नैनीताल : सरोवरी नगरी के पर्यटक स्थलों समेत आसपास के क्षेत्रों में अक्सर भूस्खलन हो रहा है. इससे नैनीताल के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है. वहीं, यहां आने वाले पर्यटक भी अब डर के साए में घूमने को मजबूर हैं. भूस्खलन की घटना से अब पर्यटन कारोबार पर भी असर पड़ने लगा है.
अस्तित्व पर खतरा
सरोवर नगरी नैनीताल के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है. क्योंकि नैनीताल के विभिन्न क्षेत्रों बलिया नाला, नैनी झील, माल रोड, राजभवन रोड, ठंडी सड़क समेत आसपास के क्षेत्रों में लगातार भूस्खलन हो रहा है. अगर इसी तरह भूस्खलन होते रहे और सरकार ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया तो जल्द ही नैनीताल के अस्तित्व पर खतरे के बादल मंडरा सकते हैं.
नैनीताल शहर की भार सहने की क्षमता खत्म अब भार नहीं सह सकता ये शहर
जाने-माने पर्यावरणविद् अजय रावत का कहना है जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में नैनीताल शहर की भार सहने की क्षमता खत्म हो चुकी है. जिसके चलते लगातार नैनीताल में भूस्खलन हो रहे हैं. 1993 उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर इस गंभीर समस्या के निदान व नैनीताल में निर्माण कार्यों पर रोक लगाने की मांग की थी. जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करते हुए नैनीताल में व्यावसायिक निर्माण पर रोक लगाने के आदेश दिए थे.
अवैध निर्माण नहीं रुक रहे
कोर्ट के आदेश के बावजूद भी नैनीताल में अवैध निर्माण तेजी से हो रहे हैं. जिसके चलते नैनीताल के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है. लिहाजा नैनीताल में हो रहे निर्माण कार्यों पर तत्काल रोक लगाई जानी चाहिए. जिससे नैनीताल को बचाया जा सके. यहां आने वाले पर्यटक भी नैनीताल समेत आसपास के क्षेत्रों में हो रहे भूस्खलन की घटनाओं से डरे हुए हैं. पर्यटकों का कहना है कि लगातार पहाड़ियों से मलबा गिर रहा है, जिससे पर्यटकों और स्थानीय लोगों को खतरा है.
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ड्रेनेज सिस्टम को तवज्जो नहीं
पर्यावरणविद् अजय रावत का मानना है कि इस तरह के भूस्खलन से नैनीताल के अस्तित्व को खतरा है. जितने भी नए निर्माण नैनीताल में हुए हैं उनमें ड्रेनेज सिस्टम को तवज्जो नहीं दी गई. वहीं, इस बीच नैतीताल में भी बड़े पैमाने में अवैध निर्माण हुआ है. वहीं, बिट्रिशकाल में 80 के दशक में हुए भूस्खलन की चपेट में आकर 151 लोगों की मौत हुई थी. जिसके बाद बिट्रिश लोगों ने ड्रेनेज सिस्टम बनाया. जो उस समय की आबादी के हिसाब से सहा था. उस समय नैनीताल में जनसंख्या ना के बराबर थी. इस वजह से कोई जनहानि नहीं हुई.
रावत बताते हैं कि 1880 में एक और बड़ा भूस्खलन हुआ. इसमें भारतीयों समेत 151 ब्रिटिश नागरिकों की मौत हुई थी. जिसके बाद ब्रिटिश नागरिकों द्वारा नैनीताल की सुरक्षा के लिए हिल साइड सेफ्टी कमेटी का गठन किया गया, जिसमें नैनीताल के सुरक्षा को लेकर नियम बनाए गए. साथ ही ड्रेनेज सिस्टम को मजबूत बनाया गया. वैसे 1867 में नैनीताल में पहला भूस्खलन हुआ था लेकिन इसमें कोई जनहानि नहीं हुई.
62 नालों ने बचाया है अस्तित्व
नैनीताल में जल निकासी की व्यवस्था बनाने के लिए 1889 में पहली दफा नैनीताल की सुरक्षा के लिए 62 नालों का निर्माण किया गया. बरसात के दौरान पहाड़ी से पानी इन्हीं नालों द्वारा नैनी झील तक जाता है. इनकी लंबाई करीब 79 किलोमीटर है. इन्हीं नालों के निर्माण के चलते आज नैनीताल का अस्तित्व कायम है. अजय रावत बताते हैं बीते 20 सालों में नैनीताल समेत आसपास के क्षेत्रों में नालों के आस पास व उसके ऊपर अवैध निर्माण की बाढ़ आ चुकी है. इस वजह से आज नैनीताल की पहाड़ियों में अत्यधिक दबाव पड़ने लगा है.
नैनीताल में ड्रेनेज के पानी की निकासी हेतु कोई बेहतर व्यवस्था नहीं है. इस वजह से बरसात समेत घरों से निकलने वाला पानी पहाड़ियों व सड़कों पर छोड़ दिया जाता है, जो रिस कर भूमिगत हो जाता है. इस वजह से पहाड़ियों पर भूस्खलन की समस्या देखने को मिल रही है. लिहाजा सरकार व प्रशासन को इस तरफ ध्यान देने की जरूरत है.
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नैनीताल में तेजी से हो रहे भूस्खलन पर जिलाधिकारी धीराज गर्ब्याल का कहना है कि भूस्खलन की समस्या पहाड़ों पर गंभीर है. जिसके चलते उन्होंने लोक निर्माण विभाग समेत भूगर्भ शास्त्रियों को नैनीताल व आसपास के क्षेत्र में हो रहे भूस्खलन वाले क्षेत्रों का अध्ययन कर रिपोर्ट मांगी है. ताकि समस्या के बारे में पता चल सके और समस्या का स्थायी उपचार किया जा सके.