नई दिल्ली : निवर्तमान प्रधान न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे ने शुक्रवार को अपनी सेवानिवृत्ति के अवसर पर अपने विदाई संबोधन में कहा, 'मैंने अपना सर्वश्रेष्ठ किया, क्या परिणाम हुआ, नहीं जानता.'
न्यायमूर्ति बोबडे ने नवंबर 2019 में प्रधान न्यायाधीश के रूप में शपथ ली थी और उनका कार्यकाल 17 महीने का था.
उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश नथालपति वेंकट रमण को अगले प्रधान न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया है.
न्यायमूर्ति बोबडे ने अपने कार्यकाल के दौरान ऐतिहासिक अयोध्या फैसले, निजता के अधिकार, संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) को चुनौती देने वाली याचिकाओं, टाटा-मिस्त्री मामले, सोन चिरैया (ग्रेट इंडियन बस्टर्ड) के संरक्षण, महाबलेश्वर मुद्दे, उच्च न्यायालयों में तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति और पटाखों पर प्रतिबंध सहित कई महत्वपूर्ण मामलों को देखा.
न्याय प्रदायगी में कृत्रिम मेधा के कट्टर समर्थक रहे न्यायमूर्ति बोबडे ने कानूनी अनुसंधान के साथ न्यायाधीशों की मदद के लिए 'सुप्रीम कोर्ट पोर्टल फॉर असिस्टेंट इन कोर्ट्स एफिशिएंसी' शुरू किया.
न्यायमूर्ति बोबडे ने उस पीठ का भी नेतृत्व किया जो सीएए की संवैधानिक वैधता पर विचार करने को सहमत हुई और 22 जनवरी 2020 को स्पष्ट किया कि कानून का क्रियान्वयन रोका नहीं जाएगा . साथ ही पीठ ने केंद्र को याचिकाओं पर जवाब देने के लिए चार सप्ताह का समय दिया.
कुछ महीने बाद मार्च में, प्रधान न्यायाधीश ने उस पीठ का नेतृत्व किया जिसने संकेत दिया था कि सीएए को चुनौती देने वाली 150 से अधिक याचिकाओं को संविधान पीठ को भेजा जाएगा, लेकिन कोविड महामारी की वजह से भौतिक सुनवाई में बाधा के चलते मामला अभी सुनवाई के लिए सूचीबद्ध नहीं हो पाया है.
न्यायमूर्ति बोबडे ने न्यायपालिका प्रमुख के रूप में अगले आदेशों तक नए कृषि कानूनों के क्रियान्वयन पर भी रोक लगा दी और केंद्र तथा दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे किसान संगठनों के बीच गतिरोध के समाधान के लिए चार सदस्यीय एक समिति के गठन का फैसला किया.
पिछले साल देश को थाम देने वाली कोविड-19 महामारी के दौरान प्रधान न्यायाधीश बोबडे के नेतृत्व में शीर्ष अदालत ने मामलों की भौतिक सुनवाई की जगह तुरत-फुरत वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए सुनवाई और ई-फाइलिंग प्रणाली शुरू की और साथ ही देश की अन्य अदालतों को यह सुनिश्चित करने का मार्ग दिखाया कि नागरिकों को न्याय निर्बाध रूप से मिले.
उन्होंने उस पीठ का भी नेतृत्व किया जिसने सभी राज्यों को आदेश दिया कि वे महामारी के चलते जेलों में भीड़ कम करने के लिए कुछ कैदियों को पैरोल पर रिहा करने पर विचार करें.