नई दिल्ली: कांग्रेस पार्टी ने बुधवार को कहा कि वह अडानी मामले में जेपीसी जांच की मांग करना नहीं छोड़ेगी और कहा कि इस मामले का लंदन में राहुल गांधी की हाल की टिप्पणी पर माफी मांगने की भाजपा की मांग से कोई संबंध नहीं है. कांग्रेस के संचार प्रभारी जयराम रमेश ने कहा कि पिछले कुछ दिनों से समझौता फार्मूला खोजने की कोशिश की जा रही है. बीच का रास्ता निकालने के लिए ताकि विपक्ष अडानी मामले में जेपीसी जांच की मांग छोड़ दे और फिर भाजपा राहुल गांधी की माफी की अपनी मांग वापस ले ले. ऐसा नहीं हो सकता. दोनों मुद्दों के बीच कोई संबंध नहीं है.
उन्होंने कहा कि अडानी मामले की जेपीसी जांच की मांग एक मूल मुद्दा है और यह उन घटनाओं पर आधारित है जो घटित हुई हैं. राहुल गांधी पर लगाए गए आरोप निराधार हैं. हम लेन-देन के लिए तैयार नहीं हैं. राहुल गांधी ने नियम 357 के तहत स्पीकर को पत्र लिखा है, ताकि उन्हें लोकसभा में बोलने का मौका दिया जाए और सदन में कुछ मंत्रियों द्वारा लगाए गए आरोपों पर अपनी बात रखी जाए. अडानी मामले से ध्यान भटकाने के लिए राहुल गांधी से माफी मांगने की मांग दोहराई जा रही है.
उन्होंने कहा कि यह पीएम की 3डी रणनीति का हिस्सा है. बिगाड़ना, बदनाम करना और भटकाना. उन्होंने राहुल गांधी के भाषणों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया है, उन्हें बदनाम किया है और अब अडानी मुद्दे से ध्यान हटाने की कोशिश कर रहे हैं. अडानी मामले में जेपीसी जांच की मांग वापस लेना हमारे लिए गैर-परक्राम्य है. 13 मार्च से शुरू हुए संसद के बजट सत्र के दूसरे भाग में गतिरोध के बीच कांग्रेस के दिग्गज नेता की टिप्पणी आई है.
तब से, कांग्रेस के नेतृत्व वाला एक आक्रामक विपक्ष अडानी मुद्दे की जेपीसी जांच के लिए दबाव बना रहा है, जबकि सत्तारूढ़ भाजपा ने मांग की कि राहुल गांधी को हाल ही में लंदन में भारतीय लोकतंत्र से संबंधित अपनी टिप्पणी पर माफी मांगनी चाहिए. रमेश ने कहा कि कांग्रेस जेपीसी की मांग नहीं छोड़ेगी जो कि कांग्रेस पार्टी के लिए एक राजनीतिक मुद्दा है. रमेश ने कहा कि यह हमारे लिए एक राजनीतिक मुद्दा है. हम इसे नहीं छोड़ेंगे. हम संसद के बाहर भी इस मुद्दे पर विरोध करते रहे हैं. हम इस मुद्दे को लोगों तक ले जाने के लिए संगठन को तैनात करेंगे.
कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य के अनुसार, पहले ऐसे मौके आए थे, जब तत्कालीन सरकार जेपीसी जांच की ऐसी ही मांगों का विरोध कर रही थी, लेकिन विपक्ष के दबाव में उसने हार मान ली. रमेश ने कहा कि 1992 में, जब पीवी नरसिम्हा राव पीएम थे, हर्षद मेहता घोटाले में एक जेपीसी का गठन किया गया था. फिर 2001 में, जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे, केतन पारिख घोटाले की जांच के लिए एक जेपीसी का गठन किया गया था. दोनों शेयर बाजार घोटाले थे. लेकिन वर्तमान शेयर बाजार तक ही सीमित नहीं है. यह पीएम की नीयत और नीतियों से जुड़ा है. हम पीएम से इस मुद्दे पर अपनी चुप्पी तोड़ने के लिए कह रहे हैं.
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कांग्रेस नेता ने कहा कि उन्होंने अब तक पीएम से अडानी घोटाले से जुड़े 100 सवाल पूछे हैं, लेकिन कोई जवाब नहीं आया है. रमेश ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के विशेषज्ञ पैनल की जांच और जेपीसी के बीच यही अंतर है. एससी पैनल की जांच पीएम को क्लीन चिट देने के लिए है. यह उन मुद्दों पर गौर करने की हिम्मत नहीं करेगा जो हम उठा रहे हैं. केवल जेपीसी ही घोटाले से संबंधित प्रश्न पूछ सकती है. सरकार जवाब देगी और सब कुछ रिकॉर्ड में आ जाएगा. चीजें बिल्कुल साफ हो जाएंगी.