नई दिल्ली :कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव के लिए शनिवार से नामांकन की प्रक्रिया शुरू हो गई है. कांग्रेस वरिष्ठ नेता शशि थरूर के अधिकृत प्रतिनिधि नामांकन पत्र लेने के लिए कांग्रेस केंद्रीय चुनाव प्राधिकरण के दफ्तर पहुंचे और कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए नामांकन पत्र के पांच सेट देने की मांग भी की. इससे कांग्रेस नेता शशि थरूर और अशोक गहलोत के बीच टक्कर होनी लगभग तय हो गयी है. कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव एक बार फिर से तब हो रहा है जब कई सालों बाद नेहरू गांधी परिवार ने कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष पद पर अपनी दावेदारी नहीं की है.
अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए 22 सितंबर को अधिसूचना जारी हो चुकी है. अब आज से पर्चा दाखिल करने की प्रक्रिया शुरू होगी, जो 30 सितंबर तक चलेगी. जो भी अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ना चाहता है, वह पर्चा दाखिल कर सकता है. यह चुनाव पार्टी के वरिष्ठ नेता मधुसूदन मिस्त्री की अध्यक्षता वाला केंद्रीय चुनाव प्राधिकरण कराएगा. इसमें नामांकन वापस लेने की अंतिम तिथि 8 अक्टूबर रखी गई है. जरूरत पड़ी तो वोटिंग 17 अक्टूबर को होगी, जबकि चुनाव परिणाम 19 अक्टूबर को घोषित किए जाएंगे.
आइए जानते हैं कांग्रेस के अध्यक्ष के चुनाव से जुड़े कुछ खास किस्से व घटनाक्रम.....
1. कांग्रेस में अध्यक्ष पद के लिए आखिरी बार साल 2000 में चुनाव हुआ था. तब सोनिया गांधी के सामने उत्तर प्रदेश के ब्राह्मण चेहरे के रुप में चर्चित कद्दावर नेता जितेंद्र प्रसाद उनको टक्कर देने की कोशिश की थी. लोगों ने उन्हें मनाने की कोशिश की थी, लेकिन वह नहीं माने. इस चुनाव में सोनिया गांधी को करीब 7448 वोट मिले और जितेंद्र प्रसाद 94 वोटों पर ही सिमट कर रह गए. इसके बाद 2000 में सोनिया गांधी के अध्यक्ष बन गयीं और तब से लेकर ने पर गांधी परिवार को कभी कोई चुनौती नहीं मिली।
2. कुछ ऐसा ही हाल राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने पर हुआ था. राहुल गांधी 2017 से 2019 तक अध्यक्ष बने रहे. लोकसभा चुनाव में हार के बाद साल 2019 में राहुल गांधी के इस्तीफा दे दिया, तब से परिवार से बाहर का अध्यक्ष चुने जाने की मांग की जा रही थी. लेकिन पार्टी में आम राय न बन पाने के कारण एक बार फिर सोनिया गांधी अंतरिम अध्यक्ष बनीं और आज तक उस पर कायम हैं. अब वह अगले अध्यक्ष को अपना कार्यभार सौंपेंगी.
3. राजीव गांधी की मौत के बाद 1992 में पीवी नरसिम्हा राव ने कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष का पद संभाला था. इस दौरान उनके संगठन की उपेक्षा के आरोप लगाए जा रहे थे. उस दौरान पार्टी के नेताओं ने नरसिम्हा राव को सलाह दी कि वह कांग्रेस अध्यक्ष पद से हट जाएं और किसी और को अध्यक्ष बना दें. लेकिन वह पार्टी के लोगों की बातों पर ध्यान नहीं दिया करते थे.
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4. जब कांग्रेस के बड़े नेताओं ने दबाव बनाना शुरू किया तो वह चुनाव एक साल के लिए टरकाते रहे. इसके बाद उन्हें कार्यकारी अध्यक्ष बनाने की सलाह दी गई तो उन्होंने पार्टी के नेताओं से नाम मांगा. लेकिन पीवी नरसिम्हा राव ने इसपर शर्त रख दी कि कार्यकारी अध्यक्ष वही बनेगा, जो केंद्र में मिनिस्टर पद से हटेगा. इसके लिए कोई नेता तैयार नहीं था. इसलिए एक साल और गुजर गया. फिर जब मीटिंग हुयी तो उन्हें उपाध्यक्ष बनाने के सुझाव दिए गए, लेकिन वह राजी नहीं हुए और आम चुनाव का समय आ गया और चुनाव में कांग्रेस पार्टी की हार हो गई.
5. चुनाव में हार मिलने के बाद हुई वर्किंग कमेटी की मीटिंग में पीवी नरसिम्हा राव को कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटाने की तैयारी शुरु हो गयी. इसके लिए अविश्वास प्रस्ताव लाने का फैसला किया गया. अविश्वास प्रस्ताव में गुलाम नबी आजाद की ओर से कहा गया कि आप भारत के अच्छे प्रधानमंत्री में से एक रहे, लेकिन दुर्भाग्यवश आप कांग्रेस के सबसे बेकार अध्यक्ष साबित हुए. आपका कांग्रेस पार्टी में कोई इंट्रेस्ट नहीं था.
6. सीताराम केसरी को भी गांधी परिवार के वफादार के रूप में जाना जाता था, लेकिन जैसे ही वह 1996 में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने ने के बाद गांधी परिवार की छाया से बाहर चले गए थे. लंबे समय तक पार्टी के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष के रूप में कार्य करने के बाद केसरी ने राव के बाद कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभाला था. लेकिन जब सोनिया गांधी को राजनीति में आने का फैसला किया तो मार्च 1998 कांग्रेस कार्य समिति ने केसरी को पार्टी अध्यक्ष के पद से बर्खास्त करने का प्रस्ताव पारित किया और सोनिया गांधी को पार्टी की बागडोर संभालने के लिए कहा.
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7. सितंबर 1996 से मार्च 1998 तक पार्टी अध्यक्ष रहे सीताराम केसरी को अंग्रेजी नहीं आती थी. इसके कारण उन्हें दक्षिण और उत्तर-पूर्व के नेताओं को उनसे बातचीत करने में समस्याएं होती थीं. इतना ही नहीं उत्तर भारत के कांग्रेस के कई बड़े नेता उनको अपना अध्यक्ष नहीं मानते थे.
7. 29 जनवरी 1939 को कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव भी ऐतिहासिक कहा जाता है, जिसमें सुभाष चंद्र बोस ने गांधी जी के समर्थित उम्मीदवार पट्टाभि सीतारमैया को हरा दिया था. इस चुनाव में सुभाष को 1580 वोट और रमैया को 1377 वोट मिले. कहा जाता है कि गांधीजी और सरदार पटेल पूरा जोर लगाने के बाद भी रमैया को जीत नहीं दिला सके थे.
8. कहा जाता है कि सुभाष चंद्र बोस की जीत पर गांधी ने कहा था कि रमैया की हार मेरी हार है. इसका नतीजा यह हुआ कि CWC के सभी सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया. कांग्रेस के लोग जीत के बाद भी बोस के साथ काम करने को तैयार नहीं थे. जिससे सुभाष चंद्र बोस ने भी कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था.