नई दिल्ली : हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति को लेकर सरकार और न्यायपालिका के बीच टकराव कोई नई बात नहीं है, लेकिन पिछले कुछ समय से टकराव गहराता दिख रहा है. कॉलेजियम को लेकर सरकार और न्यायपालिका आमने-सामने हैं. क्योंकि सरकार चाहती है कि राष्ट्रीय न्यायिक आयोग का गठन किया जाए जिसमें न्यायाधीशों की नियुक्ति में सरकार शामिल हो और न्यायपालिका चाहती है कि कॉलेजियम प्रणाली जारी रहे, क्योंकि उसे लगता है कि न्यायाधीशों की नियुक्ति में राजनीतिक हस्तक्षेप प्रणाली को बाधित करेगा.
इसी मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका (PIL) भी लंबित है, जिसमें कॉलेजियम प्रणाली को जारी रखने की मांग की गई है लेकिन एक सचिवालय और स्वतंत्र जांच समिति के साथ, ताकि व्यवस्था और अधिक कुशल बन सके. यह जनहित याचिका सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने दायर की है. उन्होंने पूरे मामले को लेकर ईटीवी भारत से बात की और कॉलेजियम की व्यवस्था का समर्थन किया. उपाध्याय ने कहा कि कॉलेजियम को जारी रहना चाहिए लेकिन एनजेएसी के फैसले के बाद एक सचिवालय और स्क्रीनिंग कमेटी होनी चाहिए.
उन्होंने कहा कि वर्तमान में केवल हाई कोर्ट के मामले में वरिष्ठतम तीन न्यायाधीश और सुप्रीम कोर्ट के मामले में वरिष्ठतम पांच न्यायाधीश कॉलेजियम का गठन करते हैं, जो शायद हर एक को नहीं जानते हैं और नामों पर विचार करते समय कुछ अच्छे अधिवक्ताओं को छोड़ दिया जाता है जो अपने क्षेत्र में विशेषज्ञ होते हैं. एक उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि वर्तमान में इलाहाबाद हाई कोर्ट में 150 से अधिक न्यायाधीश हैं और उन्होंने आपराधिक, कर, दीवानी मामलों आदि को आपस में बांट लिया है.
उन्होंने कहा कि अधिवक्ता किसी विशेष क्षेत्र में प्रैक्टिस करते हैं और संभव है कि वह उन जजों की अदालत में न जाएं जो वरिष्ठतम हैं और जो कॉलेजियम का गठन करते हैं. उसे और अच्छा किया जा सकता है लेकिन कोई बातचीत नहीं होने के कारण कॉलेजियम को पता नहीं चलेगा इसलिए जज के लिए नामों पर विचार नहीं किया जाएगा. अधिवक्ता उपाध्याय ने कहा कि इससे बचने के लिए फुल कोर्ट मीटिंग होनी चाहिए जिसमें सभी जज बैठ कर नामों पर चर्चा करें और फिर आम सहमति से नहीं तो वोटिंग के जरिए जजशिप के लिए नामों को अंतिम रूप दें.