारण दूसरी बार संकट का सामना कर रहे हैं. शैक्षणिक संस्थानों की स्थिति के बारे में आधिकारिक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं. रेलवे से जुड़े रोजगार को लेकर भी ठोस जानकारी उपलब्ध नहीं हो पाई है. केरल में कुल प्रवासी श्रमिकों की संख्या 6 लाख है. उनमें से ज्यादातर निर्माण कार्यों में लगे हुए हैं. राज्य सरकार ने निर्माण कार्यों को लॉकडाउन के बावजूद जारी रखने की अनुमति दी है. सरकार ने प्रवासी मजदूरों के लिए समय पर भोजन और चिकित्सा देखभाल सुनिश्चित करने को कहा है.

केरल

तमिलनाडु

तमिलनाडु के 36 जिलों में कुल 90.8 लाख जॉब कार्ड जारी किए गए हैं. इसमें 72.35 लाख सक्रिय जॉब कार्ड हैं. मनरेगा के तहत 130.58 लाख कामगार पंजीकृत हैं और इसमें 88.26 लाख कामगार सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं. राज्य में असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले कामगार यूनिवर्सल पीडीएस के तहत आते हैं. उन्हें तालाबंदी के दौरान भी राशन मिलता रहेगा. राज्य के सरकारी और सहायता प्राप्त कॉलेजों और स्कूलों के बंद रहने के बावजूद कर्मचारियों को लगातार वेतन दिया जा रहा है. हालांकि निजी शिक्षण संस्थानों में काम करने वाले शिक्षकों और कर्मचारियों को 50 फीसदी तक वेतन का भुगतान ही हो रहा है.

तमिलनाडु

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