नई दिल्ली : कोलकाता के संक्रामक रोग और बेलागाठा जनरल अस्पताल द्वारा किए गए अध्ययन में यह बात सामने आई है कि प्लाज्मा उपचार से अस्पताल में भर्ती होने के मामलों में कमी आई है. वहीं 67 वर्ष से कम उम्र के कोरोना संक्रमितों में जीवित रहने के घटकों में बढ़ोतरी और स्वास्थ्य में सुधार हुआ है.
बता दें, यह अध्य्यन विश्व स्वास्थ्य संगठन की उस स्टडी के एक सप्ताह बाद आया है, जिसमें बताया गया था कि कोविड-19 से होने वाली मौतों की दर को कम करने में कॉन्वलसेंट प्लाज्मा थेरेपी (सीपी) उपचार प्रभावी नहीं है.
अध्ययन में पाया गया है कि गंभीर श्वसन संकट सिंड्रोम (एआरडीएस) से पीड़ित कोरोना मरीज जिनकी आयु 67 वर्ष से कम है और वे प्लाज्मा थेरेपी ले रहे हैं, उनमें हाइपोक्सिया के मामलों में तुरंत कमी और अस्पताल में कमी के साथ-साथ जीवित रहने की संभावनाओं में बढ़ोतरी देखी गई है. इसके अलावा यह एंटीबॉडी तत्वों को बेअसर करती है.