हैदराबाद : कुछ दिनों पहले सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (Centre for Monitoring Indian Economy) बेरोजगारी दर के कम होने से संबंधित आंकड़े जारी किए थे. जिसके मुताबिक मार्च में बेरोजगारी दर 7.6% पर आ गई थी. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के मासिक आंकड़ों के मुताबिक, देश में बेरोजगारी की दर फरवरी में 8.10% थी, जो मार्च में घटकर 7.60% रह गई. CMIE के आंकड़ों के मुताबिक मार्च 2022 में शहरी बेरोजगारी की दर 8.50% और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए यह 7.10% रही. अब इसी सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी ने नए आंकड़े जारी करते हुए बताया है कि देश में 45 करोड़ लोगों ने नौकरी की तलाश ही छोड़ दी है और योग्यता के बावजूद सिर्फ 9% महिलाओं के पास है काम रह गया.
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (Centre for Monitoring Indian Economy) के डेटा से पता चलता है कि भारत की श्रम शक्ति भागीदारी दर (एलएफपीआर) 2016 के मुकाबले 47% से घटकर सिर्फ 40% रह गई है. CMIE के आंकड़ों में कहा गया है कि लीगल वर्किंग उम्र के 90 करोड़ भारतीयों में से आधे से अधिक ने नौकरी की तलाश ही छोड़ दी है. 2017 और 2022 के बीच, समग्र श्रम भागीदारी दर 47% से गिरकर 40% रह गई. सीएमआईई के आंकड़ों के मुताबिक लगभग 2.1 करोड़ श्रमिकों ने काम छोड़ा और केवल 9% योग्य आबादी को रोजगार मिला. CMIE के मुताबिक, भारत में अभी 90 करोड़ लोग रोजगार के योग्य हैं और इनमें से 45 करोड़ से ज्यादा लोगों ने अब काम की तलाश भी छोड़ दी है.
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श्रम शक्ति भागीदारी दर क्या है? : श्रम शक्ति भागीदारी दर को समझने से पहले हमें श्रम शक्ति को ही परिभाषित करना होगा. सीएमआईई के अनुसार, श्रम बल में 15 वर्ष या उससे अधिक उम्र के व्यक्ति शामिल हैं. इन्हें भी दो श्रेणियों में बांटा जाता है. एक या तो जिन्हें रोजगार मिला हुआ है या दूसरे जो बेरोजगार हैं लेकिन सक्रिय रूप से नौकरी की तलाश में हैं. दो श्रेणियों के बीच एक महत्वपूर्ण समानता है - इन दोनों में लोग "नौकरी की मांग" कर रहे हैं. यह मांग एलएफपीआर को संदर्भित करती है. जबकि पहली श्रेणी के लोग नौकरी पाने में सफल होते हैं, वहीं श्रेणी दो के लोग ऐसा करने में असफल होते हैं. इस प्रकार, एलएफपीआर अनिवार्य रूप से काम करने की उम्र (15 वर्ष या अधिक) की आबादी का वह प्रतिशत है जो नौकरी मांग रहा है. इसमें वे लोग शामिल हैं जो कार्यरत हैं और वो भी बेरोजगार हैं. जबकि बेरोजगारी दर (यूईआर), सिर्फ उन लोगों का आकलन करती है जो दूसरी श्रेणी में आते हैं. यानी जो बेरोजगार हैं और सक्रिय रूप से नौकरी की तलाश में हैं.
क्या है श्रम शक्ति भागीदारी दर (एलएफपीआर) का गिरना : इसे आसान भाषा में समझना हो तो ऐसे समझा जा सकता है कि मान लेते हैं किसी अर्थव्यवस्था में 15 वर्ष या उससे अधिक उम्र के 100 लोग हैं. यानी यह वह संख्या है अर्थव्यवस्था में कुल उपल्ब्ध श्रम बल है. इनमें से 50 के पास रोजगार है. 50 के पास नहीं है. लेकिन 50 बेरोजगारों में से सिर्फ 30 ही सक्रिय रूप से रोजगार की तलाश कर रहे हैं. तो हम कहेंगे कि अर्थव्यवस्था में बेरोजगारी दर 30 प्रतिशत है. जबकि श्रम शक्ति भागीदारी दर (एलएफपीआर) 80 प्रतिशत मानी जाएगी. वहीं एलएफपीआर में गिरावट का मतलब होगा कि सक्रिय रूप से रोजगार की तलाश कर रहे 30 लोगों में 10 ने काम की तलाश छोड़ दी. इससे बेरोजगारी दर तो 20 प्रतिशत हो जाएगी. क्योंकि 20 ही सक्रिय रूप से रोजगार की तलाश कर रहे हैं. लेकिन श्रम शक्ति भागीदारी दर (एलएफपीआर) 70 प्रतिशत हो जाएगी.