नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने बुधवार को केंद्र से यह अध्ययन करने को कहा कि दिव्यांग जनों को सिविल सेवाओं (Civil Services) में विभिन्न श्रेणियों के तहत कैसे रखा जा सकता है. न्यायमूर्ति एस.ए. नजीर (Justice S.A. Nazeer) और न्यायमूर्ति वी. रामसुब्रमण्यम (Justice V. Ramasubramaniam) की पीठ ने कहा कि दिव्यांगता के लिए सहानुभूति एक पहलू है, लेकिन फैसले की व्यावहारिकता को भी संज्ञान में लेना होगा. शीर्ष अदालत ने एक घटना साझा की, जिसमें चेन्नई में शत प्रतिशत दृष्टिहीनता वाले एक व्यक्ति को दीवानी न्यायाधीश कनिष्ठ संभाग नियुक्त किया गया था.
इसके साथ ही अदालत के अनुवादकों ने उनके द्वारा हस्ताक्षरित सभी आदेश प्राप्त कर लिए और बाद में एक तमिल पत्रिकार के संपादक के रूप में पोस्ट कर दिये. पीठ ने कहा कि 'कृपया आप अध्ययन कीजिए. वे सभी श्रेणियों में सही नहीं बैठते. सहानुभूति एक पहलू है, लेकिन व्यावहारिकता भी एक अन्य पहलू है.' शुरुआत में अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमानी ने केंद्र की ओर से दलील दी कि सरकार मामले में विचार कर रही है. उन्होंने समय भी मांगा.