पलामू:21 सितंबर 2004 जब देश के नक्सल संगठन एकजूट हुए और भाकपा माओवादी का गठन हुआ. इससे पहले देश में दो सबसे बड़े नक्सल ग्रुप पीपुल्स वार ग्रुप (पीडब्ल्यूजी) और माओइस्ट कम्युनिस्ट सेंटर ऑफ इंडिया (एमसीसीआई) सक्रिय थे. एमसीसीआई का प्रभाव उतर पूर्वी भारत जबकि पीडब्ल्यूजी का प्रभाव दक्षिण भारत के राज्यो में था. अविभाजित बिहार वर्तमान में झारखंड का इलाका, यह एमसीसीआई और पीडब्ल्यूजी के प्रभाव का बॉर्डर लाइन था.
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21 सितंबर से 27 सितंबर तक माओवादीयों ने स्थापना सप्ताह मनाने की घोषणा की है. इस स्थापना सप्ताह को लेकर पुलिस एवं सुरक्षा एजेंसियों ने हाई अलर्ट जारी किया है. दरअसल, 1967 में बंगाल के नक्सलबाड़ी आंदोलन के बाद एमसीसीआई का गठन हुआ था, जिसमें नारायण सान्याल और चारु मजूमदार की भूमिका थी. कुछ वर्षों बाद कई नक्सल संगठन बने. एक रिपोर्ट के अनुसार उस दौरान इनकी संख्या 30 तक पहुंच गई थी. 1980 में आंध्र प्रदेश में कोंडपल्ली सीतारमैया के नेतृत्व में पीपुल्स वार ग्रुप का गठन किया गया. करीब 24 वर्षो के बाद एमसीसीआई और पीडब्ल्यूजी का आपस मे विलय हुआ. इससे पहले पार्टी यूनिटी का विलय एमसीसीआई में हुआ था. विलय के बाद भाकपा माओवादी के पहला महासचिव गणपति को बनाया गया, जबकि 72 पोलित ब्यूरो सदस्य चुने गए थे. 72 में 50 के करीब पोलित ब्यूरो सदस्य पीपुल्स वार ग्रुप से थे.
एमसीसीआई से अधिक हिसंक थे पीडब्ल्यूजी का कैडर:एमसीसीआई और पीडब्ल्यूजी के विलय के बाद देश के कई राज्यों में नक्सल गतिविधि बढ़ गई थी. नक्सली संगठनों के एकजूट होने के बाद देश में एक रेड कॉरिडोर बना था. इय रोड कॉरिडोर में झारखंड-बिहार, ओडिशा, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना के कई जिले शामिल थे. एक पूर्व माओवादी कमांडर ने बताया कि एकजुट होने के बाद परिस्थितियों काफी बदल गई थी. यही वजह थी कि विलय के कुछ वर्षों बाद हिंसक घटनाएं बढ़ गई थी और बड़े पैमाने पर जान माल का नुकसान हुआ. विलय के बावजूद कई बिंदुओं पर टॉप कमांडरों के बीच मतभेद था. एमसीसीआई से जुड़े हुए लोग कम हिंसा चाहते थे जबकि पीडब्लूजी से जुड़े लोग हिसंक घटनाओं को अंजाम देना चाहते थे.
आपसी विरोधाभास के कारण हुआ कमजोर: पूर्व कमांडर बताते हैं कि 2007 के बाद परिस्थितियां तेजी से बदली और हिंसक घटनाएं भी बढ़ गई. नतीजा है कि सुरक्षाबलों ने एक रणनीति के तहत नक्सली संगठनों के खिलाफ अभियान शुरू किया. सुरक्षाबलों के अभियान के बाद एक दशक में स्थितियां बदल गई. झारखंड बिहार में संगठन बेहद कमजोर हो गया, कई इलाकों से प्रभुत्व पूरी तरह से खत्म हो गए. 2019 तक देश के 90 जिले नक्सल प्रभावित माने जाते थे लेकिन अब इनकी संख्या घटकर 26 तक पहुंच गई है. पूर्व कमांडर बनाते हैं कि जरूरत से अधिक हिंसा माओवादियों को कमजोर करता गया और जनता के बीच विश्वास कम होती गई.
पुलिस के लिए और कितनी बड़ी चुनौती:नक्सली संगठन भाकपा माओवादी को झारखंड और बिहार में अपने बेस कैंप को छोड़कर भागना पड़ा है. रेड कॉरिडोर पर सुरक्षाबलों का कब्जा हो गया है. पलामू जोन के आईजी राजकुमार लकड़ा बताते हैं कि इलाके में पुलिस का लगातार अभियान जारी है. माओवादी कमजोर जरूर हुए हैं, चुनौती अभी भी है. इलाके को पूरी तरह से नक्सल मुक्त बनाना ही लक्ष्य है. पुलिस इलाके में शांति व्यवस्था कायम करना चाहती है ताकि अंतिम व्यक्ति तक विकास कार्य पहुंच सके और लोग मुख्य धारा में शामिल हों.
आकंड़ों की नजर में भाकपा माओवादियों की स्थिति: 2004 से नक्सली हिंसा में 7500 से भी अधिक लोगों की जान गई है. जबकि 2400 से अधिक पुलिस एवं सुरक्षाबल शहीद हुए है. 3500 के करीब माओवादी मारे गए हैं जबकि 15000 से अधिक गिरफ्तार हुए हैं. 2010 में पूरे देश भर में सबसे अधिक डेढ़ हजार के करीब नक्सली हिंसा के आंकड़े रिकॉर्ड किए गए थे. 2022 में यह आंकड़ा 80 के करीब रहा है. नक्सली संगठन भाकपा माओवादी अपने सबसे सुरक्षित ठिकानों पर स्थापना सप्ताह का आयोजन करते हैं. इस दौरान कई तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित होते हैं और शहीद वेदी बनाई जाती है.