दिल्ली

delhi

ETV Bharat / bharat

Supreme Court On Identical Evidence: समान साक्ष्य होने पर दो आरोपियों में भेदभाव नहीं कर सकती अदालत- सुप्रीम कोर्ट - संवैधानिक न्यायालय

सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए गुरुवार को कहा कि दो आरोपियों के खिलाफ एक समान सबूत होने की स्थिति में अदालत एक आरोपी को दोषी और एक आरोपी को बरी नहीं कर सकती है.

Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 14, 2023, 6:05 PM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि एक संवैधानिक न्यायालय के रूप में इसे संविधान के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों को बनाए रखने का कर्तव्य सौंपा गया है. कोर्ट ने कहा कि जब दो आरोपियों के खिलाफ चश्मदीदों के समान सबूत हों और उन्हें समान भूमिका दी जाए, तो अदालत एक आरोपी को दोषी ठहराकर दूसरे को बरी नहीं कर सकती.

शीर्ष अदालत ने हत्या के साथ डकैती और गैरकानूनी सभा का हिस्सा होने सहित आईपीसी की कई धाराओं के तहत दोषी ठहराए गए चार लोगों को बरी करते हुए ये टिप्पणी कीं. न्यायमूर्ति अभय एस ओका और संजय करोल की पीठ ने कहा कि जब दो आरोपियों के खिलाफ चश्मदीद गवाहों के समान या समान भूमिका बताकर उनके खिलाफ समान सबूत हों, तो अदालत एक आरोपी को दोषी नहीं ठहरा सकती और दूसरे को बरी नहीं कर सकती.

अदालत ने जोर देकर कहा कि ऐसे मामले में, दोनों आरोपियों के मामले समानता के सिद्धांत द्वारा शासित होंगे. न्यायमूर्ति ओका ने कहा कि इस सिद्धांत का अर्थ है कि आपराधिक अदालत को एक जैसे मामलों का फैसला करना चाहिए और ऐसे मामलों में, अदालत दो आरोपियों के बीच अंतर नहीं कर सकती है, जो भेदभाव होगा. बता दें कि उन्होंने पीठ की ओर से निर्णय लिखा और 13 सितंबर को फैसला सुनाया.

आरोपी संख्या 6 जावेद शौकत अली कुरैशी ने गुजरात उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत में अपील दायर की थी. शुरुआत में, कुल 13 आरोपियों पर मुकदमा चलाया गया और सात आरोपियों को निचली अदालत ने दोषी ठहराया. आईपीसी की धारा 396 सहपठित 149 के तहत दंडनीय अपराध के लिए अधिकतम सजा आजीवन कारावास थी. उच्च न्यायालय ने उनकी दोषसिद्धि की पुष्टि की लेकिन सजा को घटाकर 10 साल कर दिया था.

ABOUT THE AUTHOR

...view details