शिमला: हिमाचल की आर्थिकी के बड़े सहारे सेब कारोबार पर दोहरी मार पड़ी है. देश का एप्पल बाउल कहलाने वाले स्टेट हिमाचल में सेब का सालाना कारोबार 3500 करोड़ रुपए का है. इस बार मौसम की बेरुखी और कोरोना के चलते सेब उत्पादन को झटका लगने की आशंका है. यदि देश और प्रदेश में कमोबेश ऐसा ही हाल रहा तो सेब कारोबार के लिए लेबर, पैकिंग मैटेरियल और ट्रांसपोर्टेशन की दिक्कतें आने वाली हैं.
बता दें कि हिमाचल प्रदेश में चार लाख बागवान परिवार हैं. राज्य में सालाना 2 से 3 करोड़ पेटी सेब का उत्पादन होता है. यदि मौसम अनुकूल रहे तो ये उत्पादन तीन करोड़ पेटी से भी अधिक हो जाता है, लेकिन कोरोना संकट और इस बार मौसम के बिगड़े तेवरों से बागवानों में हताशा है.
मौसम ने बागवानों को किया परेशान
सेब आर्थिकी पर पहले संकट की बात करें तो मौसम ने इस बार बागवानों को परेशान कर दिया है. अप्रैल महीने में ऊंचाई वाले इलाकों में बर्फ गिरने से उत्पादन के लिए परिस्थितियां बिगड़ी हैं. इसी तरह सर्दी के मौसम में जब सेब को चिलिंग आवर्स पूरे करने के लिए बर्फबारी और कड़ाके की ठंड चाहिए थी, तब भी मौसम ने साथ नहीं दिया. असमय बारिश और ओलावृष्टि से सेब के पौधों को नुकसान हुआ है.
बारिश और ओलावृष्टि ने सेब के पौधों को पहुंचाया नुकसान
हाल ही के कुछ दिनों में ऊपरी शिमला सहित मंडी, कुल्लू, चंबा व सिरमौर के सेब उत्पादक इलाकों में बारिश तथा ओलावृष्टि से सेब की सेटिंग व पौधों को काफी नुकसान हुआ है. यही नहीं, सेब के लिए खतरनाक समझे जाने वाला स्कैब रोग भी बागीचों को अपनी चपेट में ले सकता है. वातावरण में यदि नमी अधिक हो जाए तो स्कैब पनपता है. इस तरह मौसम और स्कैब मिलकर एक खतरनाक गठजोड़ बना सकते हैं.
नेपाल से आने वाले श्रमिकों पर निर्भर रहते हैं बागवान
वहीं, कोरोना संक्रमण का असर आवागमन पर भी पड़ा है. हिमाचल में सेब सीजन जुलाई से शुरू हो जाता है. यदि कोरोना संक्रमण कम न हुआ तो बाहर से आने वाली लेबर नहीं पहुंच पाएगी. हिमाचल में अधिकांश लेबर पड़ोसी राज्य नेपाल से आती है. प्रदेश में सबसे अधिक सेब का उत्पादन शिमला जिले में होता है. जिले के बागवान नेपाल से आने वाले श्रमिकों पर निर्भर हैं. यदि कोरोना से आवागमन सुगम न हुआ तो लेबर का संकट पैदा होगा. साथ ही सेब को मार्केट में पहुंचाने में भी दिक्कत आएगी.
पैकिंग मैटेरियल हुआ महंगा
एक संकट तो अभी से आ गया है. ये संकट महंगे पैकिंग मैटेरियल के तौर पर है. शिमला जिले के चौपाल के दशोली गांव के प्रगतिशील बागवान पंकज डोगरा का कहना है कि पैकिंग मैटेरियल पहले से अधिक महंगा हुआ है. साथ ही फर्टिलाइजर भी महंगे मिल रहे हैं. पंकज डोगरा का कहना है कि एक तो मौसम की मार ऊपर से कोरोना संकट, इस कारण सेब कारोबार का प्रभावित होना लाजिमी है. ओलावृष्टि के कारण हेलनेट का भी नुकसान हुआ है.
हिमाचल में पेड़ों पर उगते हैं पैसे
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने एक संदर्भ में कहा था कि पैसे पेड़ों पर नहीं उगते, लेकिन हिमाचल में सचमुच पेड़ों पर पैसे लगते हैं. ये पैसे लाल-लाल सेब के तौर पर हैं. हिमाचल ने सेब उत्पादन में काफी नाम कमाया है. यहां का रसीला सेब न केवल लोगों की सेहत सुधारता है, बल्कि प्रदेश की आर्थिक सेहत का भी ख्याल रखता है. हिमाचल में परंपरागत सेब किस्म रॉयल के अलावा विदेशी किस्मों को भी उगाया जाता है. सेब उत्पादन के कारण ही हिमाचल के दो गांव एशिया के सबसे अमीर गांवों में शुमार हो चुके हैं.
पूर्व में शिमला जिला का क्यारी गांव लंबे समय तक रिचेस्ट विलेज ऑफ एशिया रहा है. बाद में शिमला का ही मड़ावग गांव सबसे अमीर गांव रहा. यहां बागवानों के पास रेंज रोवर गाड़िया भी हैं. सेब से ही समृद्धि आई है, लेकिन कोरोना संकट के इस दौर में महामारी की नजर सेब उत्पादन को भी लगी है. हिमाचल के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर सहित कई कैबिनेट मंत्रियों और आला अफसरों के सेब के बागीचे हैं.
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पिछले साल भी पड़ी थी मौसम और कोरोना की मार
पिछले सेब सीजन में हिमाचल प्रदेश में कुल 2 करोड़, सत्तर लाख पेटी सेब पैदा हुआ था. वहीं, वर्ष 2019 का सेब सीजन 3.75 करोड़ पेटी का था. पिछले सीजन यानी 2020 में हिमाचल प्रदेश की शिमला-किन्नौर, मंडी उपज समिति से देश की मंडियों में एक करोड़, 85 लाख 29 हजार 491 पेटियां मार्केट में भेजी गईं. इसी तरह सोलन मंडी समिति से 17 लाख 92 हजार 703, कुल्लू-लाहौल स्पीति मंडी समिति से 19 लाख 65 हजार 034, ऊना मंडी समिति से 75, बिलासपुर मंडी समिति से 49 लाख 68 हजार 264 और चंबा मंडी समिति से 91,475 सेब की पेटियां बाजार में पहुंची थीं. इस बार भी सेब उत्पादन का आंकड़ा पिछले साल के आसपास ही रहने के आसार हैं.