नई दिल्ली : देश के सभी प्रमुख विपक्षी दलों के नेता 12 जून को पटना में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा बुलाई गई एक महत्वपूर्ण बैठक में भाग लेंगे. लेकिन पश्चिम बंगाल में कांग्रेस और वाम मोर्चा ने उस बैठक में तृणमूल कांग्रेस को आमंत्रित करने के औचित्य पर सवाल उठाया है. पश्चिम बंगाल में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने एक कदम आगे बढ़ते हुए दावा किया कि 12 जून की बैठक का जो भी परिणाम हो, कांग्रेस पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस का विरोध जारी रखेगी.
उन्होंने कहा, पश्चिम बंगाल में हमारा आंदोलन भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ है और यह जारी रहेगा. तृणमूल कांग्रेस वास्तव में विपक्षी गठबंधन में दरार पैदा करने के लिए भाजपा का मोहरा है. माकपा की केंद्रीय समिति के सदस्य सुजान चक्रवर्ती ने कहा कि हालांकि भाजपा के खिलाफ सभी विपक्षी ताकतों को एकजुट करने की यह एक अच्छी पहल है, लेकिन सवाल यह है कि क्या तृणमूल कांग्रेस पर विश्वास किया जा सकता है.
उन्होंने कहा, तृणमूल कांग्रेस ने अप्रत्यक्ष रूप से भारत के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनावों में भाजपा की मदद की. संकट के समय में, तृणमूल कांग्रेस ने हमेशा प्रधानमंत्री मोदी को गुप्त रूप से समर्थन दिया है. माकपा के राज्यसभा सदस्य और कलकत्ता हाई कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता बिकास रंजन भट्टाचार्य ने कहा कि एक महागठबंधन की जरूरत है और केवल उन राजनीतिक ताकतों को इसमें शामिल किया जाना चाहिए जो भाजपा का विरोध करे.
उन्होंने कहा, बीजेपी हमेशा विपक्षी मोर्चे को भीतर से खत्म करने की कोशिश करेगी. ऐसे में तृणमूल कांग्रेस को शामिल करना एक अच्छा कदम नहीं होगा. बल्कि, पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चा और कांग्रेस के बीच आपसी समझ के मॉडल का राष्ट्रीय स्तर पर पालन किया जाना चाहिए.