देहरादून (उत्तराखंड): उत्तरकाशी सिलक्यारा टनल से सभी 41 मजदूरों को सफल रेस्क्य कर लिया गया है. इस रेस्क्यू ऑपरेशन में विज्ञान के साथ-साथ आस्था का सहारा भी लिया गया. इसमें यहां मंगाई जा रही मशीनों के बाद चाहे उनकी पूजा हो या फिर टनलिंग एक्सपर्ट अर्नोल्ड डिक्स का ऑपरेशन में जाने से पहले हर रोज बाबा बौखनाग देवता के आगे सिर झुकाना, या बात यहां हर दिन की जाने वाली पूजा की हो, सभी का इस रेस्क्यू ऑपरेशन में अपना अलग महत्व है. उत्तराखंड में ऐसी अचानक आई आपदा में आस्था का ये कोई पहला मामला नहीं है, इससे पहले भी कई ऐसे प्रत्यक्ष उदाहरण हैं, जब आस्था ने विज्ञान को राह दिखाई. आइए, उत्तराखंड की ऐसी ही तमाम घटनाओं पर नजर डालते हैं.
सिलक्यारा टनल से बाबा बौखनाग का क्या है कनेक्शन:देवभूमि उत्तराखंड सनातन धर्म का केंद्र बिंदु है. यही कारण है कि उत्तराखंड में स्थानीय देवी देवताओं की बड़ी मान्यताएं हैं. खासतौर से पहाड़ी जनपदों में भूमियाल देवता जो किसी क्षेत्र विशेष के स्थानीय देवता होते हैं उनके बारे में प्रचलन है कि यह उस क्षेत्र में बेहद प्रभावित होते हैं. उस क्षेत्र के लोगों की इनके प्रति अगाध आस्था होती है. अगर सिलक्यारा टनल हादसे के क्षेत्र की बात करें तो यह उत्तरकाशी के रवाई क्षेत्र में पड़ता है. यहां पर आदिकाल से पूरा रंवाई क्षेत्र बाबा बौखनाग में आस्था रखता है.
सिलक्यारा गांव सहित नगल, सौंण, मजगांव, वाण, बनोटी, छमरौली जैसे तकरीबन 10 गांव हैं जिनके केंद्र में पड़ने वाले राड़ी टॉप पर बाबा बौखनाग का मंदिर है. हर दो साल में यहां पर 11 गति मंगसिर को वार्षिक अनुष्ठान होता है. राष्ट्रीय राजमार्ग और अवसंरचना विकास निगम लिमिटेड (एनएचआईडीसीएल) द्वारा चारधाम ऑल वेदर रोड प्रोजेक्ट के तहत बनाई जा रही सिलक्यारा टनल भी ठीक राडी टॉप पर मौजूद बाबा बौखनाथ मंदिर के ठीक नीचे से गुजर रही है.
टनल निर्माण की शुरुआत में दरकिनार की गई मान्यता:स्थानीय पुजारी राजेश सिलवाल बताते हैं कि ऑल वेदर रोड प्रोजेक्ट के तहत 4 साल पहले सिलक्यारा टनल का काम शुरू हुआ. जब टनल का काम शुरू हुआ तो सभी ग्रामीणों ने निर्माण एजेंसी से बाबा बौखनाग की इस धरती का सम्मान करने का अनुरोध किया. ग्रामीणों ने निर्माण एजेंसी को टनल के गेट पर एक बाबा बौखनाग का मंदिर स्थापित करने का अनुरोध किया था. स्थानीय लोगों का कहना था कि ऐसा करने से बाबा बौखनाग सबकी रक्षा करेंगे, इसके लिए उन्हें मुख्य द्वारपाल के रूप में टनल के शुरुआती छोर पर बाहर की तरफ स्थापित किया जाए लेकिन इसके बाद भी निर्माण एजेंसी ने स्थानीय लोगों की आस्था और मान्यताओं को पूरी तरह से दरकिनार किया.
सारे प्रयास विफल हुए तो याद आये बाबा बौखनाग:हालांकि, कुछ समय पहले एक प्रतीक स्वरूप छोटा सा मंदिर टनल के बाहर स्थापित किया गया था, लेकिन, स्थानीय लोगों का कहना है कि निर्माण से पहले एजेंसी ने कार्य करते हुए इस मंदिर को उखाड़ दिया गया. स्थानीय राजेश सिलवाल बताते हैं कि जब रेस्क्यू के दौरान सभी प्रयास विफल हो रहे थे तो स्थानीय लोगों और निर्माण एजेंसियों ने दोबारा से बाबा बौखनाग के मंदिर को टनल के बाहर स्थापित किया. विधि विधान से अनुष्ठान व पूजा अर्चना के साथ बाबा बौखनाग की स्तुति की गई. टनल पर आने वाले सभी अधिकारी, कर्मचारी, वैज्ञानिकों ने बाबा बौखनाग के सामने पूजा अर्चना की. यहां तक कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी बाबा बौखनाग के सामने सिर झुकाया.
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की आस्था तो यहां तक दिखी कि उनके हर पोस्ट और प्रतिक्रिया में बाबा बौखनाग के आशीर्वाद की बात कही जाती रही है. फिर 11 गति मंगसिर 27 नवंबर को बाबा बौखनाग का वार्षिक महोत्सव पर भी सभी श्रमिकों के सकुशल रेस्क्यू की कामना की गई. स्थानीय लोग लगातार बाबा बौखनाग से सभी श्रमिकों के सकुशल रेस्क्यू की कामना कर रहे थे. इसके एक दिन बाद ही सिलक्यारा में राहत बचाव में लगी सभी एजेंसियों को बड़ी सफलता हाथ लगी. 28 नवंबर को टनल के मलबे को भेदकर सभी 41 मजदूरों को सकुशल बाहर निकाला गया. इसके बाद सीएम धामी ने बाबा बौखनाग का भव्य मंदिर बनाने की भी घोषणा की.
मूल स्थान से हटी धारी देवी की मूर्ति तो आई केदारनाथ आपदा:इसे संयोग कहें या फिर देवभूमि का देवत्व, लेकिन, ये हकीकत है कि जब श्रीनगर चौरास जल विद्युत निर्माणाधीन परियोजना के चलते 16 जून 2013 की सुबह 4 बजे मां धारी देवी का प्राचीन मंदिर विस्थापित किए जाने की प्रक्रिया शुरू हुई तो इस समय बाबा केदार की धरती दहल उठी. मां धारी देवी को मां सती यानी पार्वती माता का प्रतीक माना जाता है. कहा जाता है कि जब माता के मंदिर पर विपत्ति आए तो भगवान शिव के प्रकोप से बचना मुश्किल है. भले ही आज विज्ञान भगवान, देवी देवताओं और देवभूमि की मान्यताओं को सिरे से नकार दे, लेकिन 16 जून 2013 की सुबह 4 बजे जब मां धारी देवी का मंदिर हटाया जाने लगा तो केदारनाथ में सदी की सबसे बड़ी त्रासदी आई थी.
देवभूमि की आस्था केवल देवभूमि नहीं पूरे सनातन धर्म का सवाल:बदरी-केदार मंदिर समिति के सदस्य आशुतोष डिमरी बताते हैं कि मां धारी देवी एक शक्तिपीठ और सिद्धपीठ है. उन्हें विकास कार्यों के लिए विस्थापित करना कहीं ना कहीं धार्मिक आस्था से खिलवाड़ करने जैसा था. उन्होंने बताया मां धारी देवी केवल उत्तराखंड के गढ़वाल की स्थानीय देवी है, बात यहीं पर खत्म नहीं हो जाती. धारी देवी मां शक्ति का स्वरूप है. केवल उत्तराखंड के लोग नहीं बल्कि गुजरात, महाराष्ट्र और देश के हर इलाके के लोग धारी देवी में विश्वास रखते हैं. ऐसे में किसी स्थानीय मान्यता को दरकिनार करना केवल स्थानीय भावनाओं को ठेस पहुंचाने जैसा नहीं है बल्कि यह पूरे सनातन धर्म की मान्यताओं पर कुठाराघात करने जैसा है. उनका कहना है जब भी क्षेत्र में विकास के कार्य हो तो उसमें स्थानीय मठ मंदिरों और परंपराओं आस्था को विशेष प्राथमिकता देनी चाहिए.