मुंबई: महाराष्ट्र में कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने भारतीय जनता पार्टी के मंत्री की आलोचना की. इसके बाद पुलिस ने कांग्रेस नेताओं के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया. इस मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने सरकार को फटकार लगाई है. अदालत ने कहा कि मंत्रियों का विरोध करना और उनकी आलोचना करना इस धारा के अंतर्गत नहीं आता है. इस मामले में कोर्ट ने सरकार पर 25000 का जुर्माना भी लगाया है.
बॉम्बे हाई कोर्ट की जस्टिस रेवती मोहिते डेरे और पी.के. चव्हाण की बेंच ने यह फैसला दिया है. कांग्रेस के एक कार्यकर्ता ने भारतीय जनता पार्टी के मंत्री की आलोचना की थी. इस शिकायत के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. इसलिए संदीप अर्जुन कुडले ने बॉम्बे हाईकोर्ट में इस संबंध में याचिका दायर की थी. कोर्ट ने यह भी कहा कि कानून का इस्तेमाल असंतोष को रोकने के लिए होना चाहिए और इसका इस्तेमाल किसी को डराने के लिए नहीं किया जाना चाहिए.
महाराष्ट्र में सोशल मीडिया पर मंत्री पाटिल के खिलाफ कुछ अपमानजनक आलोचनाएं की गईं. इसलिए दो अपराध दर्ज किए गए. भारतीय दंड संहिता की धारा 133ए के तहत भी मामला दर्ज किया गया था. सोशल मीडिया पर वीडियो की जांच के बाद, अदालत ने इस संबंध में गहन जांच की और पाया कि लोगों का कोई अवैध जमावड़ा नहीं था. ऐसा प्रतीत होता है कि कोई अपराध नहीं किया गया है.
न्यायाधीश ने उस पृष्ठभूमि का भी अवलोकन किया जिसमें सोशल मीडिया में वीडियो बनाया गया था. इसका प्रसारण किया गया. इसमें इस तरह के अपशब्दों का प्रयोग नहीं किया गया है. आपराधिक आरोप तभी दर्ज किए जाने चाहिए जब वास्तव में कोई अपराध किया गया हो, और कुछ अपमानजनक बात कही गई हो. हालाँकि, अदालत ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि यदि कुडले ने केवल सरकार के मंत्री के खिलाफ विरोध किया और असहमति दर्ज की, तो असहमति दर्ज करना अपराध नहीं हो सकता है.
याचिकाकर्ता ने मंत्र के संबंध में कुछ टिप्पणियां कीं. उन्होंने उनके बारे में बात की और असहमति दर्ज की, विरोध दर्ज किया. यह अपराध कैसे हो सकता है? यदि हिंसा भड़काई जाती है तो उस स्थान पर धारा 153 के तहत अपराध दर्ज किया जा सकता है. कोर्ट ने यह भी कहा कि मतभेद के कारण मामला दर्ज करना और गिरफ्तारी करना कानूनी नहीं है. न्यायमूर्ति रेवती मोहिते धेरे ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि याचिकाकर्ता की भाषा, हालांकि कठोर है, परेशान करने वाली है. लेकिन इसलिए यह अपराध के अंतर्गत नहीं आता है.
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इसलिए इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है कि एफआईआर दर्ज की जाए और गिरफ्तारी की जाए. इसलिए ऐसी घटनाओं में नफा-नुकसान सोच समझकर ही कदम उठाना चाहिए. पुलिस का मुख्य कर्तव्य कानून व्यवस्था बनाए रखना है. इस मामले में धारा 133 लगाना ठीक नहीं है. इसलिए कोर्ट ने दोनों अपराधों के संबंध में दर्ज प्राथमिकी को लेकर सरकार को फटकार लगाई. साथ ही एफआईआर रद्द करने का आदेश दिया. इस अन्यायपूर्ण गिरफ्तारी के लिए महाराष्ट्र सरकार को पच्चीस हजार रुपये देने का निर्देश दिया गया. साथ ही पुलिस अधिकारी जो एफआईआर दर्ज करने के लिए जिम्मेदार हैं. आदेश में यह भी कहा गया है कि उनके वेतन से 25 हजार रुपये की वसूली की जाए.