नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहली बार कनाडा अप्रैल 2015 में गए थे. उस समय जस्टिन ट्रूडो पीएम नहीं थे. तब कनाडा के पीएम स्टीफन हार्पर थे. वह कंजर्वेटिव पार्टी से थे. पीएम मोदी की यह यात्रा किसी भी भारतीय पीएम की 42 साल बाद यात्रा थी. वैसे, मनमोहन सिंह कनाडा गए थे, लेकिन उस दौरान वह जी20 समिट में भाग लेने गए थे. लेकिन जब से ट्रूडो पीएम बने हैं, तब से पीएम मोदी कनाडा नहीं गए हैं.
जस्टिन ट्रूडो अक्टूबर 2015 से कनाडा के पीएम हैं. 2019 के चुनाव में भी वह दोबारा से पीएम चुने गए. अगले साल फिर से चुनाव होने हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि ट्रूडो सिख मतदाताओं को रिझाने के लिए खालिस्तान समर्थकों के पक्ष में बयान दे रहे हैं. ट्रूडो दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी के रूप में जाने जाते हैं. वह लिबरल पार्टी ऑफ कनाडा से हैं.
जस्टिन ट्रूडो 2018 में भारत आए थे. वह सात दिनों की यात्रा पर आए थे. उस समय की मीडिया रिपोर्ट में कहा गया था कि ट्रूडो के स्वागत में गर्मजोशी नहीं दिखी. मीडिया ने इस मुद्दे को भी उठाया कि ट्रूडो के स्वागत के लिए एक जूनियर मंत्री को भेजा गया, जबकि ओबामा, नेतन्याहू और यूएई के क्राउन प्रिंस के स्वागत के लिए खुद पीएम मोदी एयरपोर्ट गए और उनसे गले भी मिले. ट्रूडो जब ताजमहल देखने गए थे, तभी भी उनकी मीडिया कवरेज बहुत ढीली रही थी. सीएम भी उनका स्वागत करने के लिए नहीं पहुंचे थे. ऐसा कहा जाता है कि जस्टिन इससे बहुत दुखी हुए थे.
जी-20 बैठक में दिखी थी नाराजगी- इसी तरह से जी-20 सम्मेलन के दौरान भी हुआ. कुछ खबरें जो मीडिया में आ रहीं थीं, उसके मुताबिक दोनों देशों के बीच सबकुछ ठीक नहीं था. खबरों के मुताबिक पीएम मोदी ने ट्रूडो को खरी-खरी सुना दी थी. मोदी ने कनाडा में खालिस्तानियों को मिल रहे समर्थन पर सवाल उठाए. पीएम मोदी जब सभी देशों के प्रमुखों का स्वागत कर रहे थे, उस दौरान भी देखा गया कि उन्होंने सबसे कम समय ट्रूडो के साथ गुजारा. उन तस्वीरों को देखकर ही राजनयिक मामलों के जानकार ने कहा था कि दोनों के बॉडी लैंगुएज बता रहे हैं कि वे असहज हैं.
ट्रूडो के साथ चल रही द्विपक्षीय बातचीत में जब भारत ने खालिस्तानियों को लेकर सवाल उठाए, तो ट्रूडो ने इसे कनाडा के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप की बात कही. इतना ही नहीं, ट्रूडो ने खालिस्तानियों का बचाव किया, और कहा कि कनाडा में बोलने की आजादी है. लेकिन भारत ने साफ कर दिया कि खालिस्तानी भारत के हितों के खिलाफ काम करता है. खालिस्तानी राजनयिक हिंसा को बढ़ावा दे रहा है, इसलिए उनके खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए.
ट्रूडो ने उठाया निज्जर का मुद्दा - ट्रूडो ने खालिस्तनी समर्थक निज्जर का भी मुद्दा उठाया. उसकी हत्या को लेकर सवाल उठाया. इसके बाद ऐसी घटना हुई, जिसकी वजह से ट्रूडो की फजीहत हो गई. ट्रूडो का विमान खराब हो गया और वह दो दोनों तक दिल्ली में ही रहे. हालांकि, भारत ने उन्हें वैकल्पिक विमान सेवाएं देने का ऑफर दिया था, लेकिन ट्रूडो ने इसे रिजेक्ट कर दिया था. इस दौरान भारत का कोई भी बड़ा मंत्री उनसे मिलने नहीं गया.
जी-20 की बैठक के बाद कनाडा के पीएम जब अपने देश लौटे, तो विपक्ष ने उन पर तीखा प्रहार किया. इसके बाद ट्रूडो ने भारत के साथ चल रही द्विपक्षीय बातचीत को रोक दी. फ्री ट्रेड एग्रीमेंट पर बातचीत पर विराम लगा दिया गया.
सिख पॉलिटिक्स- ट्रूडो ने 2015 में अपनी कैबिनेट में तीन सिख मंत्रियों को जगह दी थी. इनमें से एक हरजीत सज्जन कनाडा के डिफेंस मिनिस्टर हैं. सज्जन के पिता को 2017 में पंजाब के तत्कालीन सीएम अमरिंदर सिंह ने खालिस्तानी समर्थक बताया था. सज्जन के पिता वर्ल्ड सिख ऑर्गेनाइजेशन के मेंबर थे. कनाडा के ओंटेरियो विधानसभा ने 1984 दंगे की निंदा का प्रस्ताव भी पास किया था. खालिस्तानी पंजाब में अलग देश के लिए जनमत संग्रह करना की बात करते रहे हैं. 2019 के चुनाव में जब ट्रूडो बहुमत से दूर रह गए थे, तब उन्होंने जगमीत सिंह नाम के सिख से मदद मांगी थी. जगमीत सिंह के पास 24 सांसद थे. वह न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी के अध्यक्ष थे. जगमीत सिंह को खालिस्तानियों की रैलियों में देखा जाता रहा है. 2015 के चुनाव में ट्रूडो की पार्टी से 17 सांसद सिख थे.
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