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अदालत ने कथित टैपिंग की जानकारी देने के सीआईसी के आदेश पर रोक लगाई - अदालत ने कथित टैपिंग

दिल्ली उच्च न्यायालय ने एकल न्यायाधीश वाली पीठ के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें दूरसंचार नियामक ट्राई को एक मोबाइल उपयोगकर्ता के फोन की कथित टैपिंग के बारे में जानकारी एकत्र करने और प्रस्तुत करने के केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के निर्देश को बरकरार रखा गया था.

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Published : Aug 9, 2021, 8:19 PM IST

नई दिल्ली : मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ ने एकल न्यायाधीश वाली पीठ के आदेश के खिलाफ ट्राई की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि प्रथम दृष्टया आदेश पर रोक का मामला बनाया गया है.

अदालत ने कहा कि सुविधा का संतुलन अपीलकर्ता (ट्राई) के पक्ष में है. अपूरणीय क्षति होगी (यदि एकल न्यायाधीश के आदेश पर रोक नहीं लगाई गई). अदालत ने निर्देश दिया कि मामले को 13 दिसंबर को अंतिम सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाए.

भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (ट्राई) की ओर से पेश अधिवक्ता मनीषा धीर ने तर्क दिया कि उनके पास फोन टैपिंग और निगरानी से संबंधित कोई जानकारी नहीं है. यह भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम के तहत केंद्रीय गृह मंत्रालय की मंजूरी से की जाती है.

उन्होंने कहा कि ऐसी कोई भी जानकारी संबंधित सेवा प्रदाता को देनी होगी. मोबाइल फोन उपयोगकर्ता वकील कबीर शंकर बोस ने एक आरटीआई दायर कर यह जानकारी मांगी थी कि क्या उनका फोन टैप किया जा रहा है.

जिनके ओर से पेश वकील कनिका सिंघल ने कहा कि यह मुद्दा निजता के अधिकार से संबंधित है और सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत एक सार्वजनिक प्राधिकरण होने के नाते ट्राई के पास सेवा प्रदाता को मांगी गई जानकारी प्रस्तुत करने के लिए कहने का अधिकार है.

उच्च न्यायालय ने दिसंबर 2018 में ट्राई की अपील और रोक आवेदन पर बोस को नोटिस जारी किया था. ट्राई ने अपनी अपील में कहा है कि केवल कानून लागू करने वाली एजेंसियां ​​ही फोन को इंटरसेप्ट या टैप करने के लिए अधिकृत हैं और इसका खुलासा करने से ऐसी कार्रवाइयां निष्फल हो जाएंगी.

दूरसंचार नियामक ने कहा कि एक फोन नंबर को इंटरसेप्ट करने के निर्देश केवल कुछ रैंक के सरकारी अधिकारियों द्वारा जारी किए जाते हैं और इस तरह की जानकारी को ट्राई द्वारा नहीं जोड़ा जा सकता है और उपभोक्ता/ग्राहक को नहीं दिया जा सकता है.

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क्योंकि यह राष्ट्र की संप्रभुता और अखंडता को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करेगा. उसमें यह भी तर्क दिया गया है कि राष्ट्र की सुरक्षा से संबंधित ऐसी जानकारी को आरटीआई अधिनियम के तहत सार्वजनिक करने से छूट दी गई है.

(पीटीआई-भाषा)

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