नई दिल्ली : भारत इस सप्ताह के अंत में नई दिल्ली में G20 शिखर सम्मेलन की मेजबानी करने के लिए तैयार है. वहीं, जी20 से पहले राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा भेजे गए आधिकारिक निमंत्रण पत्र की वजह से नई बहस छिड़ गई है. दरअसल, इस निमंत्रण पत्र में प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया के बजाय प्रेसिडेंट ऑफ भारत लिखा हुआ था, जिसकी वजह से ये कयास लगाए जा रहे हैं कि देश का नाम अब बदलकर इंडिया नहीं बल्कि केवल भारत कहलाएगा. लेकिन मीडिया सूत्रों के मुताबिक, देश का नाम बदलने से पहले इसमें होने वाले खर्च पर भी ध्यान देना जरूरी है.
नाम बदलने का चलन पुराना : भारत में नाम बदलने का चलन पहले से चला आ रहा है, फिर चाहे शहर हो या राज्य. उदाहरण स्वरूप, उत्तरांचल का नाम बदलकर उत्तराखंड, उड़िसा का नाम बदलकर ओडिशा, मुंबई का नाम बदलकर बंबई, कलकत्ता का नाम बदलकर कोलकाता आदि जैसे राज्य और शहर हैं. लेकिन इन नाम बदलने के पीछे लाखों-करोड़ों रुपये खर्च भी होते हैं. ऐसे में अगर देश का नाम बदला गया, तो सरकार को बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है.
इंडिया का नाम बदलने की कीमत : भारत अपने आधिकारिक नाम में बदलाव पर विचार करने वाला पहला देश नहीं है. मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो, श्रीलंका का नाम 1972 में ही बदल दिया गया था, लेकिन इस द्वीप राष्ट्र को अपने पुराने नाम 'सीलोन' को सभी सरकारी उपयोग से हटाने में लगभग चार दशक लग गए थे. साल 2018 में, स्वाज़ीलैंड के राजा ने औपनिवेशिक अर्थों से छुटकारा पाने के लिए देश का नाम बदलकर एस्वातिनी कर दिया था. उस समय, दक्षिण अफ्रीका में स्थित एक बौद्धिक संपदा वकील किसी देश का नाम बदलने की लागत की गणना के लिए एक फॉर्मुला लेकर सामने आए थे. ओलिवियर ने अनुमान लगाया था कि स्वाज़ीलैंड का नाम बदलकर इस्वातिनी करने की लागत 60 मिलियन डॉलर खर्च होगा. अब इसी फॉमुर्ले पर भारत के नाम बदलने की लागत क अनुमान लगाया जा रहा है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, यदि देश का नाम बदला गया, तो इस प्रक्रिया में लगभग 14 हजार 304 करोड़ रुपये का खर्च आएगा.
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