नई दिल्ली :देश के 49वें प्रधान न्यायाधीश (CJI) के रूप में शनिवार को जस्टिस उदय उमेश ललित (CJI UU Lalit) ने शपथ ग्रहण (Justice Uday Umesh Lalit sworn in) कर लिया है. सीजेआई यूयू ललित न्यायपालिका के प्रमुख के रूप में अपने 74 दिन के कार्यकाल में उच्चतम न्यायालय में मामलों को सूचीबद्ध किए जाने एवं अत्यावश्यक मामलों का उल्लेख किए जाने समेत तीन अहम क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने का इरादा रखते हैं. जस्टिस ललित देश के दूसरे ऐसे प्रधान न्यायाधीश हैं, जो बार से सीधे उच्चतम न्यायालय की पीठ में पदोन्नत हुए.
उन्होंने शुक्रवार को उन तीन क्षेत्रों का उल्लेख किया जिन पर वह देश की न्यायपालिका के प्रमुख के रूप में अपने 74 दिनों के कार्यकाल के दौरान काम करना चाहते हैं. जस्टिस ललित ने कहा कि वह यह सुनिश्चित करने के लिए कड़ी मेहनत करेंगे कि उच्चतम न्यायालय में कम से कम एक संविधान पीठ पूरे साल कार्य करे. जस्टिस ललित से पहले जस्टिस एस. एम. सीकरी मार्च 1964 में शीर्ष अदालत की पीठ में सीधे पदोन्नत होने वाले पहले वकील थे. वह जनवरी 1971 में 13वें सीजेआई बने थे.
जस्टिस ललित का सीजेआई के रूप में तीन महीने से भी कम का संक्षिप्त कार्यकाल होगा और वह इस साल आठ नवंबर को सेवानिवृत्त होंगे. उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु 65 वर्ष है. पूर्व सीजेआई एन वी रमण को विदाई देने के लिए सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) की ओर से आयोजित एक समारोह में न्यायमूर्ति ललित ने कहा था, "मैं आपको आश्वस्त करना चाहता हूं कि हम मामलों को सूचीबद्ध करने की प्रक्रिया को यथासंभव सरल, स्पष्ट और पारदर्शी बनाने के लिए कड़ी मेहनत करेंगे."
सीजेआई के रूप में जस्टिस ललित के कार्यकाल में संविधान पीठ के मामलों समेत कई अहम मामले शीर्ष अदालत के समक्ष सुनवाई के लिए आने की संभावना है. शीर्ष अदालत ने हाल ही में अधिसूचित किया था कि 29 अगस्त से पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ वाले 25 मामलों पर सुनवाई शुरू की जाएगी. पांच न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष आने वाले महत्वपूर्ण मामलों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को आरक्षण देने वाले संविधान (103वां संशोधन) अधिनियम, 2019 को चुनौती देने वाली, व्हाट्सऐप निजता नीति को चुनौती देने वाली याचिका, सदन में भाषण या वोट देने के लिए रिश्वत लेने को लेकर आपराधिक अभियोजन से छूट का दावा करने वाले सांसदों या विधायकों का मामला शामिल है.
जस्टिस ललित को 13 अगस्त, 2014 को उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया गया था. तब वह वरिष्ठ अधिवक्ता थे. वह मुसलमानों में 'तीन तलाक' की प्रथा को अवैध ठहराने समेत कई ऐतिहासिक फैसलों का हिस्सा रहे हैं. पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने अगस्त 2017 में 3:2 के बहुमत से 'तीन तलाक' को असंवैधानिक घोषित कर दिया था. इन तीन न्यायाधीशों में न्यायमूर्ति ललित भी थे. उन्होंने राजनीतिक रूप से संवेदनशील अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में सुनवाई से खुद को जनवरी 2019 में अलग कर लिया था.