नंदीग्राम(पश्चिम बंगाल) : पूर्वी मिदनापुर जिले में नंदीग्राम विधानसभा सीट के चुनावी मुकाबले पर इस बार सभी की नजरें टिकी हैं, लेकिन वहां का कभी बेताज बादशाह रहा एक शख्स पूरे परिदृश्य से बाहर है.
लक्ष्मण चंद्र सेठ को इलाके में 2007 के कृषि भूमि अधिग्रहण विरोधी ऐतिहासिक आंदोलन का खलनायक माना जाता है, लेकिन वह इस बार के जोरदार चुनाव प्रचार के शोरगुल से दूर हैं. सेठ ने खुद को हल्दिया तक सीमित कर लिया है, जहां उनका बेटा रहता है. वहीं, सांप्रदायिक रूप से विभाजित नंदीग्राम मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और कभी उनके करीबी विश्वस्त रहे शुभेन्दु अधिकारी के बीच महामुकाबले का इंतजार कर रहा है. अधिकारी इस सीट पर भाजपा के उम्मीदवार है.
सेठ (74) ने बताया कि मैं इसे (ममता और अधिकारी के बीच चुनावी मुकाबले) को बुरे कर्मों का बुरा फल कहुंगा. उन्होंने दावा किया कि दोनों नेताओं ने अपना राजनीतिक करियर बनाने के लिए नंदीग्राम के बेकसूर लोगों को गुमराह किया था. अब उनके झूठ ही उन्हें परेशान करने वाले हैं. सेठ ने कहा कि हालांकि, मैं अब भी कांग्रेस का सदस्य हूं, लेकिन राजनीति से दूर हूं.
उन्होंने कहा कि उन्हें लगता है कि नंदीग्राम सीट पर चुनाव में ममता को अधिकारी पर बढ़त हासिल है. हम माने या ना माने, ममता ने अकेले ही वाम मोर्चा और दो बार के मुख्यमंत्री (बुद्धदेव भट्टाचार्य) को हराया था. उन्होंने (ममता ने) खुद को एक जननेता साबित किया है. शुभेन्दु अधिकारी में जननेता बनने की कुव्वत नहीं है. और नंदीग्राम के लोग दलबदलू को पसंद नहीं करते हैं.
सेठ ने कहा कि शुभेन्दु और उनके लोगों ने नंदीग्राम में पिछले 10 साल से जो आतंक मचाया है. उसका उन्हें इस चुनाव में (जनता से) मुंहतोड़ जवाब मिलेगा. सेठ माकपा में थे, लेकिन पार्टी ने उन्हें 2014 में निष्कासित कर दिया. इसके दो साल बाद वह भाजपा में शामिल हुए थे, लेकिन उन्होंने भगवा पार्टी छोड़ दी. वह अब कांग्रेस में हैं और तामलुक से 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर संसद पहुंचने की उनकी नाकाम कोशिश ने शायद उन्हें बचाव की मुद्रा में ला दिया. चुनाव में उनकी जमानत तक जब्त हो गई थी.
गौरतलब है कि वह तामलुक सीट का तीन बार प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. नंदीग्राम आंदोलन बंगाल के राजनीतिक इतिहास में एक निर्णायक मोड़ लाया था क्योंकि इस आंदोलन की जमीन से मार्क्सवाद विरोधी तेज तर्रार नेता ममता बनर्जी का उदय हुआ था, जिन्होंने राज्य में 34 साल से शासन कर रहे वाम मोर्चे को सत्ता से बेदखल कर दिया. अधिकारी, इलाके के सर्वाधिक ताकतवर नेता के रूप में और तृणमूल कांग्रेस के एक कद्दावर नेता के तौर पर उभरे थे.
सेठ ने दार्शनिक अंदाज में कहा कि उन्होंने (ममता और अधिकारी ने) मेरे राजनीतिक करियर को नष्ट कर दिया. अब वक्त का पहिया फिर से घूम कर वहीं पर आ गया है और वे दोनों (ममता और अधिकारी) एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं. यही जीवन और राजनीति है. कई लोगों को अब भी ऐसा लगता है कि यदि 2007 में नंदीग्राम में हिंसक आंदोलन नहीं हुआ होता और सेठ वहां मौजूद नहीं होते तो नंदीग्राम कभी भी बंगाल के अशांत राजनीतिक फलक पर इतिहास नहीं रच पाता.