हैदराबाद/लखनऊ : उत्तर प्रदेश में भाजपा की राह आसान नहीं दिख रही है, क्योंकि विपक्षी पार्टियां हर मोर्चे पर घेरने के साथ ही मिनट दर मिनट खामियों की दीवार खड़ी करने में जुटे हैं. यही वजह है कि अब भाजपा भी फूंक-फूंककर कदम रख रही है. हालांकि, इन सभी विपरीत परिस्थितियों में भी अब भाजपा को 'मिशन 84' से उम्मीद जगी है. यही कारण है कि पार्टी केंद्रीय नेतृत्व ने उक्त मिशन की जिम्मेदारी सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सौंपी है. साथ ही कहा जा रहा है कि अगर ये मिशन कामयाब होता है तो फिर एक बार सूबे में भाजपा की सरकार बनेगी.
दरअसल, विधानसभा चुनाव-2017 में जिन सीटों पर भाजपा को पराजय का मुंह देखना पड़ा था, अब उन्हीं सीटों पर पार्टी अधिक फोकस कर रही है. ताकि उन सीटों पर आगामी विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज की जा सके. वहीं, जनता से जनसंपर्क और इन सीटों पर प्रचार के लिए अब स्वयं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सामने आए हैं.
खैर, अगर प्रचार-प्रसार की बात करें तो फिलहाल भाजपा इस रेस में पहली पंक्ति में बनी हुई है. साथ ही अब पार्टी ने न सिर्फ संगठन के पेंच कसना शुरू कर दिया है, बल्कि शीर्ष नेता से लेकर हर पदाधिकारी तक को प्रवास, दौरे और अभियानों से भी जोड़ा है. इसी कड़ी में मुख्यमंत्री उन विधानसभा क्षेत्रों में विकास की गंगा बहाने को करोड़ों की परियोजनाओं की सौगात दे रहे हैं, जहां पार्टी जीत दर्ज करने में नाकामयाब रही थी.
होमवर्क के बाद हार्ड वर्क शुरू
भाजपा के सियासी रणनीतिकारों के मुताबिक, आगामी यूपी विधानसभा चुनाव में 350 सीटों के लक्ष्य को पार करने के लिए उन सीटों पर होमवर्क के बाद हार्ड वर्क जरूरी है, जहां पार्टी को 2017 में पराजय का मुंह देखना पड़ा था.
अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो पाएंगे कि 84 सीटें भाजपा के पास नहीं हैं. इसमें वो सीटें भी हैं जो भाजपा ने उपचुनाव में गंवा दी थी. वहीं, अगर ओम प्रकाश राजभर की सुभासपा से गठबंधन टूटने की बात करें तो भी भाजपा को उन सीटों का नुकसान हुआ है, जो सीटें सुभासपा के पास थीं.