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कोरोना से कई जिंदगियां बर्बाद, बच्चों का जीवन दांव पर लगा देखना हृदय-विदारक: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कोविड-19 महामारी से होने वाली जिंदगियों की बर्बादी को ह्रदय-विदारक बताया है. उच्चतम न्यायालय ने कहा कि सरकारों ने उन बच्चों की पहचान करने में संतोषजनक प्रगति की है, जो कोविड-19 महामारी के दौरान या तो अनाथ हो गए हैं या अपने माता-पिता में से किसी एक को खो दिया है.

सुप्रीम कोर्ट
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Published : Aug 30, 2021, 1:58 PM IST

नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि कोविड-19 ने कई जिंदगियां बर्बाद कर दीं और महामारी के दौरान अपने पिता, माता या दोनों को खो देने वाले बच्चों का जीवन दांव पर लगा देखना 'हृदय-विदारक' है. न्यायालय ने हालांकि ऐसे बच्चों को राहत पहुंचाने के लिये केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा घोषित योजनाओं को लेकर संतोष जताया.

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि सरकारों ने उन बच्चों की पहचान करने में संतोषजनक प्रगति की है, जो कोविड-19 महामारी के दौरान या तो अनाथ हो गए हैं या अपने माता-पिता में से किसी एक को खो दिया है.

न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की पीठ ने कहा, 'हमें खुशी है कि यूओआई (भारत सरकार) और राज्य सरकारों / केंद्र शासित प्रदेशों ने जरूरतमंद बच्चों को सहायता प्रदान करने के लिए योजनाओं की घोषणा की है. हमें इसमें कोई संदेह नहीं है कि संबंधित अधिकारी ऐसे बच्चों को तत्काल बुनियादी सुविधाएं प्रदान करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे.'

न्यायालय बच्चों के संरक्षण गृहों पर कोविड ​​​​-19 के प्रभाव' को लेकर स्वत: संज्ञान मामले की सुनवाई कर रहा था. अदालत ने आदेश में कहा कि एक लाख से अधिक बच्चों ने महामारी के दौरान या तो माता, पिता या फिर दोनों को खो दिया है.

पीठ ने कहा, 'कोविड ​​​​-19 ने कई लोगों विशेष रूप से अपने माता-पिता को खोने वाले कम उम्र के बच्चों की जिंदगी तबाह कर दी. यह देखना हृदय-विदारक है कि ऐसे अनेक बच्चों का जीवन दांव पर लगा है.' न्यायालय ने कहा कि बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) को किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 के प्रावधानों के अनुसार उन बच्चों की पहचान करने के लिए जांच तेज करनी होगी, जिन्हें देखभाल और सुरक्षा की आवश्यकता है.

पीठ ने कहा कि योजनाओं का लाभ जरूरतमंद नाबालिगों तक पहुंचे, यह सुनिश्चित करने के लिए भी तत्काल कदम उठाने होंगे. उच्चतम न्यायालय ने कहा कि सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने का संवैधानिक अधिकार है और बच्चों को शिक्षा की सुविधा प्रदान करना राज्य का कर्तव्य और दायित्व है.

पीठ ने 26 अगस्त के अपने आदेश में कहा, 'हमें इसमें कोई संदेह नहीं है कि सरकार असहाय बच्चों की शिक्षा जारी रखने के महत्व को समझती है.'

पीठ ने केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी की इस दलील पर गौर किया कि कोविड-19 प्रभावित बच्चों की मदद और सशक्तिकरण के लिए शुरू की गई 'पीएम केयर्स बाल योजना' के तहत 18 वर्ष तक के पात्र बच्चों को शिक्षा प्रदान करने की बात कही गई है.

भाटी ने पीठ को बताया कि इस योजना के तहत पात्र 2,600 बच्चों को राज्यों द्वारा पंजीकृत किया गया है और इनमें से 418 आवेदनों को जिलाधिकारियों द्वारा अनुमोदित किया गया है.

पीठ ने जिलाधिकारियों को उन शेष बच्चों के आवेदनों के अनुमोदन की प्रक्रिया को पूरा करने का निर्देश दिया, जिनके नाम 'पीएम केयर्स' योजना के लिए पंजीकृत किए गए हैं.

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पीठ ने कहा कि जिन बच्चों ने पिछले साल मार्च के बाद माता-पिता में से किसी एक या दोनों को खो दिया है, राज्य सरकारें निजी स्कूलों को वर्तमान शैक्षणिक वर्ष के लिए इन बच्चों की फीस माफ करने के लिये कहेगी.

न्यायालय ने कहा, 'यदि निजी संस्थान इस तरह की छूट को लागू करने के लिए तैयार नहीं होते हैं, तो राज्य सरकार शुल्क का भार वहन करेगी.

पीठ ने कहा, 'जहां तक पीएम केयर्स बाल योजना के तहत पंजीकृत बच्चों का सवाल है तो राज्य सरकारों को केन्द्र सरकार से मौजूदा अकादमिक सत्र में उनकी फीस और शिक्षा से संबंधित अन्य खर्च उठाने का अनुरोध करने की छूट है.'

पीठ ने मामले की सुनवाई सात अक्टूबर तक स्थगित कर दी.

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