नई दिल्ली :उत्तरपूर्व दिल्ली दंगों के मामले (northeast delhi riots case) में तीन छात्र कार्यकर्ताओं की जमानत रद्द (bail of three student activists canceled) करने के मुद्दे पर विचार करने की अनिच्छा जाहिर करते हुए, उच्चतम न्यायालय (Supreme court) ने बृहस्पतिवार को कहा कि जमानत याचिकाओं पर कानून के प्रावधानों को लेकर की जा रही लंबी बहस परेशान करने वाली है.
न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की पीठ तीन छात्रों को जमानत देने के दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ दिल्ली पुलिस की अपील पर सुनवाई कर रही थी. पीठ ने पूछा कि पुलिस को जमानत मिलने से दुख है या फैसलों में की गई टिप्पणियों या व्याख्या से.
दिल्ली पुलिस की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वे दोनों बातों से व्यथित हैं और वे इन पहलुओं पर शीर्ष अदालत को संतुष्ठ करने की कोशिश करेंगे.
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पीठ ने मेहता से कहा, बहुत कम संभावना है, लेकिन आप कोशिश कर सकते हैं. इसने इशारा किया कि वह तीनों आरोपियों की जमानत रद्द करने के पहलू पर विचार करने को तैयार नहीं हैं, जिन्हें सख्त आतंकवाद रोधी कानून-गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) कानून (UAPA) के तहत आरोपी बनाया गया है.
शीर्ष अदालत ने कहा कि जमानत के मामलों पर बहुत लंबी बहस की जा रही है, यह जानते हुए भी कि आजकल वक्त सीमित है और इसने इन अपीलों पर कुछ घंटों से ज्यादा सुनवाई नहीं करने का प्रस्ताव दिया.
पीठ ने कहा, यह कुछ ऐसा है जो हमें कई बार परेशान करता है. जमानत के हर मामले पर निचली अदालत, उच्च न्यायालयों और इस अदालत में लंबी बहस होती है. साथ ही कहा, जमानत के मामलों में कानून के प्रावधानों पर बहस नहीं की जानी चाहिए.