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देश में नौकरी की तलाश छोड़ने वालों की संख्या बढ़ी : CMIE - घटती बेरोजगारी दर

क्या घटती बेरोजगारी दर का मतलब रोजगार का बढ़ना है? अर्थव्यवस्था के बारे में वह क्या है जो बेरोजगारी दर के आंकड़ों से स्पष्ट नहीं होता. क्या है भारत की श्रम शक्ति और श्रम शक्ति भागीदारी दर के आंकड़ें क्या बता रहे हैं अर्थव्यवस्था के बारे में. 45 करोड़ लोगों की नौकरी की तलाश छोड़ देने का क्या अर्थ है और देश की अर्थव्यवस्था पर इसका क्या असर होगा. पढ़ें इस रिपोर्ट में...

cmie report
देश की श्रम शक्ति भागीदारी दर में आई गिरावट, आंकड़े बता रहे स्थिति गंभीर

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Published : Apr 28, 2022, 10:00 AM IST

हैदराबाद : कुछ दिनों पहले सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (Centre for Monitoring Indian Economy) बेरोजगारी दर के कम होने से संबंधित आंकड़े जारी किए थे. जिसके मुताबिक मार्च में बेरोजगारी दर 7.6% पर आ गई थी. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के मासिक आंकड़ों के मुताबिक, देश में बेरोजगारी की दर फरवरी में 8.10% थी, जो मार्च में घटकर 7.60% रह गई. CMIE के आंकड़ों के मुताबिक मार्च 2022 में शहरी बेरोजगारी की दर 8.50% और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए यह 7.10% रही. अब इसी सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी ने नए आंकड़े जारी करते हुए बताया है कि देश में 45 करोड़ लोगों ने नौकरी की तलाश ही छोड़ दी है और योग्यता के बावजूद सिर्फ 9% महिलाओं के पास है काम रह गया.

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (Centre for Monitoring Indian Economy) के डेटा से पता चलता है कि भारत की श्रम शक्ति भागीदारी दर (एलएफपीआर) 2016 के मुकाबले 47% से घटकर सिर्फ 40% रह गई है. CMIE के आंकड़ों में कहा गया है कि लीगल वर्किंग उम्र के 90 करोड़ भारतीयों में से आधे से अधिक ने नौकरी की तलाश ही छोड़ दी है. 2017 और 2022 के बीच, समग्र श्रम भागीदारी दर 47% से गिरकर 40% रह गई. सीएमआईई के आंकड़ों के मुताबिक लगभग 2.1 करोड़ श्रमिकों ने काम छोड़ा और केवल 9% योग्य आबादी को रोजगार मिला. CMIE के मुताबिक, भारत में अभी 90 करोड़ लोग रोजगार के योग्य हैं और इनमें से 45 करोड़ से ज्यादा लोगों ने अब काम की तलाश भी छोड़ दी है.

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श्रम शक्ति भागीदारी दर क्या है? : श्रम शक्ति भागीदारी दर को समझने से पहले हमें श्रम शक्ति को ही परिभाषित करना होगा. सीएमआईई के अनुसार, श्रम बल में 15 वर्ष या उससे अधिक उम्र के व्यक्ति शामिल हैं. इन्हें भी दो श्रेणियों में बांटा जाता है. एक या तो जिन्हें रोजगार मिला हुआ है या दूसरे जो बेरोजगार हैं लेकिन सक्रिय रूप से नौकरी की तलाश में हैं. दो श्रेणियों के बीच एक महत्वपूर्ण समानता है - इन दोनों में लोग "नौकरी की मांग" कर रहे हैं. यह मांग एलएफपीआर को संदर्भित करती है. जबकि पहली श्रेणी के लोग नौकरी पाने में सफल होते हैं, वहीं श्रेणी दो के लोग ऐसा करने में असफल होते हैं. इस प्रकार, एलएफपीआर अनिवार्य रूप से काम करने की उम्र (15 वर्ष या अधिक) की आबादी का वह प्रतिशत है जो नौकरी मांग रहा है. इसमें वे लोग शामिल हैं जो कार्यरत हैं और वो भी बेरोजगार हैं. जबकि बेरोजगारी दर (यूईआर), सिर्फ उन लोगों का आकलन करती है जो दूसरी श्रेणी में आते हैं. यानी जो बेरोजगार हैं और सक्रिय रूप से नौकरी की तलाश में हैं.

क्या है श्रम शक्ति भागीदारी दर (एलएफपीआर) का गिरना : इसे आसान भाषा में समझना हो तो ऐसे समझा जा सकता है कि मान लेते हैं किसी अर्थव्यवस्था में 15 वर्ष या उससे अधिक उम्र के 100 लोग हैं. यानी यह वह संख्या है अर्थव्यवस्था में कुल उपल्ब्ध श्रम बल है. इनमें से 50 के पास रोजगार है. 50 के पास नहीं है. लेकिन 50 बेरोजगारों में से सिर्फ 30 ही सक्रिय रूप से रोजगार की तलाश कर रहे हैं. तो हम कहेंगे कि अर्थव्यवस्था में बेरोजगारी दर 30 प्रतिशत है. जबकि श्रम शक्ति भागीदारी दर (एलएफपीआर) 80 प्रतिशत मानी जाएगी. वहीं एलएफपीआर में गिरावट का मतलब होगा कि सक्रिय रूप से रोजगार की तलाश कर रहे 30 लोगों में 10 ने काम की तलाश छोड़ दी. इससे बेरोजगारी दर तो 20 प्रतिशत हो जाएगी. क्योंकि 20 ही सक्रिय रूप से रोजगार की तलाश कर रहे हैं. लेकिन श्रम शक्ति भागीदारी दर (एलएफपीआर) 70 प्रतिशत हो जाएगी.

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भारत में LFPR का क्या महत्व है? :आमतौर पर, यह उम्मीद की जाती है कि LFPR काफी हद तक स्थिर रहेगा. इसलिए किसी भी अर्थव्यवस्था में बेरोजगारी का कोई भी विश्लेषण केवल बेरोजगारी दर को ध्यान में रख कर किया जाता है. लेकिन भारत में, एलएफपीआर न केवल दुनिया के बाकी हिस्सों की तुलना में कम है, बल्कि गिर भी रहा है. दुनिया भर में, LFPR लगभग 60% है. भारत में, यह पिछले 10 वर्षों में फिसल रहा है. 2016 में 47% से घटकर दिसंबर 2021 तक केवल 40% रह गया है. जिसका अर्थ यह है कि सिर्फ बेरोजगारी दर अर्थव्यवस्था की असली तस्वीर पेश नहीं करती है.

अर्थव्यवस्था की सही तस्वीर कहां दिखेगी :यदि हम बेरोजगारी दर के बजाय रोजगार के को देखेंगे तो हमें सही तस्वीर नजर आएगी. हमें यह देखना होगा कि कुल श्रम बल के मुकाबले रोजगार पाने वालों की संख्या में कितनी बढ़ोतरी हुई है. भारत की कामकाजी उम्र की आबादी हर साल बढ़ रही है, नौकरियों वाले लोगों का प्रतिशत तेजी से नीचे आ रहा है. दिसंबर 2021 में, भारत में कामकाजी आयु वर्ग के 107.9 करोड़ लोग थे और इनमें से केवल 40.4 करोड़ लोगों के पास नौकरी थी. यानी तब रोजगार का प्रतिशत था- 37.4 प्रतिशत. इसकी तुलना दिसंबर 2016 से करें तो भारत में कामकाजी आयु वर्ग में 95.9 करोड़ लोग थे और इनमें 41.2 करोड़ के पास रोजगार था. तब 43% लोगों के पास रोजगार था. यानी 2016 से 2021 के बीच पांच साल में जहां कुल कामकाजी उम्र की आबादी 12 करोड़ बढ़ी है, वहीं नौकरी पाने वाले लोगों की संख्या में 80 लाख की कमी आई है.

श्रम शक्ति भागीदारी दर में गिरावट के कारण क्या हैं :भारत के श्रम शक्ति भागीदारी दर के कम होने का मुख्य कारण महिला श्रम शक्ति भागीदारी दर का बेहद निम्न स्तर है. सीएमआईई के आंकड़ों के अनुसार, दिसंबर 2021 तक, जबकि पुरुष एलएफपीआर 67.4% था, वहीं महिला एलएफपीआर 9.4% थी. दूसरे शब्दों में, भारत में कामकाजी उम्र की 10 महिलाओं में से एक से भी कम काम की मांग कर रही है. कोई विश्व बैंक आंकड़ों के मुताबिक भारत की महिला श्रम शक्ति भागीदारी दर लगभग 25% है, जबकि वैश्विक औसत 47% है.

योग्यता के बावजूद सिर्फ 9% महिलाओं के पास है काम : CMIE के महेश व्यास ने कहा कि महिलाएं श्रम बल में इतनी संख्या में शामिल नहीं होती हैं क्योंकि नौकरियां अक्सर उनके लिए सुटेबल नहीं होती हैं. उदाहरण के लिए, पुरुष काम के लिए पहुंचने के लिए ट्रेन बदलने को तैयार हैं. महिलाओं के ऐसा करने के लिए तैयार होने की संभावना कम है. यह बहुत बड़े पैमाने पर हो रहा है. महेश व्यास ने कहा कि कई प्रोफेशन ऐसे हैं, जिनमें महिलाओं की हिस्सेदारी नाममात्र की है. यही कारण है कि योग्यता के बावजूद सिर्फ 9% महिलाओं के पास काम है या वे काम की तलाश जारी रखे हुए हैं.

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