अमरावती :सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस न्यायमूर्ति एनवी रमना () आंध्र प्रदेश दौरे पर हैं. उन्होंने विजयवाड़ा स्थित सिद्धार्थ विधि महाविद्यालय (Siddhartha Law College Vijayawada) के एक कार्यक्रम को संबोधित किया. सीजेआई ने कहा कि हाल के दिनों में न्यायिक अधिकारियों पर शारीरिक हमले बढ़े हैं और कई बार अनुकूल फैसला नहीं आने पर कुछ पक्षकार प्रिंट और सोशल मीडिया पर न्यायाधीशों के खिलाफ अभियान चलाते हैं और ये हमले 'प्रायोजित और समकालिक' प्रतीत होते हैं. न्यायमूर्ति रमना ने कहा, 'सरकार से उम्मीद की जाती है और उसका यह कर्तव्य है कि वह सुरक्षित माहौल बनाए ताकि न्यायाधीश और न्यायिक अधिकारी बिना भय के काम कर सके.'
रविवार को सीजेआई रमना ने कहा, यह एक मिथक है कि 'न्यायाधीश ही न्यायाधीशों को नियुक्त कर रहे हैं.' उन्होंने कहा कि मीडिया के नए माध्यमों के पास जानकारी फैलाने की बहुत अधिक क्षमता है लेकिन ऐसा लगता है कि वह सही और गलत, अच्छे और बुरे, वास्तविक और फर्जी के बीच अंतर करने में अक्षम है. मामलों में फैसला तय करने में ‘मीडिया ट्रायल' निर्देशित करने वाला तथ्य नहीं होना चाहिए.
उन्होंने कहा कि ऐतिहासिक रूप से भारत में अभियोजक सरकार के नियंत्रण में रहते हैं. सीजेआई ने कहा, 'इसलिए इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि वे स्वतत्रं रूप से कार्य नहीं करते. वे कमजोर और अनुपयोगी मामलों को अदालतों तक पहुंचने से रोकने के लिए कुछ नहीं करते. लोक अभियोजक अपने विवेक का इस्तेमाल किए बिना स्वत: ही जमानत अर्जी का विरोध करते हैं. वे सुनवाई के दौरान तथ्यों को दबाते हैं ताकि उसका लाभ आरोपी को मिले.'
उन्होंने सुझाव दिया कि पूरी प्रक्रिया में आमूल-चूल परिवर्तन के लिए काम करने की जरूरत है. लोक अभियोजकों को बाहरी प्रभाव से बचाने के लिए उनकी नियुक्ति के लिए स्वतंत्र चयन समिति का गठन किया जा सकता है. अन्य न्यायाधिकार क्षेत्रों का तुलानात्मक अध्ययन कर सबसे बेहतरीन तरीके को अंगीकार किया जाना चाहिए.
बिहार के कानून का उदाहरण दिया
सीजेआई ने कहा कि कानून बनाने के दौरान कानून निर्माताओं को उसकी वजह से उत्पन्न समस्याओं के प्रभावी समाधान के बारे में भी सोचना चाहिए और ऐसा लगता है कि इस सिद्धांत को नजरअंदाज किया जा रहा है. उन्होंने बिहार मद्य निषेद कानून, 2016 का हवाला दिया (CJI cites Bihar Prohibition Act), जिसकी वजह से उच्च न्यायालय में जमानत अर्जियों की बाढ़ आ गई. सीजेआई ने कहा कि कानून बनाने में दूरदर्शिता की कमी (Justice Ramana lack of foresight in legislating) के कारण अदालतों में सीधे तौर पर रुकावट आ सकती है.
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प्रधान न्यायाधीश रमना पांचवें श्री लवु वेंकेटवरलु धर्मार्थ व्याख्यान (Sri Lavu Venkatewarlu Endowment Lecture) में 'भारतीय न्यायपालिका- भविष्य की चुनौतियां' विषय पर अपने विचार रख रहे थे. उन्होंने कहा कि लोक अभियोजकों के संस्थान को स्वतंत्र करने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि उन्हें पूर्ण आजादी दी जानी चाहिए और उन्हें केवल अदालतों के प्रति जवाबदेह बनाने की जरूरत है.
न्यायाधीशों की नियुक्ति पर फैलाया जा रहा मिथक
न्यायमूर्ति रमना ने कहा, 'इन दिनों 'न्यायाधीश खुद न्यायाधीशों की नियुक्ति कर रहे हैं' जैसे जुमलों को दोहराना चलन हो गया है. मेरा मनाना है कि यह बड़े पैमाने पर फैलाए जाने वाले मिथकों में से एक (Judges appointing judges propagated myth) है. तथ्य यह है कि न्यायपालिका इस प्रक्रिया में शामिल कई हितधारकों में से महज एक हितधारक है.'
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