नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि समय आ गया है जब भारत की प्रधान न्यायाधीश महिला होनी चाहिए और इस सोच में कोई बदलाव नहीं हुआ है. न्यायालय ने कहा कि उसने हमेशा महिलाओं के हितों को ध्यान में रखा और उच्च न्यायपालिक में महिलाओं की नियुक्ति पर कोलिजियम ने प्रत्येक बैठक में विचार किया.
उल्लेखनीय है कि 26 जनवरी 1950 को मौजूदा न्यायिक व्यवस्था अस्तित्व में आई और अगले नामित प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण सहित 48 न्यायमूर्ति देश के शीर्ष न्यायिक पद पर आसीन हो चुके हैं, लेकिन इनमें से कोई भी महिला नहीं है. न्यायालय महिला वकीलों के निकाय द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था जिसमें उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों के तौर पर नियुक्ति में उनमें मौजूद 'सराहनीय' पर विचार करने का अनुरोध किया गया था.
प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की विशेष अवकाश पीठ ने कहा कि क्यों उच्च न्यायपालिका ही. हमारा मानना है कि समय आ गया है जब भारत की प्रधान न्यायाधीश महिला होनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट वुमेंस लॉयर्स एसोसिएशन (एससीडब्ल्यूएलए) की ओर से पेश अधिवक्ता स्नेहा कलिता ने पीठ से कहा कि उच्च न्यायपालिका में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 'बेहद ही कम' 11.04 प्रतिशत है. पीठ ने कलिता से कहा कि हम उच्च न्यायपालिका की नियुक्त में महिलाओं का पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहे हैं. मैं कहना चाहूंगा कि हर कोलिजियम नियुक्ति के लिए महिला के नाम पर विचार करती है.