कोलकाता : बांग्लादेश के राष्ट्रकवि काजी नजरूल इस्लाम की एक कविता को लेकर विवाद हो गया है. उनके परिवार ने पूरे मुद्दे पर नाराजगी जताई है. यह विवाद एक हिंदी फिल्म से जुड़ा है.
दरअसल, काजी नजरूल इस्लाम की एक रचना की कुछ पंक्तियां हिंदी फिल्म में इस्तेमाल की गई हैं. इसका संगीत मशूहर संगीतकार एआर रहमान ने दिया है. उनकी रचना है - कारार ओई लौह कपाट .... इस पंक्ति को फिल्म 'पिप्पा' में इस्तेमाल किया गया है. इस फिल्म का कथानक बांग्लादेश मुक्ति संग्राम से संबंधित है. फिल्मकार के मुताबिक यह सच्ची घटना पर आधारित फिल्म है.
काजी नजरूल इस्लाम के परिवार ने कहा है कि आखिर वह समझौता क्या है, जिसके आधार पर उनकी रचना को हिंदी फिल्म में प्रयोग करने की अनुमति दी गई है, वह उसे देखना चाहते हैं. उनकी आपत्ति यह है कि संगीतकार ने इस पंक्ति के लिए जो धुन बनाई है, उससे गलत संदेश जा रहा है, इसलिए उसे फिल्म से हटाया जाए. उनके अनुसार कवि के कहने का जो तात्पर्य था, वह इस संगीत से उद्धृत नहीं हो रहा है, बल्कि उनकी छवि को नुकसान पहुंचेगा.
मीडिया रिपोर्ट में बताया गया है कि कवि की रचना में किस शब्द का प्रयोग हुआ है, इस पर भी विवाद है. जैसे - कपाट. कुछ लोग मानते हैं कि कवि ने 'कपाट' की जगह 'कबाट' लिखा था. हालांकि, इसे पुष्ट करने के लिए कोई भी हस्तलिखित प्रमाण उपलब्ध नहीं है. रिपोर्ट के मुताबिक क्योंकि यह पंक्ति लोगों की यादों का हिस्सा है, लिहाजा कुछ लोग कपाट, तो कुछ लोग कबाट शब्द का प्रयोग करते हैं. काजी नजरूल इस्लाम ने इस रचना को 1922 में लिखा था. यह ब्रिटिश राज के खिलाफ लिखा गया था.