नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि कोविड-19 ने कई जिंदगियां बर्बाद कर दीं और महामारी के दौरान अपने पिता, माता या दोनों को खो देने वाले बच्चों का जीवन दांव पर लगा देखना 'हृदय-विदारक' है. न्यायालय ने हालांकि ऐसे बच्चों को राहत पहुंचाने के लिये केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा घोषित योजनाओं को लेकर संतोष जताया.
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि सरकारों ने उन बच्चों की पहचान करने में संतोषजनक प्रगति की है, जो कोविड-19 महामारी के दौरान या तो अनाथ हो गए हैं या अपने माता-पिता में से किसी एक को खो दिया है.
न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की पीठ ने कहा, 'हमें खुशी है कि यूओआई (भारत सरकार) और राज्य सरकारों / केंद्र शासित प्रदेशों ने जरूरतमंद बच्चों को सहायता प्रदान करने के लिए योजनाओं की घोषणा की है. हमें इसमें कोई संदेह नहीं है कि संबंधित अधिकारी ऐसे बच्चों को तत्काल बुनियादी सुविधाएं प्रदान करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे.'
न्यायालय बच्चों के संरक्षण गृहों पर कोविड -19 के प्रभाव' को लेकर स्वत: संज्ञान मामले की सुनवाई कर रहा था. अदालत ने आदेश में कहा कि एक लाख से अधिक बच्चों ने महामारी के दौरान या तो माता, पिता या फिर दोनों को खो दिया है.
पीठ ने कहा, 'कोविड -19 ने कई लोगों विशेष रूप से अपने माता-पिता को खोने वाले कम उम्र के बच्चों की जिंदगी तबाह कर दी. यह देखना हृदय-विदारक है कि ऐसे अनेक बच्चों का जीवन दांव पर लगा है.' न्यायालय ने कहा कि बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) को किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 के प्रावधानों के अनुसार उन बच्चों की पहचान करने के लिए जांच तेज करनी होगी, जिन्हें देखभाल और सुरक्षा की आवश्यकता है.
पीठ ने कहा कि योजनाओं का लाभ जरूरतमंद नाबालिगों तक पहुंचे, यह सुनिश्चित करने के लिए भी तत्काल कदम उठाने होंगे. उच्चतम न्यायालय ने कहा कि सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने का संवैधानिक अधिकार है और बच्चों को शिक्षा की सुविधा प्रदान करना राज्य का कर्तव्य और दायित्व है.
पीठ ने 26 अगस्त के अपने आदेश में कहा, 'हमें इसमें कोई संदेह नहीं है कि सरकार असहाय बच्चों की शिक्षा जारी रखने के महत्व को समझती है.'