हैदराबाद : अगले साल उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है. पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद ने कांग्रेस का हाथ छोड़ कमल थाम लिया है. जितिन प्रसाद का जन्म 29 नवंबर 1973 को हुआ. देहरादून के दून स्कूल में पढ़ाई की और फिर दिल्ली के श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स से बीकॉम ऑनर्स किया. जितिन प्रसाद ने दिल्ली के आईएमआई से एमबीए की डिग्री भी ली है. पिता और दादा सक्रिय राजनीति में रहे तो उनका सियासत में आना लाजमी सा था. पिता जितेंद्र प्रसाद कांग्रेस में बड़े ओहदों पर रहे तो कांग्रेस में उनकी एंट्री भी आसान हो गई. लेकिन दो दशक से ज्यादा वक्त तक कांग्रेस में रहने वाले जितेंद्र प्रसाद अब बीजेपी के हो गए हैं.
कांग्रेस का युवा चेहरा जो अब बीजेपी में है
कांग्रेस पर भले परिवारवाद का आरोप लगता रहा हो. लेकिन जितिन प्रसाद कांग्रेस के प्रतिभाशाली और युवा चेहरा रहे हैं. जिसके चलते यूपीए सरकार में उन्हें कई जिम्मेदारियां दी गई थी. जितिन प्रसाद की सियासी पृष्ठभूमि ने उनके लिए सियासत की राह आसान जरूर की लेकिन केंद्र में मिली जिम्मेदारियों ने उनके कद को और भी बढ़ाया.
- पिता जितेंद्र प्रसाद यूपी कांग्रेस के अध्यक्ष और पार्टी के उपाध्यक्ष रह चुके हैं.
-पिता पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और पीवी नरसिम्हा राव के राजनीतिक सलाहकार रहे.
- पिता जितेंद्र सोनिया गांधी के करीबी थे लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव में सोनिया गांधी को चुनौती दी थी.
-जितिन प्रसाद कांग्रेस के महासचिव पद की जिम्मेदारी भी संभाल चुके हैं.
- कांग्रेस का युवा चेहरा रहे जितिन प्रसाद को राहुल गांधी का करीबी माना जाता है.
- ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ सचिन पायलट और जितिन प्रसाद राहुल गांधी की यूथ ब्रिगेड का चेहरा थे.
- यूपी की शाहजहांपुर और आस-पास के क्षेत्रों में जितिन प्रसाद की पकड़ मानी जाती है.
जितिन प्रसाद का कांग्रेस से क्यों हुआ मोह भंग ?
2017 में हुए यूपी विधानसभा चुनाव के बाद से कई बार जितिन प्रसाद के बीजेपी में जाने की अटकलें लगाई गई. 2019 लोकसभा चुनाव के बाद भी ऐसा ही हुआ, यहां तक कहा गया कि प्रियंका गांधी के कहने पर जितिन प्रसाद मान गए हैं. लेकिन जितिन प्रसाद का कांग्रेस से मोहभंग होने की कई वजहें हैं. जो उन्हें आज बीजेपी के खेमे में ले आई हैं.
- कांग्रेस में साइडलाइन किया जाना. स्थानीय कांग्रेसी ही करने लगे थे घेराबंदी.
- कांग्रेस का गिरते ग्राफ का असर उनकी छवि पर भी पड़ रहा था. 2014 से लगातार 3 चुनाव हार चुके हैं.
- पिछले विधानसभा चुनाव में यूपी में कांग्रेस सिर्फ 7 सीटों पर सिमट गई थी.
- राहुल गांधी भी अपनी सीट नहीं बचा पाए. उन्हें भी शायद इसका अंदाजा था इसलिये केरल की वायनाड सीट से भी चुनाव लड़ा और जीत हासिल की.
- कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने 2019 में रायबरेली सीट तो जीत ली लेकिन मार्जिन कम हो गया.
- कांग्रेस में युवाओं की अनदेखी, ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे बड़े चेहरे के बीजेपी में जाने के बाद कांग्रेस के युवा नेताओं में कन्फ्यूजन.
- 2019 में यूपी कांग्रेस अध्यक्ष की रेस में होने के बावजूद अनदेखी की गई और अजय कुमार लल्लू को अध्यक्ष बना दिया गया.