जयपुर.कांग्रेस पार्टी में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का कद पहले ही काफी बड़ा है. आज जिस तरह राज्यसभा चुनाव में गहलोत ने कांग्रेस प्रत्याशियों को जीत (Congress candidate won in Rajya Sabha election 2022) दिलाई, उससे यह साफ हो गया कि राजनीति के जादूगर माने जाने वाले गहलोत का रणनीति बनाने में भी कोई सानी नहीं है. विधायकों की नाराजगी और अलग-अलग गुट होने के बावजूद भी गहलोत न केवल कांग्रेस बल्कि निर्दलीय और समर्थित दलों के अपने 126 विधायकों के कुनबे को एकजुट रखने में कामयाब रहे. गहलोत ही एकमात्र कारण है कि कांग्रेस पार्टी को उसके सभी 126 वोट मिले. हालांकि कांग्रेस खेमे के एक विधायक का वोट निरस्त हुआ, लेकिन भाजपा की ओर से शोभारानी कुशवाहा का वोट सपोर्ट होने से कांग्रेस के मतों की संख्या 126 ही रही है.
गहलोत ने आलानेताओं को रखा सक्रिय: राजस्थान में गहलोत ही वह नेता हैं, जिनपर कांग्रेस आलाकमान सबसे ज्यादा भरोसा करता है. यही कारण है कि कांग्रेस के सबसे वरिष्ठ नेताओं में से तीन नेताओं मुकुल वासनिक, रणदीप सुरजेवाला और प्रमोद तिवारी को गहलोत के भरोसे ही राजस्थान के रास्ते राज्यसभा भेजने का फैसला किया गया. गहलोत ने भी कांग्रेस आलाकमान को निराश नहीं किया और तमाम नाराजगी ओर गुटों के बावजूद कांग्रेस का एक भी वोट इधर से उधर नहीं हुआ. इससे पहले भी गहलोत के सहारे ही कांग्रेस पार्टी ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस के संगठन महामंत्री केसी वेणुगोपाल को राजस्थान के रास्ते राज्यसभा में भिजवाया है. ऐसे में साफ है कि कांग्रेस के वह बड़े नेता जो लगातार लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के कमजोर होने के चलते संसद नहीं पहुंच सके थे, उन्हें गहलोत ने राज्यसभा के रास्ते संसद पहुंचा दिया है. यानी कि कांग्रेस के जो सबसे महत्वपूर्ण नेता थे, उन्हें सक्रिय रखने में गहलोत की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण रही है.
पढ़ें: Rajyasabha Elections: राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस तीन सीटों पर विजयी, भाजपा के घनश्याम तिवारी भी जीते
इन मौकों पर बने तारणहार: गहलोत ने जिस तरह से गुजरात के चुनाव में भाजपा के दांत खट्टे किए और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनके गढ़ में ही भाजपा के चुनाव जीतने में पसीने आ गए थे. हालांकि कांग्रेस सरकार बनाने की स्थिति में तो नहीं आई, लेकिन इसे गहलोत की ही जादूगरी माना गया. इसी वजह से गहलोत को तीसरी बार कांग्रेस आलाकमान ने राजस्थान की कमान सौंपते हुए मुख्यमंत्री बनाया. इतना ही नहीं जब सचिन पायलट की नाराजगी के चलते गहलोत सरकार को संकट में माना जा रहा था, उस समय भी गहलोत ने निर्दलीयों, बीटीपी, माकपा, आरएलडी समेत अपने समर्थन में खड़े कांग्रेस विधायकों को 34 दिन बड़ाबंदी में रखा और अपनी सरकार बचा ली. इतना ही नहीं जब राज्यसभा चुनाव में गुजरात और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में तोड़फोड़ से बचाने के लिए महाराष्ट्र कांग्रेस के विधायकों और मध्य प्रदेश में आए सियासी संकट से बचने के लिए भी कांग्रेस आलाकमान ने गहलोत पर ही भरोसा दिखाया और सभी विधायकों को राजस्थान में शिफ्ट किया.