नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने उन याचिकाओं को 'महत्वपूर्ण' करार दिया जिनमें वैवाहिक कानून से संबंधित उन प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है जो अदालतों को अलग रह रहे दंपतियों को यह कहने की शक्ति प्रदान करते हैं कि वे वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए 'सहवास' करें और 'यौन संबंधों' में शामिल हों.
गुरुवार को न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन, न्यायमूर्ति के एम जोसेफ और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने मामले को 22 जुलाई को अगली सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया और साथ ही इस मामले में हस्तक्षेप के लिए दाखिल विभिन्न आवेदनों को इसकी अनुमति भी प्रदान कर दी. संक्षित सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि उन्हें लिखित अभिवेदन दायर करने के लिए समय चाहिए. शीर्ष अदालत ने मामले में वेणुगोपाल से मदद मांगी थी.
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने कहा कि, मामला हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा-9 और अन्य संबंधित प्रावधानों की वैधता के संबंध में कानून से जुड़ा विशुद्ध सवाल का है और इसलिए अदालत को कम अवधि की तारीख देनी चाहिए.
दो सप्ताह बाद सुनवाई
हस्तक्षेपकर्ताओं की ओर से पेश हुए अधिवक्ता शोएब आलम ने कहा कि अलग रह रहे दंपतियों से वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए सहवास करने की बात कहने की अदालतों को शक्ति देने वाले प्रावधानों की समीक्षा करते समय वैवाहिक कानूनों ही नहीं, बल्कि भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत कुछ अन्य प्रावधानों और कानूनों को भी देखे जाने की आवश्यकता है. पीठ ने कहा कि वह सभी हस्तक्षेप आवेदनों को मुख्य मामले के साथ सूचीबद्ध करेगी, और उनपर 22 जुलाई को सुनवाई करेगी.