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जमानत के मामलों में कानून के प्रावधानों पर बहस नहीं होना चाहिए: SC - कानून के प्रावधानों पर बहस नहीं

पीठ ने कहा, जमानत के हर मामले पर निचली अदालत, उच्च न्यायालयों और इस अदालत में लंबी बहस होती है. जमानत के मामलों में कानून के प्रावधानों पर बहस नहीं की जानी चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट
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Published : Jul 22, 2021, 5:23 PM IST

Updated : Jul 22, 2021, 5:30 PM IST

नई दिल्ली :उत्तरपूर्व दिल्ली दंगों के मामले (northeast delhi riots case) में तीन छात्र कार्यकर्ताओं की जमानत रद्द (bail of three student activists canceled) करने के मुद्दे पर विचार करने की अनिच्छा जाहिर करते हुए, उच्चतम न्यायालय (Supreme court) ने बृहस्पतिवार को कहा कि जमानत याचिकाओं पर कानून के प्रावधानों को लेकर की जा रही लंबी बहस परेशान करने वाली है.

न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की पीठ तीन छात्रों को जमानत देने के दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ दिल्ली पुलिस की अपील पर सुनवाई कर रही थी. पीठ ने पूछा कि पुलिस को जमानत मिलने से दुख है या फैसलों में की गई टिप्पणियों या व्याख्या से.

दिल्ली पुलिस की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वे दोनों बातों से व्यथित हैं और वे इन पहलुओं पर शीर्ष अदालत को संतुष्ठ करने की कोशिश करेंगे.

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पीठ ने मेहता से कहा, बहुत कम संभावना है, लेकिन आप कोशिश कर सकते हैं. इसने इशारा किया कि वह तीनों आरोपियों की जमानत रद्द करने के पहलू पर विचार करने को तैयार नहीं हैं, जिन्हें सख्त आतंकवाद रोधी कानून-गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) कानून (UAPA) के तहत आरोपी बनाया गया है.

शीर्ष अदालत ने कहा कि जमानत के मामलों पर बहुत लंबी बहस की जा रही है, यह जानते हुए भी कि आजकल वक्त सीमित है और इसने इन अपीलों पर कुछ घंटों से ज्यादा सुनवाई नहीं करने का प्रस्ताव दिया.

पीठ ने कहा, यह कुछ ऐसा है जो हमें कई बार परेशान करता है. जमानत के हर मामले पर निचली अदालत, उच्च न्यायालयों और इस अदालत में लंबी बहस होती है. साथ ही कहा, जमानत के मामलों में कानून के प्रावधानों पर बहस नहीं की जानी चाहिए.

पीठ ने मामले में सुनवाई चार हफ्ते बाद तय करते हुए कहा, जमानत के मामले अंतिम न्यायिक कार्यवाही की प्रकृति के नहीं होते हैं और जमानत दी जानी है या नहीं, इस पर प्रथम दृष्टया निर्णय लिया जाना होता है.

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शीर्ष अदालत जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) की छात्रा नताशा नरवाल और देवांगना कलिता व जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के छात्र आसिफ इकबाल तन्हा को पिछले साल उत्तरपूर्व दिल्ली में हुई सांप्रदायिक हिंसा से संबंधित मामले में 15 जून को जमानत देने के उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दिल्ली पुलिस की याचिका पर सुनवाई कर रही थी.

सुनवाई की शुरुआत में छात्रों की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा, उन्हें कुछ वक्त चाहिए क्योंकि आरोप-पत्र 20,000 पन्नों का है.

उन्होंने कहा, हमारे पास 20,000 पन्नों का प्रिंट लेने का साधन नहीं है. हमें इसे पेन ड्राइव में दाखिल करने की अनुमति दें.

पीठ ने पेन ड्राइव को रिकॉर्ड में दाखिल करने के सिब्बल के अनुरोध को स्वीकार कर लिया है.

(भाषा)

Last Updated : Jul 22, 2021, 5:30 PM IST

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